
पत्रकारिता दिवस पर विशेष : कुछ गलत फहमियां पाले हैं…हम पत्रकार दिलवाले हैं….
पीड़ा पत्रकार की
जोखिम भी अजब निराले हैं।
चौतरफा संकट डाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
चौथा स्तंभ बताते हैं।
नारदवंशी कहलाते हैं।
सब कहते सच ही लिखना है।
तुमको बिलकुल ना बिकना है।
नैतिकता ने कंगाल किया
पेटो में चूहे पाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
वेतन भत्ता पर आह नहीं।
करता कोई परवाह नहीं।
बतलाओ किसको चाह नहीं।
दुख दर्दों की है थाह नहीं।
आकर घर पर मेरे देखो
मुश्किल हो गए निवाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
मिल पाता कहीं मुकाम नहीं।
दिन रात निपटता काम नहीं।
चौबिस घंटे आराम नहीं।
कर पाते घर का काम नहीं।
संतुष्ट आज तक नहीं हुए,
साहब जो ऊपर वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
हैं साथी सब डिग्रीधारी।
अनुभवी, योग्य, निष्ठाधारी।
रोजगार मिला ना लाचारी।
पग पग पर है मुश्किल भारी।
नाराज लग रहा है ईश्वर,
दुर्दिन ने पथरा डाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
विधना ने संकट डाला है।
मेरा भविष्य तो काला है।
ज्यों नशा चढाती हाला है।
रुतवे का वहम निराला है।
कैसे छोड़ें इसको मित्रों
बच्चन मधुशाला वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
पैकेज खबरों के आते हैं।
कफ्फन पहले दे जाते हैं।
साइज का मुर्दा लाना है।
वरना मुंह ना दिखलाना है।
डरपाते ब्यूरो प्रमुख सदा
संपादक गुस्से वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
वेतन भत्ता कुछ फिक्स नहीं।
दस बीस छोड़िए सिक्स नहीं।
बेगार कराते डेली हैं।
ऊपर से सेखी पेली है।
कुछ मानदेय दे देते हैं,
वेतन भत्ते सब टाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
फोटो वीडियो बनाना है।
नारे भी तो लगवाना है।
आयोजन सेट करवाना है।
नभ के नक्षत्र ले आना है।
दिन रात दौड़ते रहते हैं,
ना दिखे पैर के छाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
हम सरस्वती सेवाकारी।
उल्लू ने है आफत डारी।
लक्ष्मी मातु से दूरी है।
अरदास हुई ना पूरी है।
हो जाए कृपा तो यह दुनिया
इल्जाम हजारों डाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
सबकी चिंता रख लेते हैं।
अंदर की भी पढ़ लेते हैं।
खोजी छवि भी गहराई है।
गोपन में सेंध लगाई है।
अपने घर का है पता नहीं
रहते कैसे घर वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
जीवन जीने की लीक नहीं।
भोजन का सिस्टम ठीक नहीं।
ठंडा खाना मजबूरी है।
खाने से खबर जरूरी है।
पशुओं जेसी दिनचर्या है,
जीवन प्रभु राम हवाले है।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
ऊपर से कोई आस नहीं।
दें साथ और अवकाश नहीं।
कहते यदि ऊंचा पद पाना।
तो फिर भूलो आना जाना।
चमगादड़ से लटके रहते
उन्नति के ख्वाब निराले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
रिश्ते भी मेरे टूटे हैं।
सब हितू मित्र भी रूठे हैं।
ना समय कहीं भी जाने का।
ठेका छपने छपवाने का।
सब कहते अक्सर यही मित्र
यह तो दुसरे ग्रह वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
मेला बाजार भुलाए हैं।
शापिंग भी नहीं कराए हैं।
मैडम का कोप निराला है।
बच्चों ने मेसेज डाला है।
है जन्मदिवस वाला उत्सव
पापा दावत क्यों टाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
मत कहना मुझे निकम्मा है।
पूरे समाज का जिम्मा है।
नेता अफसर सब मेरे हैं।
छुटभैया रहते घेरे हैं।
साहब जी चाय पिलाते हैं,
डर जाते वर्दी वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
कुछ से मतलब की यारी है।
खाने पीने की पारी है।
कुछ बिना बात बतियाते हैं।
शर्मा कर चाय पिलाते हैं।
जाते ही कहते मुफ्तखोर
आ जाते फोकट वाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
यदि कह दो अच्छे मोदी हैं।
सब कहते यह तो गोदी है।
बिकने वाला बतलाते हैं।
आरोप हजारों लाते हैं।
जाने क्या क्या पदवी देते,
कहते झूठों के साले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
रुतवा आफत ले आया है।
अब भीड़तंत्र का साया है।
अनपढ़ भी तो घुस आते हैं।
संपादक खुद बन जाते हैं।
हो गई कहावत सत्य आज
अक्षर महिषी भर काले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
यूनिट हर साल बढ़ाते हैं।
चैनल अपने खुलवाते हैं।
मालिक सब दिल के काले हैं।
बढ़ते कोठी के माले हैं।
छप्पर से गायब फूंस हुआ,
वर्कर घर छत के लाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
आर्थिक समस्या हरने को।
वेतन भत्ते सेट करने को।
आयोग बना था सरकारी।
कचरे में है रिपोट डारी।
लागू मजीठिया वेज करो
क्यों तेल कान में डाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
मोदी जी और न वेट करो।
कुछ बढ़िया सिस्टम सेट करो।
कानून नया कोई लाओ।
वेतन बढ़िया सा दिलवाओ।
दुश्मनी पत्रकारों से क्या
जब सबके संकट टाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
तूती ना नक्कारों की हो।
योग्यता पत्रकारों की हो।
साहब जी थोड़ा कष्ट करो।
यह भीड़ तंत्र भी नष्ट करो।
हो राज तिलक उनका अब
भी चौथा स्तंभ सम्हाले हैं।
कुछ गलत फहमियां पाले हैं।
हम पत्रकार दिल वाले हैं।।
……..
रचनाकार..सतीश मिश्र “अचूक”
पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
इस लिंक से सुन सकते हैं मेरा गीत
youtu.be/c2Q5V2bt65I?si…
पत्रकारों की दिनचर्या
पीलीभीत आने वाले संपादकों की चाहत