साठा धान के खिलाफ ग्रीन ट्रिव्यूनल गई भाकियू, बताए नुकसान लेकिन नहीं मिली राहत
पीलीभीत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल संरक्षण की बात तो करते हैं परंतु साठा धान से हो रहे जल दोहन को रोकने के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है। सबसे पहले इस धान पर रोक लगाई जानी चाहिए तभी जल संरक्षण की बात के कोई मायने होंगे। यह कहना है भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष सरदार मंजीत सिंह का। उन्होंने कहा कि साठा धान लगाने के काफी दुष्प्रभाव हैं। इसको लेकर भारतीय किसान यूनियन पहले हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल कर चुकी है। वहां से सरकार को इस पर विचार करने के लिए कहा गया था लेकिन सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया। अब ग्रीन ट्रिब्यूनल जाकर जल संरक्षण के विपरीत जल दोहन पर ध्यान आकृष्ट कराया। पीआईएल पर जल प्रबंधन बोर्ड को मामला देखने के लिए आदेशित किया गया परंतु कोई स्थाई आदेश जारी ना होने से नतीजा ढाक के तीन पात रहा है। उन्होंने बताया कि आगे भी लड़ाई जारी रहेगी।
जिला अधिकारी को भी ज्ञापन भेजे गए हैं। प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री को भी लगातार ज्ञापन भेजे जा रहे हैं ।उन्होंने इस धान के नुकसान बताए।
मंजीत सिंह बोले- चैनी धान के एक नहीं सैकड़ों नुकसान है
प्रकृति को भी भारी नुकसान हो रहा है
जल व जमीन के साथ-साथ मानव शरीर तथा हमारे पालतू पशुओ गाय-भैंस का दूध भी जहरीला हो रहा है ।
जमीन में बेतहाशा मात्रा में रासायनिक खादो व कीटनाशक के प्रयोग से जानलेवा बीमारीया जैसे-कैन्सर आदि के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। चैनी धान में मुख्य धान की फसल की अपेक्षा दुगनी मात्र में फर्टिलाइजर डाला जाता है।जमीन में नमीं बनें रहने के कारण धान की मुख्य फसल में कीड़े मकोड़े दुगनी रफ्तार से हमला करते हैं। जिससे धान की मेन फसल में कीटनाशक भी दुगनी तिगनी मात्र में डालना पड़ता है।
एक तरफ केन्द्र सरकार की मंशा है कि जैव पद्धति से जैविक खेती की जाए ताकि जमीन व मानव की सेहत दोनों को बचाया जा सके। दूसरी ओर प्रकृति और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँचाया जा रहा है।
जानवरों के चारे व सब्जियों में भी भारी मात्रा में कीटनाशक उपयोग किया जा रहा है। जो एक गम्भीर चिन्ता का विषय है। किसी भी सरकारी हेड पम्प के पानी की अगर जांच की जाए तो वह पीने लायक नहीं रहा है।
यह सब साठा धान की देन हैं।
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