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जरूर पढ़ें कवि ब्रम्ह स्वरूप मिश्र “ब्रम्हा” की व्यंग्य रचना : चलो सुशासन दिवस मनाएं, चलो सुशासन दिवस मनाएं

किसी महाग्रन्थ पर पंक्तियाँ लिखने से अच्छा है उसे माथे से लगा लो।
सादर नमन करता हूँ राजनीति के अजातशत्रु और कवि कुल के पुरोधा पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी को,,
जो कीर्तिमान आप गढ़ गए हैं उन्हें तोड़ना तो दूर,अगर कोई स्पर्श भी कर लेगा तो आपका शतांश ही होगा।
सादर नमन
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#सुशासनदिवस

चलो! सुशासन दिवस मनाएं।
चलो! सुशासन दिवस मनाएं।
पुरखे जो कुछ कमा गए हैं,
चटनी और अचार सँग खाएं,
चलो! सुशासन दिवस मनाएं।

खाली हाथ युवा भटकेंगे।
न्याय कचहरी में लटकेंगे।
वृद्धों को जो मदद मिले तो,
कागज मेजों पर अटकेंगे।
फिर से सुविधा शुल्क चढ़ाएं।
चलो!सुशासन दिवस मनाएँ।

बेशक़ अच्छे नियम बने हैं,
हित किसान के आप जने हैं,
लेकिन कृषक न पाए तिल भर,
अब भी गीदड़ खड़े तने हैं।
कुछ उपाय कर उन्हें झुकाएं।
चलो! सुशासन दिवस मनाएं।

राजनीति हो सेवादारी,
मोहित करे न कुर्सी प्यारी,
जनता का हित करें प्रथम जो,
उनको सौंपे मनसबदारी।
स्वार्थसिद्धि को घर लौटाएँ।
चलो! सुशासन दिवस मनाएं।

तालाबों में आये पानी,
नदियों को फिर मिले जवानी,
अन्न किसानों का पूजित हो,
पशु पाएं सब दाना सानी,
सबको जीवन सुख लौटाएँ।
चलो! सुशासन दिवस मनाएं।


©ब्रम्ह स्वरूप मिश्र “ब्रह्म”
25/12/2020

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