हर जुबां पर बस भोले नाम, शिव जी को रिझाने में जुटा समूचा हिंदुस्तान

 

श्रावण मास में हर जुबां पर भोले का नाम रहता ही है, उनमें भी कुछ भोले के भक्त खास दिखते हैं। भोले को रिझाने को तरह तरह की युक्ति भक्तों द्वारा अपनाई जाती है। तमाम भक्त भगवान भोलेनाथ की भक्ति में इस कदर पूरी तरह लीन हो जाते हैं, कि वह दुनियादारी की सुध बुध भुला देते हैं। बस उनका जीवन बरबस भोले के रंग में रंगा दिखाई देता है।

इन चार तरह से शिव की कृपा पाने में जुटे भक्त

इसमें मुख्यता: चार तरह के भक्त भोले के भाव में नजर आते हैं। प्रथम घरों या शिव मंदिरों में नियमित शिव को बेलपत्र, धतूरा दूध, दही, भांग, रोली, अक्षत, पुष्प अर्पित कर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर मनाते हैं। दूसरे श्री रूद्राभिषेक, श्रृृंगार पूजा या अन्य धार्मिक अनुष्ठान कर भोलेनाथ को खुश

करने का काम करते हैं। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण और खूबसूरत तरीका कांवर के साथ गंगाजल लाकर शिव मंदिर में चढ़ाकर भोले को प्रसन्न करने का है। चौथे भक्त वे है, जो भोले के भक्तों के सेवादार के रूप में है, कांवरियों के लिए भंडारा, ठहरने खाने, पीने की व्यवस्था आदि में लगे रहते हैं। इन दान पुण्य करने बाले सेवादार भक्तों का भी प्रतिफल अन्य भोले के रिझाने वाले भक्तों से कम नहीं होता और दान पुण्य का फल बहुत ज्यादा माना जाता है।

सबसे कठिन है कावड़यात्रा

इन चारों तरीकों में सबसे कठिन तरीका कांवरियों का भोले को प्रसन्न करने का माना जाता है, जो भक्त लंबी यात्राएं नियम संयम के साथ तय कर अपने काम और परिवार से दूर रहकर भोले को मनाते हैं। रंग बिरंगी केशरिया रंग में रंगे परिधान पहन कर भोले भक्त भोले मय वातावरण बना देते है। डीजे पर थिरकते कांवरियों के जत्थे हर गली मोहल्लों सड़कों से गुजरकर गुलजार कर देते हैं फिर उनको देखने और उनकी सेवा भाव में उमड़ती भीड़ से लगता है कि अब इस भारत भूमि की धरती पर भोले पूरी तरह से विराजमान हो गए हो। यूं तो भोले को पाने के भांति भांति के तरीके हैं लेकिन कुछ भक्त पूरे

श्रावण मास फलाहारी या दुग्धाहार व्रत धारण करते हैं या फिर शिव का खास दिवस सोमवार को व्रत रखकर भोले की अराधना करते हैं। ऐसे भी भक्त हैं जो भोले के नामचीन मंदिरों में पहुंच कर अपनी भक्ति भाव को प्रकट करते हैं।

युवा पीढ़ी भी शिवमय

इस समय खास बात यह देखी जा रही है, कि आज की युवा पीढी कितनी भी अत्याधुनिक जीवन शैली में जीवन जी रही हो लेकिन भोले की भक्ति में वह भी झूम रही है। मेरा बचपन भी जब समझदार हुआ तो मैं भी भोले की भक्ति में रम गया। हर वर्ष सोलह सोमवार के व्रत धारण कर शुरू करता हूं। हमारा बेटा, भतीजा छोटे हैं, फिर भी कांवर भर कर कछला

गंगा घाट से लाते हैं और गोला गोकर्णनाथ के शिव मंदिर में चढ़ाते हैं। दरअसल श्रावण मास में भोले को खुश करने का जो माहौल भोले के महा उत्सव मेें है इसमें शामिल होने से जाने अंजाने में होने वाले पापों से छुटकारा मिल जाने का एक सरल और सशक्त माध्यम है।

शिव पार्वती आते हैं भक्तों की सुधि लेने

श्रावण मास में देश भर में इस महा उत्सव को देखने भोले माता पार्वती के साथ आते हैं और विचरण करते हुए अपने उत्सव को देखते हैं। जो भक्त भोले को अपनी भक्ती से रिझाते है वहीं भोले की कृपा के पात्र बन जाते हैं और मानव जीवन में सुख की अनुभूति जरूर करते हैं।

श्रावण मास पर मुकेश सक्सेना एडवोकेट की खास रिपोर्ट

 

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