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“यदि बेटी कुछ कर बैठे तो, पड़े झेलना सिर्फ बाप को, कौन यहां है कहने वाला, लड़के ने भी किया पाप को”

जब बेटी मनमानी कर बैठती है तो पिता के स्वाभिमान पर चोट लगती है । पिता अपनी बेटी का अहित नहीं चाहता अपितु उसके स्वर्णिम भविष्य की कामना करता है । पिता की भावनाओं को शब्द देने का प्रयास –

“नहीं मुझे तुम वाधा पातीं,
यदि कह देतीं अपने मन की ।
तुम तो थीं अभिमान हमारा,
पूरी पूंजी इस जीवन की ।।

उचित और अनुचित बिन जाने,
हो जाये वह प्यार नहीं है ।
चार दिनों का ये आकर्षण ,
जीवन का आधार नहीं है ।

सत्य तुम्हें जो दिखला पाता,
कहां जरूरत उस दर्पण की ।।

जिन भावों में बसे वासना,
उनको कैसे कह दें पावन ।
केवल रूप रंग को देखे,
जिसमें मन का नहीं समर्पण ।

काश कभी की होती चिंता,
अपने इस मैले दामन की ।।

यदि बेटी कुछ कर बैठे तो,
पड़े झेलना सिर्फ बाप को ।
कौन यहां है कहने वाला,
लड़के ने भी किया पाप को ।

तुम भी पीड़ा समझ न पायीं,
मेरे जीवन की उलझन की ।।

गीतकर – संजीव मिश्र ‘शशि’
पीलीभीत
मो. 08755760194

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