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“व्याकुल बेहाल बाल वृद्ध पशु पक्षी सभी, जग श्वास कास शीत रोग से हताश है

खरमास में शीत लहर
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तेजहीन धनु राशि का तरणि हो गया है,
शीत का प्रकोप नित्य करता विकास है।
कोहरे से जीवन की गति अवरुद्ध हुई,
फसलों का कर दिया पाले ने विनाश है।
व्याकुल बेहाल बाल वृद्ध पशु पक्षी सभी,
जग श्वास कास शीत रोग से हताश है।
काल कवलित धनहीन बलहीन हुए,
अखिल जगत मध्य शीत का सुत्रास है।१।

अस्त व्यस्त सरदी से जीवन हुआ है अब,
शीतल समीर शीत सौ गुना बढ़़ाती है।
अस्थियों में करती है शीत लहरी प्रवेश,
कम्पन बढ़ाती और अति ठिठुराती है।
भूमि से गगन तक कोहरा सघन हुआ,
रजनी की छाया दिन में ही दिखलाती है।
भयभीत शीत से छिपे हैं सूर्य देव कहीं,
आभा नभ मध्य दृष्टि पथ में न आती है।२।


रचनाकार-पंडित राम अवतार शर्मा, अध्यक्ष, देवनागरी उत्थान परिषद

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