
जानिये कैसी है “बिहारी बाबू” की नजर में डीएम अखिलेश मिश्र की पुस्तक “यूं ही”
पीलीभीत : अभी हाल में ही जिलाधिकारी डॉक्टर अखिलेश कुमार मिश्र की पुस्तक यूँ ही प्रकाशित हुई है। इसका शानदार विमोचन भी हुआ। यह पुस्तक बेस्ट सेलर घोषित हुई। पुस्तक की समीक्षा जिले में तैनात डिप्टी आरएमओ डॉक्टर अविनाश झा ने लिखी है। आपको डीएम की पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए और पुस्तक की समीक्षा भी—-
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पुस्तक यूं ही की समीक्षा
यूं ही कोई शायर या कवि नहीं बनता । कहते हैं” वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान! लेकिन अपवाद भी होते हैं। यूं तो गीत गजल कविताओं का शौक पहले से हैं पर मैं इसके आयोजन-सम्मेलनों मे जाने से कतराता हूँ। मुझे इस तरह के पार्टी फंक्शनो मे कुछ असहजता सी महसूस होती है पर आज की शाम कुछ अलग थी। हालांकि गया था ये सोच कर कि मेरे जिलाधिकारी की पुस्तक का और उनके गीतों पर बने अलबम का विमोचन है, इसलिए मुझे जाना चाहिए, दूसरे जिस रिजार्ट मे यह आयोजन था, शायद उसको अंदर से देखने की ललक थी। लेकिन यहां तो माहौल मेरे सोच से परे था। उनकी पुस्तक की रचनाओं को सुनकर यह समीक्षा लिखने को विवश हो गया।

डा. अखिलेश मिश्र, जिलाधिकारी पीलीभीत की कविताओं को अलबम के रुप मे इतने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया कि मै झूम गया। नाम तो उनका कवि के रुप मे बहुत सुना था पर वाकई मे इतने अच्छे कवि हैं ये आज जान सका। बकौल शायर डा. कलीम कैसर ” अगर उन्होंने जिद न ठानी होती तो यह पुस्तक रूप मे कभी न आ पाती क्योंकि फक्कड़ाना अंदाज और अलमस्त जिंदगी जीनेवाले डा. साहब के लिए अपने नज्मो को संजोकर माला मे पिरोना संभव नही था! ” यूं ही” कविता संग्रह को वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है जिसमे तीन खंड है प्रथम खंड मे कवितायें और गजलें हैं, द्वितीय खंड मे मुक्तक और तृतीय खंड मे शेर- ओ- शायरी है। सबसे बेहतरीन और प्रसिद्ध गजल है।

” हम छुपाते रहे इश्क है
वो बताते रहे इश्क है।
इसको वो अपने स्वर मे काफी अच्छे तरीके से सुनाते भी हैं।” बेटियाँ” कविता को पढकर आपका रोम रोम सिहर जाएगा। हर बेटी के बाप के दिल की आवाज बनकर उभरती है ये कविता।
” जीने दो मुझको मत मारो
कोख से करें गुहार बेटियाँ।
इस अंतिम छंद मे समसामयिक समस्या ” कन्या भ्रूण हत्या “की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती है।
“.रातभर चांद करवट बदलता रहा
वो भी सोया नही मै भी सोया नही”
यह कविता प्रेमियो के दिलों की दास्तान सुना जाता है। तपती दुपहरी मे गर्म छत पर जलते पांव और उसमे पड़े छाले भी इनको मिलने से रोक नही पाते।
” बच्चे दादी से मुहब्बत की कहानी पूछे,
कैसी थी बीते जमाने मे जवानी पूछे”
नामक कविता मे बचपन मे दादी के मुंह से दादा के प्रेम और उनकी निशानी के बारे मे पूछना, यह सिर्फ डा. अखिलेश मिश्र ही करा सकते है। सबसे कातिलाना नज्म तो यह है कि
” जुल्फ लहराओ कि शाम हो जाए,
बज्म मे कत्लेआम हो जाए।”
ऐसे अनेक बेहतरीन रचनाओं का संग्रह है ” यूं ही!” संग्रह की विशिष्ट रचना लक्ष्मण और उर्मिला के मध्य संबंधों को लेकर है। बकौल डा. मिश्र यह दक्षिण भारतीय साहित्य मे कहीं वर्णित है की लक्ष्मण राम के साथ वनवास मे चौदह साल धनुर्धारी यज्ञ किए तो उनके बदले उर्मिला सोती रही। जब लक्ष्मण वापस आये तो उस प्रकरण पर बड़ी ही सुंदर और मार्मिक कविताएं लिखी हैं”उठो उर्मिला!”
