पीलीभीत के “चंद्र” कवि का गीत-“बुझ गए जो दीप आशा के, चलो फिर से जलाओ”

गीत

गीत मै किसको सुनाता ।
जब नहीं तुम पास मेरे ।।
भावनाएं तो घुमडकर ,
दो नयन के बीच वहतीं ।
और यादें छटपटा कर,
भी हृदय के बीच रहतीं।।
मै भला कैसे भुला पाता,
मिले संत्रास मेरे ।
गीत मै_____________
जब घिरा अंधियार उसमे,
खो गये सपने सुहाने ।
मै मनाता ही रहा पर,
मीत तुम मेरे न माने ।।
जब झरे सावन धरा पर,
जागते एहसास मेरे।
गीत मै________________
कब तलक जीवन जियेंगे,
बन के हम तुम दो किनारे।
कर रहे अब भी प्रतीक्षा,
उत्तरों की प्रश्न सारे।।
लौट कर आओगे फिर से,
कह रहे आभास मेरे।
गीत मै _____________
बुझ गए जो दीप आशा के,
चलो फिर से जलाओ ।
तोड दो बंधन निराशा के ,
चलो फिर पास आओ।?
तोड दूॅ सम्बन्ध कैसै,
जब रहे तुम खास मेरे।
गीत मै___________

पंडित अबिनाश चन्द्र मिश्र “चन्द्र”
एडवोकेट पीलीभीत


एक ताज़ा ग़ज़ल

कि पैरों के नीचे जमी कुछ नहीं है
तुम्हारे विना जिंदगी कुछ नहीं है,

बहुत प्यार बांटा जमाने मे लेकिन
दिये के तले रौशनी कुछ नहीं है,

कि पीते रहे आंसुओं को हमेशा
हमारे लिये तिशनगी कुछ नहीं है,

ये माना जुदा हो गये हम हैं लेकिन
तुम्हारे अलावा खुशी कुछ नहीं है,

मुकम्मल हैं गजलें तेरे नाम से ही
भुला दूँ तुझे शायरी कुछ नहीं है—-

-संजीव कुमार शर्मा, मुरादपुर, माती

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