हजारों लोगों को न्याय दिलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार आशीष अग्रवाल खुद सिस्टम से हार मानकर दुनिया से चल बसे
बरेली। उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड डिवीजन और उत्तराखंड की पत्रकारिता में एक बड़ा नाम आशीष अग्रवाल, जिन्हें उनके सभी अपने अजीज “आशीष जी” के नाम से संबोधित करते थे, वह सरकारी सिस्टम से जूझते हुए बुधवार को दुनिया को अलविदा कह गए। एक तो कैंसर ग्रस्त और उस पर कोरोना काल में जिस तरह से प्रसार भारती ने उनके साथ निर्दयता पूर्ण व्यवहार किया, उससे वह इन दिनों बुरी तरह टूट गए थे। दैनिक अमर उजाला संस्थान बरेली और मुरादाबाद में एक लंबे अरसे तक आशीष अग्रवाल कार्यरत रहे। उत्तराखंड आंदोलन में जान डालने के लिए जब भी मीडिया का जिक्र आया तो आशीष अग्रवाल उससे अछूते नहीं रहे। उत्तराखंड आंदोलन में जिस तरह से टीम लीडर के रूप में बेहतरीन कवरेज कराके उन्होंने अमर उजाला अखबार की एक अलग पहचान बनाई, वह किसी से छिपी नहीं है।
जरा सी बात पर अमर उजाला छोड़कर घर बैठ गए। उसके बाद फिर अमर उजाला में आए मगर अपने सिद्धांतों से कोई समझौता करने को तैयार नहीं हुए। उनका काम करने का एक अलग अंदाज उनकी एक अलग पहचान थी। देहरादून गए और साइड स्टोरी नाम से एक मैगजीन निकाली, मीडिया की प्रतिस्पर्धा में मैगजीन बहुत दिनों तक बाजार में नहीं टिक सकी। इस बीच उन्होंने एलएलबी की और बरेली जिला जजी में बैठने लगे लेकिन वकालत का पेशा भी उनको रास नहीं आया। बाद में अमर उजाला के संपादकीय सलाहकार टीम में शामिल हो गए। इस बीच केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लंबे समय तक उनका छात्र जीवन में जुड़ाव रहने के कारण उनकी नियुक्ति प्रसार भारती ने डीडी न्यूज़ में कर दी।
श्री अग्रवाल को अगस्त 2018 में कैंसर रोग का शिकार होना पड़ा, हालांकि इससे पहले वह अपनी तकलीफ को एक वर्ष तक राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में दिखाते रहे। वहाँ के प्रमुख डाक्टर एके दीवान उन्हें कैंसर न होने की बात करते रहे। आखिर में बायोप्सी कराने के सलाह में उन्हें मामूली सा कैंसर बता दिया गया। खैर उनका बड़ा आपरेशन हुआ। उन्होंने दिल्ली के बी एल कपूर अस्पताल में अपना आपरेशन कराया। उसके बाद करीब एक माह बाद वह फिर अधिकारियों की अनुमति से आफिस गए। मगर डाक्टरों की एक माह बाद रेडियेशन की सलाह के बाद वह शारीरिक रूप से उस समय इस लायक नहीं रहे कि आफिस जा सकें। बाद में वह 2019 में अपने घर बरेली आ गए। 2020 में मार्च में लाक डाउन की घोषणा और कोरोना के प्रकोप के चलते जब सभी जगह work from home की घोषणा हुई तो उन्होंने अपने लिए वर्क फ़्रोम होम मांगा। इस बीच बरेली के सांसद और केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखकर श्री अग्रवाल का बरेली दूरदर्शन केंद्र या आकाशवाणी मे तबादला करने की सिफ़ारिश की, मगर यह पत्र भी प्रसार भारती की भूल भुलैया में खो गया, जिसका कोई जवाब भी सूचना मंत्री और केंद्रीय श्रम मंत्री को नहीं दिया गया। केंद्र सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्रियों के सिफ़ारिशी पत्र को भी नौकरशाहों ने इगनोर कर दिया। सरकारी सिस्टम से जूझते हुए आशीष अग्रवाल पूरी तरह टूट चुके थे।
बुधवार की सुबह जिसने भी सुना, वही अवाक रह गया। परसों ही उन्होंने “झुमका बरेली का” व्हाट्सएप ग्रुप पर किसी ने तबियत हाल पूछा तो लिखा था- जी लग तो रहा है, अंतिम दौर है। एफबी पर पोस्ट डालते रहते थे, जीवन बड़ा कष्टमय है। अब समय आ चला है ….।
यकीन नहीं हो रहा है कि हम सबके प्रिय आशीष जी अब हमारे बीच में नहीं है। उनका अनायास ही यूं चला जाना झकझोर गया। मुझे कोरोना हुआ तो दिन में कई कई बार व्हाट्सएप पर हालचाल पूछते रहते थे। कुछ दिन पहले मैसेज आया था कि कब आओगे। बरेली आना तो मुझसे मिलकर जाना। जरूरी बात करूंगा।
उस दिन बहुत खुश हुए, जब उनको पता चला था कि मैं मजीठिया का केस जीत गया और मैंने एचटी मीडिया संस्थान की आरसी कटवा कर बरेली कलक्टर को भिजवा दी। घर बुलाया, पीठ थपथपाई, पत्नी से बोले ये है निर्मल। इसने कम्पनी की आरसी कटवा दी। ऐसे लोग मेरे साथ हैं।
आज बुरी खबर मिली। मन बुरी तरह व्यथित है। पता नहीं कौन सी अपने मन की बात कहना चाहते थे, अफसोस मैं बरेली नहीं जा पाया और उनकी मन की बात नहीं सुन सका। आशीष जी की कमी हमेशा खलेगी। प्रभु उनकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे। मुश्किल है आपको भुला पाना आशीष जी।
ॐ शांति ॐ।
निर्मल कांत शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार
मंडल अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन
बरेली मंडल बरेली
मोबाइल-7017389915
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