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कलीनगर तहसील और माधोटांडा को ब्लाक का दर्जा दिलाने के लिए याद किये जाते रहेंगे पूर्व विधायक पीतमराम

तीन बार विधायक रहने के बावजूद सादगी भरा जीवन जीते रहे पीतम राम 
-कई बार गनर को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ते थे क्षेत्र में 
-कलेक्ट्रेट में पैदल घूम कर और दफ्तर दफ्तर जाकर कराते थे जनता के काम
 पीलीभीत। जिले में राजनीति भी होगी और जनप्रतिनिधि भी आएंगे परंतु पूर्व विधायक पीतम राम जनपदवासियों को सदैव याद आते रहेंगे। उनके निधन के साथ ही जनपद में धोतीधारी नेताओं के युग का दुखद अंत हो गया। अब शायद धोती वाला कोई नेता आपको कलेक्ट्रेट में टहलता हुआ दिखाई नहीं देगा। पीतमराम जैसा सरल स्वभाव का, छल फरेव व दिखावे से दूर रहने वाला, जनता के लिए लड़ने वाला और कर्तव्यनिष्ठ नेता भी जनपदवासियों को मुश्किल से ही मिल पाएगा। आज जनपद में सोशल मीडिया पर पूर्व विधायक पीतम राम के फोटो व शोक संदेश वायरल होते रहे। लोग अपने प्रिय नेता की अच्छाइयां बताते हुए कई संस्मरण भी साझा करते रहे।
26 जनवरी 1951 में पीलीभीत की ललौरीखेड़ा ब्लाक के ग्राम ऐमी में स्व. झांझन लाल के घर जन्मे पीतमराम अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। परिवार खेती बाड़ी से जुड़ा था परंतु पीतमराम ने ढर्रा बदलते हुए राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपनी राजनीति पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के समर्थक के रूप में शुरू की थी। उनके प्रतिनिधि भी रहे। वर्ष 1996 में वे बरखेड़ा से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए और 7 बार के विधायक किशनलाल को हराने से प्रतिष्ठा मिली। 2002 में बरखेड़ा की जनता ने उन्हें दोबारा विधायक चुना। इसके बाद पूरनपुर विधानसभा सीट सुरक्षित हुई तो पीतम राम ने पूरनपुर को अपना कार्य क्षेत्र बना लिया और 2012 में वे पूरनपुर से विधायक निर्वाचित हुए। 2017 का चुनाव वे करीब 39000 वोटों से बाबूराम पासवान से हार गए थे परंतु फिर भी पूरनपुर में अपनी पकड़ बनाए रहे। यहां के गांवों में घर घर जाकर वे लोगों से मिलते थे। उनके दुख दर्द में शामिल होते थे। एक तरह का अपनापन यहां के लोगों से पीतमराम ने बना लिया था। जिस कारण आज उनके निधन पर सबसे अधिक दुख पूरनपुर क्षेत्र में ही देखा गया। पूरनपुर क्षेत्र से काफी अधिक लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने पहुंचे। लोगों ने सोशल मीडिया पर भी उनके चित्र व यादें साझा करते हुए उन्हें  श्रद्धांजलि समर्पित की। 
पुत्रवधू आरती को सौप दी थी राजनैतिक विरासत
समाजवादी पार्टी में विधायक रहते हुए पीतमराम ने अपनी पुत्रवधू आरती महेंद्र को पीलीभीत जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवा दिया था। 2017 में भाजपा की सरकार आ गई परंतु जोड़-तोड़ में माहिर पीतमराम पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी व सांसद वरुण गांधी से नजदीकियां बनाकर अपनी पुत्रवधू को भाजपा शासन में भी 3 साल तक जिला पंचायत का अध्यक्ष बनाए रखने में कामयाब हुए। इस दौरान वे एक बार फिर पूरनपुर से चुनाव लड़ने के मूड में थे परंतु कोविडकाल में वे कोरोना के शिकार हो गए और बीमार होने के बाद काफी अधिक कमजोर हो गए। ऐसे में कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी विरासत अपनी पुत्र वधू आरती महेंद्र को सौप दी थी। चूंकि इकलौता बेटा डॉक्टर महेंद्र सरकारी डॉक्टर है इसलिए पुत्रवधू को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपते हुए पूरनपुर विधानसभा सीट से उन्हें समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी घोषित करा दिया। जाते-जाते वे टिकट का तोहफा जहां अपनी पुत्रवधू को दे गए
वहीं विरोधियों में जाते जाते इस बात का लोहा मनवा गए कि उनकी अच्छी पकड़ समाजवादी पार्टी में है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हो या मुलायम सिंह उनकी नजदीकियां शुरू से ही रहीं और मुलायम सिंह उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते रहे। 
कलेक्ट्रेट में पैदल घूमकर कराते थे जनता के काम
पूर्व विधायक पीतमराम की कार्यशैली एक जनप्रिय जनप्रतिनिधि की रही। उनका लोगों की समस्याओं के निपटारे का अंदाज भी अलग हटकर था। अल्प शिक्षित होने के बाद भी उन्हें यह बखूबी पता था कि लोगों का काम कहां से और कैसे होगा। वे पीलीभीत में किराए के मकान में काफी दिन रहे। अपने आवास पर ही लोगों की समस्याएं सुनते थे। कई मामलों में वे लोगों को अपने साथ पैदल ही कचहरी लेकर जाते थे वहां जिस दफ्तर में काम होता था अधिकारी से सीधे मिलकर काम कराते थे। जनता को उनका यह अंदाज बेहद पसंद था। शायद इसी कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ी और वे अपने जीवन में तीन बार विधायक निर्वाचित हुए तथा जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपनी पुत्रवधू को बैठाने में कामयाब रहे। वे इतने सीधे व सरल थे कि कोई भी उनसे किसी समय बात कर सकता था। कम उम्र के उनके मित्रों की संख्या भी अधिक थी।
