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अचूकवाणी : पुराने समय की बारातों में होता था भरपूर आदर सत्कार, अब आया बनावटी जमाना

बारातों से आउट आदर सत्कार

आजकल खड़े खड़े ही हो जाते हैं अधिकांश काम, सुबह तक नहीं रुकता एक भी बाराती

सम्पादक सतीश मिश्र की कलम से-

वर पक्ष का अक्सर वधू पक्ष से कहना होता है कि बारातियों का भरपूर स्वागत सत्कार होना चाहिए, वरना….। धमकी रूपी यह ब्रम्ह वाक्य अक्सर हर जगह गूंज ही जाता है। लड़की वाला इसकी हामी भी भरता है परंतु जैसा कि मैं महसूस करता हूँ आजकल की बारातों से आदर सत्कार पूरी तरह आउट हो गया है। अब सब कुछ बनावटी सा नजर आता है। नकली व्यवस्था में ही एडजस्ट होकर फीलगुड करना पड़ता है। बारात जाती है तो बैंड बाजे के साथ महिला व पुरुष बाराती नाचते गाते या यूं कहें कि उछलते कूदते जाते हैं। मैरेज हाल के गेट पर किराए की युवतियां फूल की कुछ पंखुड़ियाँ उछाल देती हैं या फूल मालाएं पहना दी जातीं हैं तो इसे ही स्वागत व सत्कार मान लिया जाता है। अंदर प्रवेश करते ही बैठने का कोई भी स्थान बारातियों को नसीब नहीं होता। खड़े-खड़े ही नाश्ता व भोजन करना पड़ता है और खाते पीते ही फोटो व सेल्फीबाजी हो जाती है। इसके तुरंत बाद शुरू होती है घर वापसी की रस्म। जो लोग खाने पीने से इतर कुछ सामाजिक भी हैं या निकट के हैं, वे जयमाल में वर-वधू के पीछे खड़े होकर अजब तरीके से मुँह बनाकर नकली हंसी चेहरे पर लाकर नोट दिखाकर चित्र खिंचवा लेते हैं और उसके बाद घर की राह पकड़ते हैं। घर पहुंचने से पहले फोटो सोशल मीडिया पर पहुंच जाता है। सुबह तक कोई भी बाराती नजर नहीं आता। हालांकि अब दिन की बारातों का चलन भी बढ़ रहा है। स्वागत की इस कथित व्यवस्था में मुझे तो कहीं पर भी बारातियों का सम्मान नजर नहीं आता। कोई भी उनसे ना तो नाश्ते के लिए कहता है और ना खाने के लिए। स्वचालित सिस्टम में लोग रोबोट की तरह कई कई बार नाश्ता करते और भोजन की प्लेट बदलते देखे जाते हैं। आइसक्रीम हो या कोई बढ़िया मिठाई कई लोग 4-4 बार हाथ आजमा ही लेते हैं। कुछ तो बिन बुलाए मेहमान भी आ जाते हैं और आते ही भोजन युद्ध शुरू हो जाता है। और इसको लेकर अफरा-तफरी का माहौल बनता है। चाय कॉफी नाश्ता या भोजन पहले प्राप्त करने के लिए कतारबद्ध न होकर लोग भेड़ों के झुंड जैसे भोजन के डोंगों पर डोलते नजर आते हैं। ऐसे में चाहें भले ही सुंदर कपड़ों पर बेबफाई जैसे दाग लग जाएं। एक बात और काफी संख्या में ऐसे सिरफिरे लोग भी हैं जो अपने पेट का परिमाप तक नहीं जानते और इतना अधिक भोजन प्लेट में परोस लेते हैं कि उसे कचरे के डिब्बे में डाल कर गर्व महसूस करने लगते हैं। पर शायद उन्हें नहीं पता कि इतने भोजन में और कितने लोग शामिल हो सकते थे।

