पत्रकारिता दिवस : गोकशी के झमेले में फंसी पूरनपुर पुलिस ने 2 पत्रकारों को झूठे मुकदमें में फंसाया, साथियों में आक्रोश

गौकशी की तरफदार, पुलिस के निशाने पर पत्रकार
बिना किसी जांच, साक्ष्य व बावजूद तथ्यहीन मुकदमा दर्ज करने बाली पुलिस संदेह के घेरे में

पूरनपुर/पीलीभीत। वाह रे कानून व्यवस्था उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री के गौवंशीय पशुओं के प्रति जताये जाने वाले प्रेम व समर्पण में अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग करने के एवज में पत्रकार को ही गौकशी करने वाले प्रधान व उसके पिता सहित एक कथित पत्रकार की शह पर झूठे मुकदमे का शिकार बना दिया गया। जिसकी तहसील जनपद ही नहीं बल्कि प्रदेश स्तर पर भी जमकर थू-थू हो रही है।
बताते चलें कि जिला पीलीभीत की तहसील पूरनपुर के पत्रकार शादाब अली व छायाकार शोएब अहमद उर्फ फूलबाबू द्वारा ट्विटर पर की गई शिकायतों व लिखित रूप से मिले एक गोपनीय शिकायती पत्र के आधार पर गौवंशीय पशुओं के वध संबंधित एक समाचार प्रकाशित किया था जिसमें इनाम स्वरूप पत्रकारों को झूठे मुकदमे का दंश झेलना पड़ रहा है।
ज्ञात हो कि तहसील पूरनपुर अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत गहलुईया के नवनिर्वाचित प्रधान मोहम्मद इमरान खां व उसके पिता कट्टरपंथी हाफिज सितारउद्दीन खां द्वारा एक स्वयं को एक मीडिया हाउस का स्वामी बताने वाले कथित पत्रकार तथा कुछ स्थानीय चाटुकार पत्रकारों की शह पर चुनाव जीतने की खुशी में समर्थकों व ग्रामीणों की गौवंश के पशुओं का वध कर मांस पकवा कर दावत कर दी गई थी। पत्रकार शादाब अली व फूलबाबू ने मुस्लिम होने के बावजूद अपने कर्तव्य का पालन करते हुए गौवंश पशु की के वध मामले की खबर प्राथमिकता के साथ प्रकाशित की जिस पर उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर संबंधित ग्राम प्रधान ने पुलिस से सांठगांठ कर उल्टा पत्रकारों पर ही रंगदारी मांगने व षड्यंत्र रचने सहित अन्य मनगढ़ंत आरोप लगाकर बिना किसी साक्ष्य के ही मुकदमा दर्ज कर दिया जिससे गौकशी मामले में पुलिस का संरक्षण व संलिप्तता भी उजागर हो रही। सुनिये पत्रकार सादाव अली की बात-

यहां चौंकाने वाली बात यह है कि कोतवाली के चक्कर लगाने के बाद पीड़ितों को मुकदमा दर्ज कराने में हफ़्तों महीनों गुजर जाते हैं। वहीं गौवंश के पशुओं के वध में संलिप्त ग्राम प्रधान की तहरीर पर पुलिस ने पत्रकारों पर बिना किसी जांच साक्ष्य मुकदमा दर्ज करने में देर नहीं की। जो कि विचारणीय ही नहीं बल्कि एक गहन जांच का विषय है। पीड़ित पत्रकारों के पक्ष में जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के तमाम पत्रकार संगठनों द्वारा उठाई गई आवाज के बावजूद भी स्थानीय पुलिस संबंधित ग्राम प्रधान के पक्ष की बात कर रही है और मुकदमा दर्ज होने के 09 दिन उपरांत भी मामले का पटापेक्ष नहीं किया गया है। जो कि किसी अनहोनी आशंका घटना की आशंका को जन्म देने का काम कर रहा है।   सुनिए छायाकार फूल बाबू की बात-

अभी देखना यह है कि पुलिस जांच में सत्य की जीत होती है या फिर गौकशी करने वालों के हौसलों को बल मिलता है। इसको लेकर पत्रकारों में पुलिस के प्रति आक्रोश बना हुआ है। उनका कहना है कि पुलिस अन्य मामलों में रिपोर्ट लिखने से बचती रहती है परंतु खुद का गोकशी में दागदार हो रहा दामन बचाने के लिए तत्काल झूठा मुकदमा लिख लिया। 

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