“विचित्र” की हास्य रचना : टंकी के ऊपर चढ़ जाऊं, कैसे मैं त्योहार मनाऊं
हुई प्रभु क्या ग़लती मुझसे
क्यों काली घरवाली दे दी
वो भी नखरे वाली दे दी
साली वो भी काली दे दी।
मन करता है भांग चढ़ाकर
शोले का वीरू बन जाऊं
टँकी के ऊपर चढ़ जाऊं
कैसे मैं त्योहार मनाऊं।।
पिचकारी ने मना कर दिया
मुझमें कोई रंग न भरना
उनको सिल्वर पेंट लगाओ
रंग मेरा बरबाद न करना।
रूठ गयी प्यारी पिचकारी
बोलो कैसे उसे मनाऊं।।
वक्त बड़ा होता हरजाई
अब जाकर के समझ में आई
अंधकार में उन दोनों के
देते केवल दांत दिखाई।
पत्नी,साली दोनों पर ही
क्यों न हॉरर फिल्म बनाऊं।
रचनाकार- देव शर्मा “विचित्र”
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