
आज की आवाज–“नहीं राधिका, मीरा बनना, दुर्गा का अवतार जरूरी । गांव शहर में नर पिशाच हैं, हाथों में तलवार जरूरी”
आज की आवाज –
“नहीं राधिका मीरा बनना,
दुर्गा का अवतार जरूरी ।
गांव शहर में नर पिशाच हैं,
हाथों में तलवार जरूरी ।।
नहीं राम बन पाये लेकिन,
सीता की है इन्हें जरूरत ।
ऐसे चरित्रवानों का अब तो,
होना है प्रतिकार जरूरी ।।
नदी समय की चढ़ी हुई है,
खोट नियत में है नाविक की ।
भाग्य भरोसे मत बैठो तुम,
हाथों में पतवार जरूरी ।।
युग बदले पर क्या है बदला,
लगती रही दांव पर नारी ।
कितनी ही निर्दोष अहिल्या,
अब इनका उद्धार जरूरी ।।
प्रश्न राम पर नहीं उठें फिर,
सीता क्यों असमंजस में ।
फिर क्यों अग्निपरीक्षा आखिर,
सीत को हर बार जरूरी ।।
अग्निकाल है अब तो जागें,
कब तक सोयेंगे ‘संजीव’ ।
प्रेम गीत लिख लिये बहुत पर,
अब लिखना अंगार जरूरी ।।”
गीतिका – संजीव मिश्र ‘शशि’
पीलीभीत
मो. 08755760194