“घर रहना यह सोच सोच कर, चढ़ने लगे बुखार । भैया बड़ा कठिन रविवार
सुप्रभात मित्रों । कयी वर्ष पहले अंर्तराष्ट्रीय गीतकार डा. Kirti Kale जी का गीत ‘बड़े दिनों के बाद मिला है, मनचाहा इतवार’ पढ़ा था ।
उस समय मन में एक विचार आया था कि काश पुरुषों का रविवार भी इतना ही मधुरिम होता उस विचार को ही गीत में ढालने का प्रयास किया है। इसे पढ़कर आपको भी लगेगा कि भारत में पुरुष आयोग भी होना चाहिये –
“घर रहना यह सोच सोच कर,
चढ़ने लगे बुखार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।
छह दिन डांट सही अफसर की,
तब है छुट्टी पायी ।
भोर भये जब आंखें खोलौ,
हड़ने लगै लुगाई ।
लगै सामने बैठी जैसे,
कोई थानेदार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।
बड़े प्यार से हमने पूछा,
क्या है चाय बना दी ।
पर जवाब में आकर उसने,
झाड़ू हाथ थमा दी ।
आज हाथ आये हो प्रियतम,
साफ करो घरद्वार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।
बीत गया आधा दिन सोचा,
क्या मैडम की मर्जी ।
प्रगट हो गयीं हाथ में थामे,
सौदे वाली पर्ची ।
बैठे बैठे मत ऊंघौ,
उठकर जाओ बाजार ।
भैया बड़ा कठिन रविवार ।।
सांझ भये जब मैंने बोला,
प्रिये लगाओ खाना ।
बोलीं कान खोलकर सुन लो,
होटल में है जाना ।
पैसों का रोना तुम देखो,
मत रोना इस बार ।
भैया बड़ कठिन रविवार ।।”
गीतकार – संजीव मिश्र ‘शशि’
पीलीभीत
मो. 08755760194
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