आधुनिकता की अंधी दौड़ में वधू पक्ष मैरेज हाल वालों को ही पूरा ठेका दे देता है। उसे यह भी नहीं पता होता है कि बासी सब्जियां परोसी जा रहीं हैं या बासी मिठाईयां। बस वह तो बारातियों से यह सुनकर ही खुश हो जाता है कि फलां आइटम काफी अच्छा बना था इसलिए खूब जमकर खाया। कई बार लालचवश वर पक्ष ही वधू पक्ष की जिम्मेदारियां ओढ़ लेता है। फिर तो मैरेज हाल बुकिंग, भोजन, नाश्ते से लेकर बायना बनवाने की जिम्मेदारी भी वर पक्ष की होती है, वधू पक्ष जेब खाली करके मूंछों पर ताव देता नजर आता है। बारातियों की तर्ज पर घराती भी खाने-पीने को इस तरह लालायित रहते हैं कि बारात आने का इंतजार भी नहीं करते और भोजन के सजे पंडाल की ऐसी तैसी कर डालते हैं। दोना, पत्तल, गिलास आदि फेंकने के लिए टब रखे जाते हैं लेकिन लोग किस तरह दोना, प्याली, चम्मच पंडाल में यूँ ही फेंक कर खुद के अज्ञानी होने का परिचय देते हैं कि कुछ पूछो मत। भागमभाग में लोगों को न तो अपने मान सम्मान की चिंता रहती है न स्वागत सत्कार की। कई बारातों में मैंने वर के पिता,भाइयों व बहनोइयों को एक एक टिक्की या काफी के लिए जद्दोजहद करते देखा है। शायद यही हैं आधुनिकता के अच्छे दिन। पहले बारात भले कहीं ठहरे या भोजन करे लड़के के पिता व मान्य पक्ष के खास लोगों को आंगन में बने मंडप में ही भोजन कराया जाता था। अब न कोई करना चाहता है और न कराना। अच्छे कार्यक्रमों में होटलों की तर्ज पर वेटर भोजन आदि मांग पर उपलब्ध करा देते हैं।

…और कुछ इस तरह बदल गये हैं रोल


एक जमाना था जब नृत्य करने के लिए नर्तकियों की जरूरत पड़ती थी। इन पर खूब पैसा लुटाया जाता था। नाटक, नौटंकी से लेकर बीसीआर का भी क्रेज आया परंतु अब घर परिवार की महिलाएं ही इस काम को बखूबी अंजाम दे देती हैं। क्योंकि पहले महिलाओं पर भोजन बनाने की जिम्मेदारी रहती थी जिसे हलवाइयों ने हाइजैक कर लिया है। अब महिलाओं पर बारात के दौरान सजने संवरने व डीजे पर थिरकने का ही काम शेष बचा है। हां इसके इतर बेहतरीन सेल्फी कराना भी महिलाओं का मुख्य कार्य हो गया है। वधू पक्ष भी अब स्वागत सत्कार पर अधिक ध्यान न देकर बारातियों को खाने पीने हेतु उनके हाल पर ही छोड़ देते थे। हां निमंत्रण के लिए खूबसूरत स्टाल हर बारात में मिल जाएगा, इस पर उगाही में माहिर लोगों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है। हां कुछ मिष्ठान की इस उगाही केंद्र पर रहती है। इसका स्थान प्रवेश द्वार के इर्द गिर्द ही रहता है ताकि हर व्यक्ति आते जाते लिफाफा पकड़ाने से भूल न जाएं। यह वित्तीय मामलों के विद्वान सरकारी कर्मियों की तरह लिफाफे पर नम्बर डालकर ही ड्यूटी पूरी करते रहते हैं। इस जिम्मेदारी हेतु ठीक उसी तरह ईमानदार, भरोसेमंद व जानकर व्यक्ति का चयन किया जाता है जैसे चुनाव में कथित रूप से योग्य, कर्मठ, ईमानदार व शिक्षित (अनपढ़ हैं तब भी) प्रत्याशी उतारे जाते हैं। अरे याद आया कभी सबसे लंबा बांस आंगन में गड़वाकर शादी का घर प्रदर्शित करने की परंपरा थी पर अब यही मंडप अब अच्छे दिनों सा गायब है और सत्ताविमुख दलों सा सिकुड़ कर पीपे में समा चुका है। पहले बारात की व्यवस्था की जानकारी व कमी बताने में बुजुर्ग मदद करते थे अब यह काम बेडिंग प्लानर करने लगे हैं। और भी काफी कुछ गायब हुआ है। पण्डित जी, नाई, बारी, धोबी आदि की अहमियत भी घटी है। बैंड बाजे व डीजे पर हजारों लुटा दिए जाते हैं पर विधि विधान से विवाह की रस्में कराने वाले जब दक्षिणा या नेग मांगते हैं तो उसे लूट समझा जाने लगता है।

