मीडिया का खौफ : कभी अखबार में खबर छपने के डर से ही ट्रेन की जनरल बोगियों में बनाये गए थे शौचालय

इस दौर में भले ही प्रिंट मीडिया ने अपना रुतबा खो दिया है परंतु एक जमाना था जब अखबारों में खबर छपने से सरकार भी डरती थी और इसी को लेकर किसी दौर में रेलगाड़ियों की जनरल बोगी में शौचालय स्थापित किए गए थे। आपको यह खबर पढ़कर अखबार का महत्व ज्ञात हो जाएगा। हालांकि आजकल खबर का असर बेअसर हो गया है, फिर भी कुछ पत्रकार आत्ममुग्ध होकर खबर का फर्जी असर छापकर खुश हो लेते हैं।

@ ट्रेन में टायलेट @

तब ट्रेनों में शौचालय नहीं होते थे। ओखिल बाबू ने जम कर कटहल की सब्जी और रोटी खाई फिर निकल पडे अपनी यात्रा पर…

ट्रेन के डिब्बे में बैठे बैठे पेट फूलने लगा और गर्मी के कारण पेट की हालत नाजुक होने लगी। ट्रेन अहमदपुर रेलवे स्टशेन पर रुकी तो ओखिल बाबू प्लेटफार्म से अपना लोटा भर कर पटरियों के पार हो लिये, दस्त और मरोड़ से बेहाल ओखिल बाबू ढंग से शौच कर भी ना पाये थे कि गार्ड ने सीटी बजा दी। सीटी की आवाज सुनते ही ओखिल बाबू जल्दबाजी में एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ से धोती को उठा कर दौड पड़े….

इसी जल्दबाजी और हडबड़ाहट में ओखिल बाबू का पैर धोती में फंस गया और वो पटरी पर गिर पड़े।

धोती खुल गई, शर्मसार ओखिल बाबू को इस अवस्था मे ट्रेन तथा प्लेटफार्म से झांकते कई यात्रियों ने देखा।

कुछ अरे संभलकर बोले तो कुछ मुस्कुराए एयर कुछ ठहाके मारने लगे। ओखिल बाबू ट्रेन रोकने को जोर जोर से चिल्लाने लगे लेकिन ट्रेन चली गई और ओखिल बाबू अहमदपुर स्टेशन पर ही छूट गये

ये बात है 1909 की तब ट्रेन में टाॅयलेट केवल प्रथम श्रेणी के डिब्बों में ही होते थे,1891 से पहले प्रथम श्रेणी में भी टाॅयलेट नहीं होते थे।

ओखिल बाबू यानी ओखिल चन्द्र सेन नाम के इस यात्री को अपनी साथ घटी घटना ने बहुत विचलित कर दिया तब उन्होने रेल विभाग के साहिबगंज मंडल रेल कार्यालय के नाम एक धमकी भरा पत्र लिखा जिसमें धमकी ये थी कि यदि आपने मेरे पत्र पर कार्यवाही नहीं की तो मैं ये घटना अखबार को बता दूंगा (उस दौर में अखबार का बहुत डर होता था) उन्होंने ऊपर बताई सारी घटना का विस्तार से वर्णन करते हुए अंत में लिखा-

यह बहुत बुरा है कि जब कोई व्यक्ति टॉयलेट के लिए जाता है तो क्या गार्ड ट्रेन को 5 मिनट भी नहीं रोक सकता ? मैं आपके अधिकारियों से गुजारिश करता हूं कि जनता की भलाई के लिए उस गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं इसे अखबार में छपवाऊंगा।

रेलवे ने एक आम यात्री के इस पत्र को इतनी गंभीरता से लिया कि अगले दो सालों में ट्रेन के हर डिब्बे में टाॅयलेट स्थाापित कर दिये गये। तो ! ट्रेन में जब भी टायलेट का प्रयोग करो,ओखिल बाबू का शुक्रिया करना ना भूलो! ओखिल बाबू का वो पत्र आज भी दिल्ली के रेलवे म्यूजियम में सुरक्षित और संरक्षित है। (साभार-सोशल मीडिया)

Related Articles

Close
Close
Website Design By Mytesta.com +91 8809666000
preload imagepreload image