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“ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा, ये शुभ दिन है हम सबका लहरा लो तिरंगा प्यारा” गीत का आचार्य देवेंद्र “देव” ने संस्कृत में कर दिया अनुवाद

एक फिल्मी राष्ट्रीय गीत, संस्कृत भावानुवाद सहित

(ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये।)

भो मम स्वदेशवासिष्ठाः! जयघोषं भृशमुच्चारय,
शुभदिवसमिदं अस्माकं, प्रस्फुरय प्रियं त्रयरंगम्।
मा विस्मर सीम्निप्रदेशे, वीरारत्यन प्राणानि।
किंचस्सुमर तानपि ये प्रत्यागच्छन्न गृहाणि।।

(ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकीज़रा याद करो क़ुरबानी।)

अश्रून् भरत दृग्मध्ये, स्तोकं स्वदेशवासिष्ठाः!
रंचक सुस्मर बलिदानं राष्ट्राय विहुतप्राणानाम्।

(जब घायल हुआ हिमालय खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद…)

हिमश्रृंगयदाहतवन्तः,बाधितं चापि स्वातन्त्र्यम्।जीवनपर्यन्तमयुद्ध्यन भूमौ शवादृशारपतन।
छुरिकासु मस्तकं धृत्वा,अस्वपन बलिपथे वीराः।
रंचक सुस्मर बलिदानं राष्ट्राय——-(1)

(जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद…)

ते रक्तहोलिकाक्रीडन दीपावल्या पर्वेषु।
गुलिकाप्रहारमसहन ते वयमासन यदा गृहेषु।
धन्यासन ते प्रणवीराः यौवनमपि आसीद्धन्यम्।
रंचक सुस्मर बलिदानं राष्ट्राय——–(2)

(कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पवर्अत पर वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद…)

सिखजाटमराठाः नाम्नाः गुरखामदरास्यादीनि,
यो$त्यजत प्राण सीमायाम्,आसीस्सो भारतवीरः।
अपतत् यत् सीम्निप्रदेशे तर्रक्तं खलु भारत्यः।
रंचक सुस्मर बलिदानं राष्ट्राय——–(3)

(थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त-समय आया तो कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारो, अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद…)

शोणितरंजिततनमासीत् गुलिकानां तदपि प्रहारैः।
अहनत् प्रतिवीर दशांसः स्वयमपि अपतन् गतचेताः।
अवलोक्य आत्म इतिकालं अवदन मरणं स्वीकुर्मः।
प्रमुदत राष्ट्रिकाः वयं तु चिरयात्रायैः प्रस्थामः।
कीदृशाः प्रमत्ताः आसन्,कीदृशाः मान-मन्ताश्च।
रंचक सुस्मर बलिदानं राष्ट्राय——–(4)

(तुम भूल न जाओ उनको इस लिये कही ये कहानी
जो शहीद.)

विस्मरणं मास्तु कदाचन,अवदमतः इदमाख्यानम्।
रंचक सुस्मर बलिदानं—

(जय हिन्द… जय हिन्द की सेना -२
जय हिन्द, जय——-)

जय हिन्द ——-जय हिन्दस्सैन्यम्।
जय हिन्द —- जय हिन्द——-।


. -आचार्य देवेन्द्र देव, बरेली

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