कविता या यथार्थ : बलात्कारियों से तो आतंकी ही अच्छे

डर जाती हर वह मां, जिसकी बेटी जवान होती है।
क्योंकि हर गली, हर नुक्कड़ मानवता से सुनसान होती है।
हैवानियत ने कर ली है तरक्की।
लड़कियां तो थी ही अब शिकार हो रहीं बच्ची।।

कहने को तो बड़ी-बड़ी बातें होती हैं।
शोक मनाने को कैंडल मार्च में जमातें होती हैं।
बलात्कारियों के खिलाफ आवाजें उठाने में भी हाफी आती है।
पर क्या इन जैसे हैवानों के लिए कानून की सजा काफी होती है।
और कभी कभी तो उसमें भी माफी होती है।
दुनियां जानती है कि वहां किसी मासूम की इज्जत नीलाम होती है।
और यहां न्यूज़ चैनल टीवी भी विश्वास खोती है।
लड़की हिंदू थी या मुस्लिम, बलात्कारी हिंदू थे या मुस्लिम। कहीं लड़की ही तो खोंटीं नहीं थी।
या कहीं उसकी स्कर्ट ही तो छोटी नहीं थी।
तो जी हां ! इस बार छोटी ही थी।
पर जनाब उसकी स्कर्ट नहीं उसकी उम्र ही छोटी थी।
अरे बलात्कारियों से अच्छे तो आतंकवादी होते हैं।
एक ही झटके में सब की जिंदगी खत्म कर देते हैं।
बलात्कारियों की तरह अपनी हवस मिटाने को बच्चियों या औरतों से गलत काम तो नहीं करते हैं।
शर्म करो, बेशर्मो तुम जैसे हैवान ही पूरे मर्दों को बदनाम करते हैं।
क्योंकि हर गली हर नुक्कड़ पर लोग दानवता के गुणगान करते हैं।।

तनिषा त्रिपाठी कानपुर।

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