
पीलीभीत में जाति धर्म हावी, गुम हुए बड़े चुनावी मुद्दे
पीलीभीत में शुरू हुई मुद्दों को ताक पर रखकर वोट मांगने की मुहिम
-बड़े मुद्दों पर किसी भी पार्टी के प्रत्याशी का ध्यान नहीं
-एक दूसरे की बुराई करने और अपनी अच्छाई बताने पर भी फोकस
पीलीभीत। चौथे चरण में शामिल पीलीभीत जनपद में विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। सभी प्रत्याशी अपनी अच्छाइयां और दूसरों की बुराइयां बता कर वोट मांग रहे हैं। जनता की समस्याओं और बड़े मुद्दों पर किसी भी प्रत्याशी का ध्यान नहीं है। इसके चलते जनता को चुनाव बाद समस्याओं से निजात मिल पाने पर भी संशय के बादल घिरते नजर आ रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं होगा।
पीलीभीत जिले की चारो विधानसभा सीटों पर कुल 43 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें से लगभग आधे प्रत्याशी किसी ना किसी राजनीतिक दल से ताल्लुक रखते हैं। यह सब प्रत्याशी इस समय वोट मांगने में जुटे हुए हैं। सुबह से लेकर शाम तक चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशी संबंधित क्षेत्रों में रहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जनता की स्थानीय समस्याओं व मुद्दों को चुनाव में मुद्दा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा जा रहा है। प्रत्याशी अपनी पार्टी के घोषणा पत्र व संकल्प पत्र के आधार पर ही लोगों को जानकारी देकर वोट मांग रहे हैं।
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पीलीभीत में यह हैं स्थानीय मुद्दे
स्थानीय मुद्दों की बात करें तो जनपद के किसानों को समर्थन मूल्य ना मिलना एक बड़ा मुद्दा है। किसानों की फसलों को जंगली जानवर तो नष्ट करते ही हैं आवारा पशु भी फसलों को चट कर जाते हैं। खाद, कीटनाशक, बीज, मजदूरी आदि सब कुछ महंगा है परंतु समर्थन मूल्य न के बराबर बढाया जाता है। गांव देहात को जोड़ने वाली सड़कों की हालत भी खस्ता है। अधिकांश संपर्क मार्ग बदतर हैं। कोविड के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए जिले में पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं हैं। चिकित्सा सुविधाएं बद से बदतर हैं। कोविड के नाम पर स्कूलों में भी पढ़ाई शून्य होकर रह गई है। सभी काम संचालित है परंतु स्कूलों को बंद किया गया है। इसके चलते शिक्षक अभिभावक व स्कूल संचालक संकट में हैं। मझोला की सहकारी चीनी मिल काफी दिनों से बंद पड़ी है। कोई भी नई फैक्ट्री जिले में नहीं लग पाई है। मेडिकल कॉलेज स्थापना भी अधर में अटकी हुई है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी कोई खास काम नहीं हुआ है। युवा बेरोजगार हैं उन्हें रोजगार से जोड़ने पर नौकरी दिलवाने के प्रयास भी कागजों में ही हो रहे हैं।
भ्रष्टाचार पर सबकी बोलती बंद
भ्रष्टाचार एक बड़ा चुनावी मुद्दा हो सकता है लेकिन किसी भी पार्टी ने इसे अपने घोषणापत्र में शामिल नहीं किया है और ना ही कोई पार्टी या उनका प्रत्याशी भ्रष्टाचार पर मुंह खोलने को तैयार है। जहां भी जनता जाती है लूटी जाती है। थाना, तहसील, कचहरी या कोई भी सरकारी दफ्तर हो हर जगह बिना घूस के कोई काम नहीं होता है। लोगों का कहना है कि मौजूदा सरकार में भ्रष्टाचार दोगुना हो गया। इस भ्रष्टाचार को भाजपा कैसे रुकेगी या समाजवादी पार्टी का इस पर क्या एक्शन होगा। कांग्रेस या बसपा इस पर लगाम लगा पाएगी। इस को लेकर किसी भी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में फिलहाल कोई जिक्र नहीं किया है। इससे माना जा रहा है कि सभी पार्टियां भ्रष्टाचार की हिमायती हैं और वे जानबूझकर पब्लिक को लुटवाना चाहती हैं। बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी पर भी किसी भी दल का ध्यान नहीं है।