फ़िल्म अभिनेता राजपाल यादव जी से सुनिये कितना सुंदर है अपना रुहेलखंड मंडल
उत्तर प्रदेश में प्रश्न बना,
बोलो कैसे सुलझाये हम?
अपने मंडल की सुंदरता,
किन नयनों से दिखलायें हम??
नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर फ़िल्म अभिनेता राजपाल यादव जी से सुनिये यह पूरी कविता-
सालों पहले खोया झुमका,
खो गए खोजने वाले भी,,
जी हाँ..हाँ.. उसी बरेली के
हैं लाखों रँग निराले भी,,
धर ध्यान धैर्यपूर्वक सुनो,
कण कण से तुम्हें मिलाऊँगा,
मनभावन मस्त तराई का,
कोना कोना दिखलाऊँगा।
सबसे पहले हम चलें वहाँ
जो पीलीभीत कहाता है,
हैं आँगन शहर बरेली का,
हर कोई आता जाता है।
उत्तर में मुकुट पर्वतों का
शोभित कुबेर के सर पर है
यह वास्तु शास्त्र बतलाता है
यह ही कुबेर जी का घर है।
धरती पर पर्वत,वन,नदियां
सम्पत्ति अकूत प्रकृति की है,
मन मोह न ले आगन्तुक का
तो भूल उसी जड़मति की है।
माँ पूर्णागिरि का दिव्य धाम
पावन नानक का गुरुद्वारा।
जलराशि शारदा सागर की,
गोमती नदी उद्गम धारा,,
नेपाल देश इक सुंदर सा
सीमा रेखा के उधर बसा.
ज्यों रक्त शिराओं सी बहती
नहरों का है उद्गम बनबसा।
वनराज प्रजा को सँग लिए
बेरोकटोक घूमते जहाँ
दुधवा का अभ्यारण्य वही,
चालिस पचास ही मील यहाँ
चूका का अनुपम सौंदर्य
ठंडक देता है आँखों को,
मन पंक्षी बार बार छूना
चाहे इन कोमल शाखों को
थोड़ा सा दक्षिण में चलते हैं,
है भूमि शहीदों वीरों की,
कहलाती शाहजहांपुर है,
जननी अशफ़ाक़ फकीरों को,
पण्डित बिस्मिल को शीश झुका,
रौशन को नमन करो प्यारे।
माथा टेको कर बन्द नयन,
काकोरी मंदिर के द्वारे।
मंदिर स्थापित नहीं मगर
मेरे त्रिदेव तो पूजित हैं,,
देकर बलिदान स्वयं का वे
सब परमधाम में हर्षित हैं।
दक्षिण द्वारे पर परशुराम,
नगरी पूजित है पावन है।
उत्तर में नदी गोमती तट
शिव सुनासीर मनभावन है।
माँ गंगा और रामगंगा का
कटरी में सँग सँग बहना,
लहराती फसलों पर सूरज की
स्वर्णिम किरणों का क्या कहना,
बाबा नानक के चेलों के,
लँगर पर लँगर चलते हैं।
लोहा अधर्म से लेने को,
गोविंद के बाज मचलते हैं।
गाथाएँ ही गाथाएँ हैं,
वीरों की शौर्य कहानी की,
जिस मिट्टी में जन्मे हैं हम
है स्वतंत्रता सेनानी की,
सुंदर बिसरात घाट जाकर,
जब हनुमत धाम दिव्य देखा,
मंदिर देखा जब विश्वनाथ,
मिट गईं सभी काली रेखा।
सेना के वस्त्र बनाने में,
तत्पर ओ सी एफ कर्मवीर,
मीलों फैली छावनी और,
हुँकार रहे सैनिक अधीर।
विख्यात रामलीला मंचन,
जन्में हैं जिसने राजपाल
मायूसी हरते चुटकी में,
नौरंगी बन करते कमाल।
जी हाँ, इस मिट्टी में जन्में,
इस मिट्टी में खेले खाये,
मायानगरी से ले विदेश तक,
अपनी छाप छोड़ आये।
फिर भी ना जन्मभूमि भूले,
वे सच में अंश राम के हैं
सोने की लङ्क लुभा न सकी,
समअवध कुंडरा ग्राम के हैं।
फिर चलते हैं झुमका नगरी
सेटेलाइट यहाँ अकेला है,
है तो विमानपत्तन भी पर
इक उजड़ा उजड़ा मेला है।
है नैनीताल बगल में ही,
तालों में ताल कहाता है।
मन खो जाता वादी में,
फिर बेमन वापस आता है।
झरने अपनी कल कल में
संगीत लोरियाँ गाते हैं।
इतने सुंदर इतने अनुपम
धरती का स्वर्ग कहाते हैं।
मंडल की शोभा गाने में,
मैने जो शब्द सजाए हैं।
ये तो बस सौंवा हिस्सा हैं
हम लेशमात्र कह पाए हैं।
ये झलकमात्र है उसकी जो
आकर तुम देखोगे प्यारे।
आओ आगन्तुक!स्वागत है,
अब खड़े रहो मत इस द्वारे।
ब्रह्म स्वरूप मिश्र “ब्रह्म”
(खुटार) शाहजहांपुर
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