हिन्दू बच्चों का एडमिशन लेने से स्कूल प्रबंधन का इंकार, शिकायत
पूरनपुर में शासन के निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे कान्वेंट स्कूल
मनमानी के चलते आरटीई के तहत गरीब बच्चों का नहीं हो रहा दाखिला
कई तरह की बहानेबाजी कर अभिभावकों को टरका रहे स्कूल संचालक
पूरनपुर। आरटीई के तहत गरीब बच्चों को कान्वेंट (अंग्रेजी माध्यम) स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा है। अभिभावक दाखिला कराने के लिए स्कूलों के चक्कर काट रहे हैं। आरोप है कि स्कूल संचालक और प्रधानाचार्य उनको कई तरह के बहाने कर टरका रहे हैं। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के चलते पूरनपुर में अधिकांश कान्वेंट स्कूल शासन की नीति की धज्जियां उड़ा रहे हैं। बच्चे का दाखिला न होने से अभिभावक परेशान हैं। उन्होंने उच्चाधिकारियों से मामले की जांच कराकर न्याय की गुहार लगाई है।
सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद गरीब बच्चों को कान्वेंट स्कूलों में शिक्षा नहीं मिल पा रही है। जबकि शासन की तरफ से हर साल आरटीई के तहत गरीब बच्चों का अंग्रेजी माध्यम से संचालित स्कूलों में दाखिला होने को लेकर प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस साल भी अभिभावकों ने निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किए थे। लाटरी के माध्यम से बच्चों का चिन्हीकरण हुआ। इसके बाद विभाग की तरफ से एक सूची जारी की गई। इसमे किस बच्चे का किस स्कूल में दाखिला होगा आदि अंकित है। पूरनपुर की बात करें तो यहां जो बच्चे चिन्हित हुए उनके अभिभावक स्कूलों में दाखिला कराने पहुंचे। आरोप है कि स्कूल संचालक कई तरह की बहनेवाजी कर बच्चों का दाखिला करने से मना कर रहे हैं। इससे अभिभावक काफी परेशान हैं। उनका कहना है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का गरीब बच्चों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। शिक्षा विभाग की सूची में शामिल अधिकांश स्कूल बच्चों का दाखिला नहीं कर रहे हैं। दाखिला न लेने का कारण कुछ स्कूल अल्पसंख्यक संस्था से संचालित होने तो कहीं कोई और बहाना बताया जा रहा है। आरोप है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। आरटीई के तहत गरीब बच्चों का दाखिला न होने से अभिभावक काफी परेशान हैं। इससे उनमे रोष देखा जा रहा है।
यह है आरटीई अधिनियम
पूरनपुर। छह से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया गया है। इसे वर्ष 2010 में लागू किया गया था। यह नियम सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौका और अधिकार देता है। नियम के तहत निजी स्कूलों को अपने यहां 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों का निशुल्क दाखिला लेना अनिवार्य है। जानकारी के अनुसार उन बच्चों की फीस सरकार निजी स्कूलों को प्रतिवर्ष देती है। खास बात तो यह है कि जब तक बच्चा पढ़ता है प्रत्येक वर्ष स्कूल की फीस के साथ-साथ पांच हजार रुपये बच्चे के अभिभावकों को उसकी ड्रेस, कोर्स व अन्य खर्चों के लिए मिलते हैं। फीस मिलने के बावजूद भी निजी स्कूल मनमानी के चलते बच्चों का प्रवेश अपने स्कूलों में नहीं करते हैं। इस बार मनमानी करने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने के निर्देश शासन ने दिए हैं।
सेंट जोसेफ वाले बोले सरकारी स्कूल में करा लो दाखिला
पूरनपुर। नगर के अधिकांश निजी स्कूल शासन के निर्देशों को अनदेखा करते हुए मनमानी करते हैं। पूरनपुर के सेंट जोसेफ स्कूल में भी आरटीई के तहत गरीब बच्चे का दाखिला करने से मना कर दिया गया। नगर के मोहल्ला बमनपुरी में रहने वाले कपिल गुप्ता ने उच्च अधिकारियों को दिए पत्र में कहा है कि उनके बेटे अथर्व गुप्ता का निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत लॉटरी में नाम आया। वह अपने बेटे का सेंट जोसेफ स्कूल में दाखिला कराने पहुंचे। वहां उन्होंने विभाग की तरफ से दिए गए पत्र की प्रति स्कूल के प्रबंधक और प्रधानाचार्य को दी। आरोप है कि स्कूल वालों ने उनके बेटे का दाखिला करने से मना कर दिया। कारण पूछने पर बताया कि यह विद्यालय अल्पसंख्यक है। यहां हिंदू बच्चों का प्रवेश नहीं किया जाता है। साथ ही कहा कि अगर तुम्हें अपने बच्चे को पढ़ाना है तो उसका सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो। इससे जाहिर है कि यह स्कूल शासन के निर्देशों की भी धज्जियां उड़ा रहा है। श्री गुप्ता ने मामले की जांच करा कर बच्चे का दाखिला स्कूल में कराए जाने की मांग की है।
अफ़सर भी कर रहे टालमटोल
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी देवेंद्र स्वरूप ने कहा कि पूरनपुर में तैनात खंड शिक्षा अधिकारी से बात कर लो जैसा वह कहेंगे वैसा ही होगा। खंड शिक्षा अधिकारी ने कहा किसी और स्कूल में एडमिशन करवा लो वहां नहीं हो पाएगा। स्कूल के प्रबंधक का कहना है कि अल्पसंख्यक स्कूल होने के कारण उनका स्कूल इस एक्ट में नहीं आता।
व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें