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इस्लामी परंपराओं के साथ उर्स ए कासमी का हुआ समापन

विश्व विख्यात दरगाह खानकाहे बरकातिया के सालाना उर्स पर देश विदेश से हजारों जायरीन जियारत के लिए आते हैं और अपनी मुरादों से झोलियों को भरकर ले जाते हैं। अकीदतमंदों के लिए मारहरा शरीफ एक पवित्र धार्मिक स्थान हैं। खानकाहे बरकातिया दरगाह में एक ही गुम्बद के नीचे आला दर्जे के बुजुर्ग तशरीफ़ फरमा हैं। हिंदुस्तान में ही नही पूरी दुनिया में खानकाहे बरकातिया को आला मुकाम हासिल है।
हर साल की तरह इस साल भी उर्स ए कासमी के मुबारक मौके पर हिन्दुस्तान के कोने कोने से जायरीन खानकाहे बरकातिया की दरगाह पर जियारत के लिए आये और विदेशी मेहमानों ने भी शिरकत की।
तीन दिवसीय उर्स-ए-कासमी का रविवार को समापन कुलशरीफ की फातिहा के साथ हुआ। फातिहा में डेढ़ लाख जायरीन पहुंचे। सभी ने विश्व में अमन की दुआ मांगी।

दरगाह शरीफ के सज्जादानशीन प्रोफेसर सैयद अमीन मियां कादरी ने अपनी तकरीर में कहा कि बरकातियों का सरकारी मसलक मसलके आला हजरत है। मसलके आला हजरत हमें अपने नबी से मोहब्बत करने और इस्लामी जिंदगी जीने का तरीका सिखाता है।
इमाम अहमद रजा खां साहब ने मारहरा में आकर अपने पीर सैयद आले रसूल से निसबत पाई।
आज दुनियाभर में मसलके आला हजरत का बोलबाला है। करोड़ों सुन्नी मुसलमानों के दिलों की धड़कन आला हजरत है तो वही सुन्नियों की रूहानी राजधानी मारहरा शरीफ है। सज्जादानशीन सैयद नजीब हैदर नूरी ने कहा कि आज हम सुन्नी मुसलमान बिखरे हुए हैं। हम सुन्नियों को एक होने की जरूरत है। मंच से हजरत ने कहा घर सब लोग एक एक पेड़ जरूर लगाये।
कहा कि हमसे वतन की वफादारी का सुबूत मांगा जाता है। हम वतन के लिए जान ले भी सकते हैं और जान दे भी सकते हैं। कुलशरीफ की महफिल में पाकिस्तान-बांग्लादेश से आए नातख्वाओं ने नात-ए-कलाम पेश कर पार्क में मौजूद जायरीन की हौसला अफजाई की। इस्लामी रिवायतों के साथ उर्स ए कासमी का समापन हुआ,
इसके बाद देश-दुनिया में चैन, सुकून के लिए दुआ मांगी।
बरकाती रजाकारों ने मेहमानों की खिदमत मे कसर नही छोड़ी दिन रात मेहनत करके अकीदतमंदो को लंगर पानी आदि से सेवा की। (साभार-मीनू बरकाती)

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