“मत कभी भी किसी का बुरा कीजिये, दोस्तों बस सभी का भला कीजिये”

मत कभी भी किसी का बुरा कीजिये
दोस्तों बस सभी का भला कीजिये,

एक दिन मंजिले भी मिलेंगी तुम्हे
हो बिछे खार फिर भी चला कीजिये,

क्या करेगा अंधेरा तुम्हारा भला
दीप बनकर हमेशा जला कीजिये,

ठोकरे राह की क्या करेंगी भी यह
बनके दरिया हमेशा बहा कीजिये,

गैर है आज वो कुछ नया तो नहीं
उसको अपना हमेशा कहा कीजिये,

हो गये फासले यह अलग बात है
ख्वाव में ही कभी तो मिला कीजिये,

रास्ते हैं जुदा यह पता है मगर
दो कदम साथ मेरे चला कीजिये,

याद करना उसे भीगना आँख का
काम कुछ तो ये तन्हा नया कीजिये।

संजीव कुमार तन्हा

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