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“मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, नष्ट करे, जब जले पराली। शुद्ध हवा दूषित हो जाये वायु प्रदूषित करे पराली”

प्रकृति रक्षा हेतु आवश्यक आन्दोलन की आकांक्षा में शब्द आहुतियां।।।

मिट्टी की उपजाऊ क्षमता,
नष्ट करे, जब जले पराली।
शुद्ध हवा दूषित हो जाये
वायु प्रदूषित करे पराली।
वायु मृदा का क्षरण बचाएं
आओ पर्यावरण बचाएं।।

ऑक्सीजन को कम करती है
“कार्बन” का बढ़ता प्रभाव है।
तरह -तरह के रोग बढ़ रहे
उपचारों तक का अभाव है।
धुआं -धुंध का यूँ बढ़ जाना
बड़ा भयावह दुष्प्रभाव है,
है सुधार को समय बहुत कम
किन्तु चेतना का अभाव है।।

वातावरण बहुत दूषित है
आओ वातावरण बचाएं।
वायु मृदा का क्षरण बचाएं
आओ पर्यावरण बचाएं।।।

इसकी गलती उसकी गलती
यह करने का समय नहीं है।
ये कर देगा ,वो कर देगा
यह कहने का समय नही है।
अंधाधुंध हुआ है दोहन
धरती अब तक सहती आई’
यह उसकी अंतिम पुकार है
अब सहने का समय नहीं है।।

धरती को सीता कहते हैं
आओ सीताहरण बचाएं।
वायु मृदा का क्षरण बचाएं
आओ पर्यावरण बचाये।।

न्यायपालिका ने भी माना
अब हद बाहर बात हुई है।
बारिश के मौसम हैं सूखे
बेमौसम बरसात हुई है।
अंधकार ने घेर लिया बस
जैसे कभी न जाएगा ये
दिल्ली भी तब जागी है जब
इसके दिन में रात हुई है।

अंतिम शरण प्रकृति ही है तो
आओ अंतिम शरण बचाएं।।
वायु मृदा का क्षरण बचाएं।
आओ पर्यावरण बचाएं।।

विवेक कुमार मिश्रा

तहसीलदार पीलीभीत

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