बमरौली में कुंवर भगवान सिंह की समाधि को नसीब नहीं हुए श्रद्वा के दो फूल
आज दो जून को बमरौली के प्रथम विधायक और क्रांतिकारी अपराजय योद्वा कुंवर भगवान सिंह की पुण्यतिथि पर विशेष
बिलसंडा( पीलीभीत)। जहां लिखा गया आजादी का स्वर्णिम इतिहास….,जो बनी जहां काकोरी काण्ड की गवाह….! आज वहां है सब कुछ वीरान…., वो धरोहर जो आजादी की कहानी का दास्तां सुना रही थी, संरक्षण और संवर्धन के अभाव में अपनी पहचान खो चुकी है– ऐसा क्यों…? वो चौरा जो आज एक सख्श के कारण सुरक्षित तो हो गया परंतु उनकी समाधि पर दो फूल भी श्रद्धा के नसीब नहीं हो सके… आखिर ऐसा क्यों…?। आज वहां की समाधियां भी एक साल पूछ रही है कि आखिर उनका कसूर क्या है..? आखिर उनकी उपेक्षा क्यों -?। यह सब पढ़ते पढ़ते आपको जिज्ञासा हो रही होगी कि आखिर यह सब क्या है और वरिष्ठ पत्रकार मुकेश सक्सेना एडवोकेट आखिर किस सख्श को लेकर इतनी माथापच्ची कर रहे। तो आइए आपको ऐसे सख्श से रूबरू कराते हैं। यह महान सख्श है पीलीभीत जिले की तहसील बीसलपुर के ब्लाक बिलसणडा के गांव बमरौली निवासी क्रांतिकारी अपराजय योद्वा कुंवर भगवान सिंह। जो आज ईश्वरीय लोक के बीच है और 2 जून आज उनकी पुण्यतिथि है। कुंवर साहब को क्षेत्र के प्रथम विधायक और नेपाल के राजदूत होने का सौभाग्य प्राप्त है। देश की आजादी की जंग में जिले की बागडोर संभालने वाले कुंवर साहब को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आजादी की जंग 1947 से पहले देश सेवा और आजादी की दीवानगी के लिए अपने तहसीलदार पद को त्याग दिया और सत्याग्रह आंदोलन में जंगल में घास पत्ते खाकर आन्दोलन में अहम भूमिका निभाने लगे। पुलिस से बचने और आन्दोलन को जारी रखने के लिए अपने घर नहीं आ सके और पत्नी ने जिस एकलौती संतान को जन्म दिया उसका उपचार न करा पाने के कारण उसकी जिंदगी नहीं बचा पाए और देश के लिए अपनी एकलौती संतान को निछावर कर दिया। आज उनका अपना दीपक भले ही बुझ गया लेकिन देश को आजादी की रोशनी के लिए उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सका। कुंवर साहब कई बार जेल गए और अंग्रेजों के चाबुकों को सहकर भारत मां का जयघोष करते रहे। यहां तक काकोरी काण्ड को अंजाम देने के लिए लूट की योजना भी उनकी गढ़ी में बनी थी और योजना बनाकर एक साहूकार के घर डाका डालकर एकत्र धन के लिए काकोरी काण्ड को अंजाम देने में खर्च किया गया। इसलिए बमरोली की कुंवर साहब की गढ़ी काकोरी काण्ड की गवाह है। अफसोस..? आज कुंवर साहब की हवेली जहां आजादी का स्वर्णिम इतिहास लिखा गया था खंडहर में तब्दील होकर भूली बिसरी दास्तां सुना रही है। हमारे प्रिय मित्र क्रांतिकारी विचार मंच उत्तर प्रदेश के संरक्षण देवस्वरूप पटेल ने कई वर्षों पूर्व कुंवर साहब की पुण्यतिथि पर समारोह पूर्वक याद करने की पहल की और उनकी समाधि पर उगे झाड़ फंनूस भी साथ कराकर व्यवस्थित कराई और श्रद्वां के पुष्प भी अर्पित करते रहे परंतु कूछ समय से सामाजिक पटल पर अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण इस समारोह को तो बंद करना पड़ा फिर भी उनके द्वारा श्रंदा के दो पुष्प अर्पित किए जाते रहे परंतु इस बार उनके अस्वस्थ होने के कारण वो समाधि स्थल पर तो पुष्प अर्पित करने नहीं आ सके परंतु घर में ही कुंवर साहब के चित्र पर माल्यार्पण कर नमन करके याद किया।
अफसोस ! इस बात का है क्या कुंवर साहब के योगदान को इतनी सहजता से भुलाया जा सकता है अगर नहीं तो फिर इतनी बमरोली में बेरुखी क्यों-? इस आजादी के दीवानें की समाधि को दो पुष्प श्रंद्वा के नसीब होने चाहिए थै। आज कुंवर साहब की सूनी समाधि एक एक सवाल तो जरूर पूछ रही है कि..! मेरा कसूर तो बताइए-? रिपोर्ट-मुकेश सक्सेना एडवोकेट
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