
इस होली पर सुनिये कवि व पत्रकार सतीश मिश्र “अचूक” की आधुनिक कविता
आधुनिक होली
होली मेरे घर आकर बोली।
बंद क्यों है खुशियों की खोली।
क्या नहीं मिला मुफ्त का राशन।
क्या वादे भूल गया है शासन।
कल ही तो वोट मांगने आये थे।
अच्छे दिनों के सपने दिखाए थे।
राष्ट्रवाद के सब्जबाग भी लाए थे।
सुना है राष्ट्रवादी फ़िल्म लाये हैं।
इससे बहुतों के ‘विवेक’ गड़बड़ाए हैं।
माना मुफ्तखोरी का जमाना है।
फिर खरीद कर रंग क्यों लगाना है।
सरकार रंग क्यों नहीं भेज सकती है।
रंग की छाप क्यों नहीं सहेज सकती है।
सरकार को जन की दुआएं लेनी चाहिए।
रंग के साथ गुझियां फ्री देनी चाहिए।
माना महंगे तेल से जनता गमगीन है।
तभी तो प्लेट से गायब नमकीन है।
कपड़े कैसे खरीद पाऊं महंगे बड़े हैं।
होली के बाजार में ‘यूक्रेन’ से खड़े हैं।
सरकार ‘नाटो’ सा साथ निभाती है।
तेल और नमक भी मुफ्त दिलाती है।
रूस सा महंगाई का आक्रमण
जारी है।
अपनी पीठ थपथपाने की लाचारी है।
सोचता हूँ काश अमेरिका सी मदद मिल जाती।
होली पर कोटेदार से बोतल फ्री मिल जाती।
नफरती रंग धोने को साबुन की दरकार है।
मिल सकता है क्योंकि राष्ट्रवादी सरकार है।
धब्बे मिटाने को ‘स्पेशल’ साबुन जरूरी है।
रंग खेलना भी तो हम सबकी मजबूरी है।
माना कि होली के रंग भी जातिधर्म में बटे हैं।
कहीं केसरिया तो कहीं हरे पीले डटे हैं।
बुरका, हिजाब, परदा पर भी शोर है।
स्कूलों में भी राजनीति घनघोर है।
कोर्ट कहता है हिजाब जरूरी नहीं।
हाजी-काजी कहें छोड़ना मजबूरी नहीं।
तर्क यह कि जब वो हिजाब पहनकर आएगी।
तो होली पर रंग कैसे लगवा पाएगी।
हिजाब, कश्मीर जैसे रंगों का शोर है।
कैसे गले मिलें नफरत तो घनघोर है।
भुलाकर इन्हें रंगों की बौछार कर दो।
भले राक्षसी थी पर होली की जयकार कर दो।
वर्षों पहले जलकर होलिका आज भी जिंदा है।
बाप-बुआ की चालों से प्रहलाद शर्मिदा है।
वो हर साल होली की आग में तपाया जाता है।
होली तो नहीं जलती नया प्रहलाद लाया जाता है।
प्रहलाद रूपी सच की आज तय कुर्बानी है।
क्योंकि इस होली भी नफरतेँ नहीं जलानीं हैं।
अगर नफरतों में आग लग जायेगी।
तो राजनीति की बाट लग जायेगी।
भले तुम प्रेयसि का अंग-अंग रंग आना।
गले मिलो तो खंजर बिल्कुल न आजमाना।
गुझियां नहीं तो शक्कर भी चलेगी।
मगर रंग खेलने में मक्कर नहीं चलेगी।
आओ गाल रंगें, रंगीन कर दें चोली।
साली-सलहजों संग खूब खेलें होली।
छूट न जाए कोई मित्र और हमजोली।
सबसे गले मिलें और बोलें हैपी होली।।
सतीश मिश्र “अचूक”
आशु कवि/पत्रकार/संपादक समाचार दर्शन 24
मो-9411978000
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होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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