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पुस्तक समीक्षा “गर्दभ लत्तीसी” : पात्र भले ही गधा लेकिन दिखता है तमाम खूबियों से लदा

आचार्य कृष्ण कुमार मिश्रा चंचल जी की

आचार्य केके मिश्रा चंचल जी

पुस्तक गर्दभ लत्तीसी की समीक्षा

वैताल पचीसी पुस्तक आपने जरूर पढ़ी होगी। परंतु आज मेरे हाथ में इससे मिलते जुलते नाम वाली एक और पुस्तक है। इसका नाम गर्दभ लत्तीसी है। कवर पेज पर गधे का प्यारा सा चित्र छपा है।

इसे लिखा है पीलीभीत जिले के बिलसंडा निवासी वरिष्ठ कवि व साहित्यकार आचार्य कृष्ण कुमार चंचल जी ने।

इस लिंक से चंचल जी का इंटरव्यू सुन सकते हैं-

https://youtu.be/VL1fD1R2iig?si=HDmGtXit_VaLIK5p

इस पुस्तक में गधे रूपी पात्र को सामने करके व्यवस्था पर करारे व्यंग्य किए गए हैं। ऑफिस की घूसखोरी और बास की चमचागीरी को गधे के चरने से जोड़ा है। किस तरह माल गटकना है यह भी बताया है। वे अपने गधे को इसमें शामिल होने का आमंत्रण देते हुए मौजूदा व्यवस्था पर करारा प्रहार करते हैं। पुस्तक का इस विषय पर एक सवैया देखें-

ऑफिस मा घुसि घूस चरौ चमचा सुड़कौ गट से गटकौ।
बास के पास चरौ चुपचाप मिले जो उसै झट से झटकौ।पांच की आंच मा घूमि फिरौ उझकौ झिझकौ न कहूं अटकौ।
माल चरौ मनमाने यहां मन माने चलो न व्यथा भटको।।

श्री चंचल ने गधे को शीतला मां का वाहन बताते हुए महान घोषित किया है। वर्ष 2013 में प्रकाशित हुई 20 पेज की उनकी इस पुस्तक में गर्दभ को समर्पित 36 सवैया छंद संकलित हैं।

इसमें 16 मदिरा, 16 मत्तगयंद, 2 दुर्मिल, 1 अरसात व 1 अन्य सवैया शामिल है। तमाम मुहावरों का प्रयोग खड़ी बोली के इन छंदों में किया गया है तो विविध अलंकारों की भी भरमार है। छंदों का तुकांत, शब्द चयन इतना अच्छा है कि श्री चंचल की इन छंदों पर पकड़ को परिलक्षित करता है। कर्म करने वाले को संसार में महान बताया जाता है परंतु चंचल जी गधे के कर्म करने पर सवाल उठाते हुए उसके भाग्य को ही दोषी ठहराते हैं। इस पर उनका यह सवैया जरूर पढ़ना चाहिए-

लाख करौ तदवीर लला सब व्यर्थ कला तकदीर के आगे।
कर्म करो दिन-रात भले पै बिसात न भाग्य लकीर के आगे।
भोजन थाल बिलात सुने हम भाग्यविहीन फकीरे के आगे।
फीकी तुम्हारी गुणावलि है इस मूरखता की नजीर की आगे।।

गधे को कहां कहां चरना चाहिए वे स्थान चंचल जी ने कायदे से ठीक वैसे ही सुझाए हैं जैसे हमारे नेता गण अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हैं। अब तक 10 पुस्तकों की रचना कर चुके केके मिश्रा गधों को मनुष्य से बेहतर मानते हैं।

घटतौली करने वालों, झूठ बोलने वालों, क्रोध, मोह व अन्य कुरीतियों में जकड़े मानव से वे गर्दभ को कहीं अच्छा मानते हैं क्योंकि वह इन सबसे दूर है। छल करके सरकार गिराने वालों पर कटाक्ष करते हुए श्री चंचल इसमें लिप्त न होने वाले गधे की तारीफ भी करते हैं। इस पर उनका यह छंद देखिए-

जीवन में घट तौल करी न कभी इन किन्हीं मिलावटखोरी।
झूठ कही न बने कबहूं बदलू मिलि के सरकार न तोरी। कामु करै, पर क्रोध नही मुलु लोभ न घूस लपूस चटोरी।
मोह नहीं मद से अति दूर न क्रूर कभी छलिया न छछोरी।।

गर्दभ के चाल चरित्र का चित्रण उन्होंने अपने सभी छंदों में किया है, स्थान की कमी के कारण हम उनके इस पुस्तक के काफी अच्छे सवैया भी यहां नहीं लिख पा रहे हैं।

आचार्य केके मिश्रा चंचल जी

चंचल जी फागुन आने से चिंतित हैं और अपने मिरखू नामक गधे को चेताते हुए लिखते हैं कि –

फागुन मा हुरियारन से बचि के रहियो जह देत बताये।
हाथ लगे उनके फिरिहौ मिरखू अपनों मुंह लाल रंगाये।
पीठि औ पेट मा नारे लिखैं अशलील तुम्है जो न जात सुनाये।
पूंछ मा बांधि दिहै़ं पिपियां कुटियां फिरिहौ पिछवा भकुआये।।

कुल मिलाकर श्री मिश्र की गर्दभ लत्तीसी पुस्तक पढ़ने योग्य है। इसे पढ़कर आप सवैया लिखने की ट्रेनिंग ले सकते हैं। यह समझ सकते हैं कि एक नीरस पात्र पर भी कितना अच्छा लिखा जा सकता है। व्यंग्य किस अंदाज में किया जा सकता है यह सीखने के लिए भी यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। किसी पुस्तक की समीक्षा पहली बार लिख रहा हूं इसलिए संपूर्ण पुस्तक कैसी है, यह सिद्ध करने हेतु इस पुस्तक में आचार्य केके मिश्र चंचल जी द्वारा लिखे गए अंतिम सवैया का ही सहारा लेता हूं। गौर फरमाइए-

हास हुलास भरी रचना सुविलास सनी परिहास मयी।
सत्य कथा करुणाद्र व्यथा युग वोध प्रवोध प्रकाश मयी।
मानवता समता ममता प्रतिवोधक बुद्धि विलास मयी।
वाच्य विधा अभिधा निहिता परिपूर्ण व्यंग्य विकास मयी।

इस लिंक से चंचल जी के कृतित्व व व्यक्तित्व पर उनसे वार्ता इस लिंक से सुन सकते हैं-

https://youtu.be/VL1fD1R2iig?si=HDmGtXit_VaLIK5p

अंत में मेरा यही सुझाव है कि अगर आप व्यंग्यकार हैं, व्यंग्य के विद्यार्थी हैं अथवा युगीन कवि या साहित्यकार हैं तो आपको गर्दभ लत्तीसी पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए। जानना चाहिए कि भक्ति भाव और राष्ट प्रेम को रचने, पढ़ने व जीने वाला केके मिश्रा चंचल जी जैसा व्यक्तित्व इतने सुंदर व्यंग्य भी लिख चुका है और वो भी थोक में। उनकी रचना शीलता को प्रणाम करता हूं। शुभकामनाओं सहित।

समीक्षक-

सतीश मिश्र अचूक
संपादक समाचार दर्शन 24 मो.9411978000

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