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जरूर पढ़िए “आचार्य देवेंद्र देव” के मौजूदा राजनीति पर “सात सियासी दोहे”

सियासी दोहा सप्तक

अपने-अपने देश हैं, विपक्षियों के यार!
जिन्हें बचाने में लगे,पिछले क्लेश बिसार।।१

गठिया जैसा बढ़ रहा, गठबन्धन का रोग।
मैदानों में चीखते, रैली कर-कर लोग।।२

बाहर गाँठें जुड़ रहीं, मन विचलित पुरजोर।
कोतवाल का हो गया, भय इतना घनघोर।।३

सोच रहे मिल बाँटकर, चलो बिगाड़ें खेल।
अधिक दूर, वरना,नहीं, सज़ा, अदालत, जेल।।४

हाथी वाली मल्लिका, भूल-भाल अहसान।
जा बैठी उस गोद में, जो थी बनी मसान।।५

कलकत्ता के घाट पर, भइ लुच्चन की भीर।
पीर, एक से एक हैं, बढ़कर बने जहीर।।६

कोई फन्देबाज है, कोई टोंटी-चोर।
सभी थक रहे मुक्ति की, बाट निहोर,निहोर।।७

-आचार्य देवेन्द्र देव (बरेली प्रवास) फेसबुक बाल से साभार

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