♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

देव’ लक्ष्मी पर कभी थे गर्व करते, कैसे अब कह दें कि हम इतने धनी हैं

एक ग़ज़ल आज की

मान पर, माता-पिताओं के, तनी हैं।
बेटियाँ युग की समस्याएँ बनी हैं।।

पैंजनी बनती हैं झूठे प्यार की वे,
हम समझते जिनको कुल की करधनी हैं।।

जाने क्यों बाँहों के झूले भूल जातीं,
देखतीं जब वे किसी की तर्जनी हैं।।

देखकर विश्वासघातों के ये तेवर,
अपनेपन की सब प्रथाएँ बरजनी हैं।।

रोक लो बाज़ार बनने से घरों को,
कह रही ये धारणाएँ अनमनी है।।

जिन उँगलियों ने गुलाबी पर दुलारे,
आज ख़ुद अपने ही शोणित से सनी हैं।।

‘देव’ लक्ष्मी पर कभी थे गर्व करते,
कैसे अब कह दें कि हम इतने धनी हैं।।

रचनाकार-आचार्य देवेन्द्र देव, बरेली।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें




स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे


जवाब जरूर दे 

क्या भविष्य में ऑनलाइन वोटिंग बेहतर विकल्प हो?

View Results

Loading ... Loading ...

Related Articles

Close
Close
Website Design By Mytesta.com +91 8809666000