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आरटीआई कानून में चोरी-छिपे संशोधन का प्रयास, संसद से सड़क तक विरोध की तैयारी

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) सरकार ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधनों का प्रस्ताव दिया है. आरटीआई, संशोधन बिल, 2019 को 22 जुलाई यानी सोमवार को चर्चा के लिए लोकसभा के सामने रखा जाएगा. नेशनल कैंपेन फॉर पिपुल्स राइट टू इंफॉर्मेशन (एनसीपीआरआई) का आरोप है कि सरकार इस संशोधन के जरिए इस कानून को खोखला करना चाहती है.
एनसीपीआरआई ने अपना विरोध दर्जाल कराते हुए कहा, ‘आरटीआई में कोई संशोधन नहीं होना चाहिए. हम भारत में लोकतंत्र की विश्वसनीयता और अखंडता को स्थापित करने के लिए एक स्वतंत्र और शक्तिशाली आरटीआई आयोग की मांग करते हैं.’
इस बिल को 19 जुलाई यानी शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया गया था. एनसीपीआरआई का आरोप है कि सरकार ने बिल पेश करने के लिए अपनाई जाने वाली पहली प्रक्रिया का गला घोंटा है. इसे पेश किए जाने के पहले तक किसी को कानों-कान ख़बर नहीं लगने दी. जनता और बाकी हितधारक तो दूर, सांसदों तक को तब इसके बारे में पता चला जब उनके बीच इसकी कॉपी बांटी गई.
विवाद की असली वजह सूचना आयुक्त के कार्यकाल से जुड़े कानून में बदलाव को माना जा रहा है क्योंकि उनके पद पर स्वतंत्रता से काम करने के लिए इसे अहम माना जाता है. राज्य सूचना आयुक्त के मामले में केंद्र की संभावित दख़लंदाजी को संघीय ढाचें के लिए भी ख़तरा बताया गया है.
एनसीपीआरआई ने लोकतांत्रिक और प्रगतिशील भारत में विश्वास करने के अलावा पारदर्शी और जवाबदेह शासन प्रणाली में विश्वास रखने वालों से कहा कि वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में लिखें और मांग करें कि संशोधन को पास नहीं होने दिया जाए।

सभार-द प्रिंट

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