“विचित्र” के हंसगुल्ले : “सुंदर से अतिसुन्दर तो हो सकती है, किसमिस को अंगूर बनाना नामुमकिन”
हास्य मुक्तक
1
शिकायत और होती है गिला कुछ और होता है,
वफ़ा और बेवफ़ाई का सिला कुछ और होता है।
जवानी के तज़ुर्बे तो तुम्हें भी हैं हमें भी है,
बुढ़ापे में मोहब्बत का मज़ा कुछ और होता है।।
2
प्लास्टिक के पेड़ का पत्ता कभी झड़ता नहीं,
चाहें जितना भी उडेलो उस पे रंग चढ़ता नहीं।
कट गयी तन्हा जवानी अब बुढ़ापा आ गया,
तुम मिलो या मत मिलो कोई फरक पड़ता नहीं।।
3
घरवाली को और सजाना नामुमकिन,
मेकअप से तो हूर बनाना नामुमकिन।
सुंदर से अतिसुन्दर तो हो सकती है,
किसमिस को अंगूर बनाना नामुमकिन।।
4
कितने हम नज़दीक है ये आजमाते रह गए,
इश्क़ के दरिया में बस गोते लगाते रह गए।
हाय व्यूटी क्वीन को कलुआ भगाकर ले गया,
और हम उसके लिखे लेटर दिखाते रह गए।।
5
सच बात है इस बात को रखना सम्भाल के,
नेजे पे हमने रख दिया दिल को उछाल के।
इक डॉक्टर से दोस्ती मंहगी पड़ी हमें,
उसने हमारी बेच दी किडनी निकाल के।।
रचनाकार -देवशर्मा “विचित्र”, पूरनपुर (पीलीभीत)
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