गजल : कलन्दर भी नही आया सिकन्दर भी नही आया, हुआ जब ख़ाक घर मेरा समन्दर भी नहीं आया

एक ग़ज़ल—-

कलन्दर भी नही आया सिकन्दर भी नही आया।
हुआ जब ख़ाक घर मेरा समन्दर भी नही आया।।

किया है कत्ल उसने तो हज़ारों बार ही हमको
मगर हैरत कि उसके हाथ खन्ज़र भी नही आया।।

हुए जब से ज़ुदा हो तुम उदासी साथ है अपने
कभी हम थे हँसे,वापस वो मन्ज़र भी नही आया।।

बना ली दूरियां उसने मिरी दुनिया से हैं ऐसी
कि बनकर ख्वाब आँखों के वो अन्दर भी नही आया।।

कतल की ख्वाहिशें जबसे सुकूँ है चैन है “संजू”
तमन्नाओं के दरिया में बबंडर भी नही आया ।।

गजलकार—संजीव शर्मा “संजू”

मुरादपुर पूरनपुर

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