वनवास प्रकरण मे कवि लिखता है।
“पतिव्रता थी सीता धर्म निभाना था
लक्ष्मण तुम क्यों गये राम को जाना था
सरकारी अधिकारी होते हुए भी डा मिश्र अपनी
कविताओं मे शासन सता व्यवस्था पर गहरी चोट कर जाते हैं ,इससे प्रतीत होता है कि कवि- साहित्यकार कभी बंधन मे नही रह सकते।
” सियासत की तरफदारी न कीजे,
अजी ऐसी भी बेगारी न कीजे।”
एक कविता मे तो समसामयिक कलुषित राजनीति और राज सता पर व्यंग्य करते हुए वो लिखते हैं
” इस धमाके मे मरे जो हिंदु है या मुसलमान
लाश की गिनती भी अब कितनी सियासी हो रही है।”
पुस्तक मे जीवन का भोगा यथार्थ है, जिंदगी के हर पल को जिया गया है । विषयों की वैविध्यता पर डा. मिश्र की पकड़ स्वत: स्फूर्त तरीके से कविताओं और गजलों मे प्रकट हो जाती है।
पुस्तक की बेहतरीन तरीके से लिखी गयी भूमिका डा.मिश्र के अंदाजे बयां, साफ गोई और इतने बड़े प्रशासनिक पद पर रहते हुए डाउन टू अर्थ होने को प्रतिबिंबित करता है। जिस जमाने मे हर कोई कुछ भी लिखकर छप जाना चाहता है, वैसे समय मे अपनी कविताओं को पुस्तक रुप मे प्रकाशित कराने मे उनकी झिझक उनके सरल ह्दय को दर्शाता है।पुस्तक तो अच्छी है ही इसको गीत अलबम के रुप मे और भी अच्छे तरीके संजोया गया है। ” यूं ही” को जागरण बेस्ट सेलर मे भी स्थान प्राप्त हुआ है और यह वैसे ही नही प्राप्त हो गया। कविता और गजलों मे दम है तो कवि भी कुछ कम दमदार नही है। संग्रह का मूल्य 275 रुपये रखा गया है जो ज्यादा प्रतीत होता है, जो इसे आम कविता प्रेमियो से इसे दूर कर सकती है। ऐसे दौर मे जहाँ आम लोग आसानी से कवियों को सुनने जाना पसंद नही करता वहाँ यह धनराशि अधिक हो सकती है, पर डा. मिश्रा के कविता क्लास विशिष्ट है और जब बिका है तभी तो बेस्ट सेलर मे आया है तो फिर भला प्रकाशक इस मौके को भुनाने से क्यों चूके? फिर भी रचनाओं की गुणवत्ता और लोकप्रियता की दृष्टि से इतना खर्च किया जा सकता है। पुस्तक संग्रहणीय है।
(डॉक्टर अविनाश झा (बिहारी बाबू) के ब्लॉग पोस्ट से साभार)
आप इस समय पीलीभीत जिले में डिप्टी आरएमओ के रूप में तैनात हैं)
संकलन-सतीश मिश्र “अचूक”
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