जरूर पढिये गीत : “बूंदों पर कर बैठा था, सागर सा विश्वास। भटकता लेकर अनबुझ प्यास”

सुप्रभात । एक गीत समीक्षा हेतु निवेदित –

‘वनवास’

“बूंदों पर कर बैठा था,
सागर सा विश्वास ।
भटकता लेकर अनबुझ प्यास ।।

पढ़ा समय के विद्यालय में,
जो देखा वह लिखता आया ।
अधरों पर मुस्कान धरी थी,
अंतर की पीड़ा को गाया ।

तुम तक पहुंचाऊं गीतों को,
कितना किया प्रयास ।
भटकता लेकर अनबुझ प्यास.।।

मैं ही कुछ नादान रहा जो,
समझ न पाया दुनियादारी ।
अंधियारों से लग्न हुआ था
फिर कैसे पाता उजियारी ।

पग पग पर मैं सहता आया,
किस्मत का उपहास ।
भटकता लेकर अनबुझ प्यास ।।

मेरे गीत बनेंगे दीपक,
जब जब अंधियारा छायेगा ।
आज भले ठुकरा दे इनको,
आने वाला कल गायेगा ।

वर्तमान यदि चाहे मुझको,
दे दे अब वनवास ।
भटकता लेकर अनबूझ प्यास ।।”

रचनाकार – संजीव मिश्रा ‘शशि’
पीलीभीत

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