आज जरूर पढ़िए “संजीव मिश्र” की कविता “भैया बड़ा कठिन रविवार”

:: रविवार ::
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“घर रहना ये सोंच सोंच कर,
चढ़ने लगे बुखार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।

छः दिन डांट सही अफसर की,
तब है छुट्टी पायी ।
भोर भये जब आंखें खोलो,
हड़ने लगे लुगायी ।

लगे सामने बैठी जैसे ,
कोई थानेदार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।

बड़े प्यार पूंछा मैने ,
क्या है चाय बना दी ।
पर जबाब में आकर उसने,
झाड़ू हाथ थमा दी ।

कवि संजीव मिश्र “शशि”

मुश्किल से तुम हाथ लगे हो,
साफ करो घरद्वार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।

बीत गया आधा दिन सोंचा,
क्या मैडम की मर्जी ।
प्रगट हो गयीं हाथ लिये वो,
सौदे वाली पर्ची ।

बैठे बैठे मत ऊंघो,
उठ कर जाओ बाजार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।

सांझ भये हिम्मत कर बोला,
प्रिये बनाओ खाना ।
बोलीं कान खोल कर सुन लो,
होटल में है जाना ।

पैसों का रोना तुम देखो,
मत रोना इस बार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।”

गीत – संजीव मिश्रा
पीलीभीत
मो.नं. 08755760194

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