पीलीभीत में विश्व कछुआ दिवस पर हुई ऑनलाइन प्रतियोगिताएं, प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराए
विश्व कछुआ दिवस।
*कछुआ क्षरण,जल प्रदूषण
*कछुआ, जल अपमार्जक
पीलीभीत। टाइगर रिजर्व , डब्ल्यूडब्ल्यूएफ व समाधान विकास समिति विपनेट किलर के तत्वावधान में इन लाइन मोड में विश्व कछुआ दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कछुआ के महत्व संरक्षण की आवश्यकता के बारे मे जानकारी देने के लिए प्रश्नोत्तरी पीलीभीत में
पाए जाने वाले कछुओं की जानकारी तथा स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रभागीय वनाधिकारी पीलीभीत टाइगर रिजर्व नवीन खंडेलवाल ने बताया कि आज का दिन लोगों का ध्यान कछुओं की ओर और उन्हें बचाने के लिए किए जाने वाले मानवीय प्रयासों को प्रोत्साहित करने का अवसर है। उन्होंने इस अभियान में जनसामान्य से जुड़ने का आह्वान किया। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी नरेश कुमार ने, कहां कछुए जल तंत्र के गया गिध्द होते हैं यह जल को साफ कर हमारे उपयोग लायक बनाते हैं हम सभी को कछुओं के संरक्षण करना चाहिए । कछुआ यदि बीमार या घायल न हो तो
कछुए को उसके प्राकृतिक निवास स्थल से बाहर न निकालें। केंद्रीय विद्यालय के मुनेंद्र पाल ने बताया कि नदियों में जल प्रदूषण का कारण कछुओं की कमी है। लोग विभिन्न कारणों से कछुओं का शिकार करते हैं। पीलीभीत में सुंदरी, कालाकोढ ,पचेड़ा ,कटहवा आदि कछुए पाये जाते हैं। समन्वयक लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि कछुओं से जुड़ी अनेक मान्यताओं, भोजन के रूप में प्रयोग तथा उत्तेजक औषधियों के निर्माण में प्रयुक्त के कारण लोग इनकी जान के दुश्मन हैं इनकी तस्करी की घटनाएं सामने आती है। 100 से 500रु मे खरीदा गया कछुआ प्रजातियों के हिसाब से हजारों में तस्करी होता है।
प्रतियोगिताओं में यह बच्चे हुए शामिल
कोमल, अनिमेष शर्मा सौरभ ,अंशी तृप्ति मिश्रा, अतिशय सक्सेना ,श्लोक, नेहा ,रोशनी मिश्रा, रुद्रांशी ,मृत्युंजय चिराग
अरोरा, पारस पंत आदि ने श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। कार्यक्रम से समाज में प्रकृति के बारे में विचार करने के क्लब के प्रयासों को गति मिली। प्रतिभागियों से अपने अनुभव समाज मेंसाझा करने को कहा गया।
कछुओं के बारे में और अधिक जानकारी के लिए WWF भारत के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी नरेश कुमार का यह लेख भी पढिये
विश्व में कछुओं की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें से 29 प्रजातियां हमारे देश में पाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में कछुओं की 15 प्रजातियां मिलती हैं। पीलीभीत जनपद में भी 12 कछुओं की प्रजातियों की पहचान हुई है
जलीय कछुए नरम तथा कठोर कवच वाले दोनों प्रकार के होते हैं तथा धरती पर रहने वाले कूर्म कहलाते हैं। पहले यह प्रजातियां बहुतायत में पाई जाती थी परंतु पिछले कई दशकों से अवैध शिकार प्राकृतिक आवास में भारी क्षति के कारण इनकी अधिकांश प्रजातियां संकटग्रस्त है
कछुए जल तंत्र के गिद्ध होते हैं तथा नदी तालाबों के दूषित पदार्थों एवं बीमार मछलियों को खाकर जल को प्रदूषण मुक्त कर एवं स्वच्छ कर हमारे उपयोग हेतु बनाए रखते हैं
कछुए परभक्षी होते हैं एवं खाद्य श्रंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
हम सभी ने बचपन में कछुआ और खरगोश कहानी सुनी है जोकि हमें जीवन में निरंतर प्रयत्नशील रहने की प्रेरणा देती है और जीवन में कामयाबी दिलाती है।
पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने कछप रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया तब जाकर देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया।
हमारी संस्कृति धर्म एवं लोकाचार में कछुओं का एक विशिष्ट स्थान है हिंदू धर्म में कछुओं को विष्णु का अवतार माना गया है इन्हें यमुना नदी का वाहन भी माना जाता है इस्लाम धर्म में इन्हें शापित जिन के रूप में माना जाता है
आज मनुष्य को सबसे ज्यादा धन की आवश्यकता है और उसका हर कार्य धन के लिए ही हैं। धन की प्राप्ति और अपने मनोरथ को पूर्ण करने के लिए वह धन के देवता कुबेर के प्रतीक कछुए को हाथ में मुद्रिका के रूप में पहनता है तथा धन यंत्र के रूप में अपने पूजा स्थान में जगह देता है। परंतु आज बड़ी विडंबना है की मनुष्य कछुए के प्रतीकों को तो बहुत अधिक महत्व दे रहा है परंतु साक्षात जीवित कछुओं के लिए काल साबित हो रहा है कहीं वह इसके लिए प्रत्यक्ष रूप में तो कहीं वह अप्रत्यक्ष रूप में उनकी हत्या में शामिल है। कछुओं का अत्याधिक शिकार मांस भक्षण एवं औषधि निर्माण के लिए किया जाता है। कछुआ का स्थानीय स्तर पर भी शिकार किया जाता है तथा कुछ संगठित समूह के द्वारा इनकी तस्करी में भी लिप्त हैं।
बहुत सारे मछली का शिकार करने वाले के द्वारा निशप्रयोज जालों को समुद्र में छोड़ दिया जाता है, नदियों में फेंक दिया जाता है जिनमें बहुत सारे कछुऐ उलझ कर मृत्यु को प्राप्त होते हैं जो कि हम को प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता। कछुए समुंदरों, नदियों, जलाशयों, झीलों, छोटे तलाब में निवास करते हैं परंतु आज मानव कि उपभोग नीति के कारण जल संसाधनों की कमी हो रही है नदी नदिया दूषित हो रही है। जल संरचनाओं को मानव की विस्तार वाद नीति के कारण नष्ट/पाटे जा रहे हैंजा रहे हैं जिससे कछुओं का प्राकृतिक वास नष्ट हो रहा है। बहुत सारा अजैविक कचरा नदियों में वहाये जाने के कारण पानी प्रदूषित हो रहा है।
मांस भक्षण के लिए शिकार, दवा निर्माण के लिए तस्करी एवं प्राकृतिक वास का नष्ट होना, नदियों का प्रदूषित होना, समुद्रों में कचरे का एकत्रीकरण यह वह प्रमुख कारण है जिनसे आज इस प्रजाति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यह स्थिति केवल एक देश में ही नहीं अपितु पूरे संसार में है इसलिए पूरा विश्व इनके संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है ताकि पृथ्वी पर सबसे अधिक समय तक जीवित रहने वाले प्राणी को बचाया जा सके इनके संरक्षण में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, टी एस ए जैसे संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और प्रथम पंक्ति के रूप में वन विभाग इनके संरक्षण में लगा हुआ है। प्रत्येक देशवासियों का कर्तव्य है कि हम प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को संरक्षण प्रदान कर सकें ताकि पृथ्वी पर जैव विविधता का संतुलन बरकरार रहे इसी में सबका भला है