ऐसा होता था पुराने जमाने की बारातों का सीन

 


एक जमाना था जब बरातें 3 से 7 दिन तक रुका करतीं थीं। शहर या गांव की सीमा से कई कोस पहले से ही बारात को जलपान कराने का सिलसिला शुरू होता था। पूरा गांव बारात की सेवा व सत्कार में जुटता था। ऐसी सामूहिकता व अपनेपन की सरिता बहती थी कि लड़की के पिता के घर व्यवस्था की कोई भी कमी हाथों हाथ दूर कर दी जाती थी। बारातियों के बैठने व रात को आराम करने के लिए गांव भर की चारपाइयां किसी विद्यालय, बाग अथवा सार्वजनिक स्थान पर एकत्र की जातीं थीं। उन पर गद्दे बिछाने के साथ तकिया भी सजाए जाते थे।

बाराती इन चारपाइयों पर पसर कर अल्प समय के लिए ही सही अग्निवीर बनने सा फीलगुड करते थे। गरीब की बिटिया की बरात में समझदार बराती जमीन में बिछी पताई, पुआल या पराली पर बिस्तर डालकर सोने से भी इंकार नहीं करते थे। पहले दिन पका पकाया भोजन प्रेम के साथ बारातियों को परोसा जाता था। हाथ में दही मिश्रित खांड का शर्बत या चाय पकड़ाने के साथ ही कागज की थैली में रखकर समोसा, पकौड़ी अथवा टिक्की नाश्ते में दी जाती थी। जिसे बराती बहुत ही प्रेम से खाते थे। भोजन भी परोस कर खिलाया जाता था। पंगत में बैठकर लोग प्रेमपूर्वक बनाए गए भोजन का आनंद लेते थे। भोजन के समय महिलाएं प्रेमपूर्वक गालियां गातीं थीं जिन्हें सुनकर बाराती खुश होते थे। अगर यह गालियां आज किसी बाराती के हिस्से आ जाएं तो 10-12 मिनट में ही दरवाजे पर 112 पुलिस की गाड़ी खड़ी दिखेगी। अगले दिन जब बारात रुकती थी तो कई बार राशन सामग्री बारातियों को देकर अपना मनपसंद भोजन बनाने व खाने की छूट भी दी जाती थी।

मनुष्यों के अलावा बारात लेकर आये बैलों की पूजा भी शिव के वाहन नंदी जैसी करके हरे चारे व दाने की व्यवस्था वधू पक्ष द्वारा की जाती थी। आज बारातियों की गाड़ियों में ईंधन कोई नहीं भरवाता परन्तु कुछ लालची लोग आज भी बारात की बस का किराया अग्रिम वसूल लेते हैं।

पहले इतना अधिक आदर सत्कार होता था कि बाराती महीनों तारीफ के पुल बनाने में जुटे रहते थे। नौतनी के समय पर आचार्यों द्वारा गीत, छंद, कविता, दोहा व चौपाई के माध्यम से बारातियों का स्वागत सत्कार व अभिनंदन विनती सुनाकर किया जाता था, उन्हें उपहार सौंपे जाते थे।

सचमुच आदर्श थीं कोविड काल की शादियां

कोई कुछ भी कहे लेकिन कोविड काल की शादियां वाकई में आदर्श थीं। कम से कम लोग जाकर कम दहेज, कम भोजन व्यवस्था आदि में बारात करके जिस तरह से जा रहे थे उससे करोड़ों अरबों का खर्चा बच गया होगा। क्योंकि कहा भी जाता है कि अगर रोकनी है बर्बादी, बंद करो खर्चीली शादी। देवस्थलों पर उस दौर में सर्वाधिक शादियाँ हुईं। भोजन, चाय नाश्ता, गाड़ी, बैंड बाजे, डीजे, सजावट आदि व्यवस्थाओं में भी शून्य या न्यूनतम खर्च हुआ। वास्तव में ऐसी शादियां आज के समय की मांग हैं। आइये व्यवस्था बदलने हेतु हम लोग भी अपना कुछ योगदान करें।

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