एसडीएम व तहसीलदार को हटाने के सीएम को सौप दिया था इस्तीफा
हजारों ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जो विधायक बनने और बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं परंतु पीतमराम अपने सिद्धांतों पर खरे उतरने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार रहते थे। पूरनपुर के लोगों को बखूबी याद होगा जब यहां एसडीएम डॉ महेंद्र मिश्रा और तहसीलदार वीपी तिवारी की तैयारी थी। इन अधिकारियों ने 900 एकड़ बेनामी जमीन खाली कराने के लिए लोगों को नोटिस जारी कर दिए थे। जिन को नोटिस जारी हुए वे लोग विधायक पीतमराम के खासम खास थे। समर्थकों की जमीनें बचाने के लिए पीतमराम ने पहले स्थानीय अधिकारियों से बात की परंतु जब कामयाब नहीं हुए तो लखनऊ जाकर तब के राजस्व मंत्री से मिले। राजस्व मंत्री तहसीलदार के रिश्तेदार निकले जिस पर उन्होंने मामला टालने को कहा परंतु बात बनती न देख पीतम राम तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास पहुंच गए और अपना विधायकी का त्यागपत्र उन्हें सौंप दिया और कहा कि जब वे एक एसडीएम या तहसीलदार को नहीं हटा सकते, अपने लोगों को नहीं बचा सकते तो विधायक रहने से क्या फायदा। खैर जब मामला तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक पहुंचा तो उन्होंने एसडीएम व तहसीलदार को पूरनपुर से हटा दिया और 900 एकड़ बेनामी जमीन का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। यह मामला उस समय मीडिया में भी सुर्खियों में रहा था। उनसे जुड़े ऐसे तमाम किस्से हैं जो लोग अक्सर सुनाते रहते हैं।
बदमाशों ने लूटा तो छिपा ली पहचान
पूर्व विधायक स्वर्गीय पीतमराम से संबंधित एक और किस्सा प्रचलित है। बताते हैं कि जब वे पहली बार विधायक बने थे तब पीलीभीत में किराए के मकान पर दिन भर रहते रहते थे परंतु शाम को अपनी मोटरसाइकिल से गांव ऐमी चले जाते थे। एक दिन देर शाम गांव जाते समय उन्हें बदमाशों ने रास्ते मे घेर लिया और तमंचा दिखाकर उनका रिवाल्वर नकदी भी ले ली। बताया जाता है कि तब पीतमराम ने बदमाशों से खुद को बचाने के लिए अपना नाम पप्पू बता कर बचने का प्रयास किया था परंतु बदमाश उन्हें पहचान गए थे और भाग निकले परंतु बाद में उन्हें पकड़ लिया गया था। ऐसे कई किस्से थे जिन्हें पूर्व विधायक प्रीतमराम खाली बैठे होने पर सुनाया करते थे।
दिल में ही रह गई शारदा के धनाराघाट  पर पक्का पुल बनाने की हसरत
पीतमराम 5 साल पूरनपुर के विधायक रहे। 2012 से 2017 के बीच उन्होंने काफी काम भी कराए। पुत्रवधू जिला पंचायत की अध्यक्ष बनी तब भी उनका ज्यादा ध्यान पूरनपुर पर में ही रहता था परंतु वे शारदा नदी के धनाराघाट पर पक्का पुल बनवाना चाहते थे। यह बात उन्होंने पिछले कई बयानों में कहीं भी थी। उनका कहना था कि अगली बार विधायक बनेंगे तो शारदा नदी पर पक्का पुल जरूर बनाएंगे। उनकी यह हसरत दिल में ही रह गई क्योंकि काल के गाल में समाने के कारण उन्हें पूरनपुर से दोबारा विधायक बनने का मौका ही नहीं मिला।
ठेठ गवई अंदाज और गांव की भाषा से बनी अलग पहचान
अक्सर जब लोग बड़ा पद पा जाते हैं तो उनकी चाल ढाल व हावभाव सब कुछ बदल जाता है परंतु पीतमराम के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था। वे अंत तक नहीं बदले। तन पर धोती कुर्ता, जुबान पर गांव की बोली और ठेठ देहाती अंदाज। कुछ ऐसे थे विधायक पीतम राम। लोगों से अपने गांव की भाषा में ही अक्सर बात किया करते थे। धोती कुर्ता पहनना उन्हें काफी पसंद था। लोग उन्हें धोतीधारी नेता के नाम से भी जानने लगे थे। पहनावा बिल्कुल गांव का ही रहता था। उसी तरह भाषा में भी छल कपट नहीं था। सीधी सपाट बात करना उनकी आदत में शुमार था। शायद यही उनकी पहचान बना। ग्रामीण जनता को उनका यह अंदाज बेहद पसंद था। देहाती भाषा में बात करने पर लोग उन्हें नेता कम अपने घर का सदस्य अधिक समझते थे। पुराने लोगों में भी धोती कुर्ते के पहनावे के चलते उनकी अच्छी पहचान बनी हुई थी। किसी का कोई सुख दुख हो, शादी ब्याह हो या कोई निमंत्रण। पीतमराम हर हाल में पहुंचने का प्रयास करते थे। उनका यह अंदाज भी जनता से जुड़ाव का एक प्रमुख कारण था।

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