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कविता : चाहे जो करना मगर, करना मत अपमान

अपमान
—–
चाहे जो करना मगर, करना मत अपमान।
अपमानों का हर कोई, रखता पूरा ध्यान।
रखता पूरा ध्यान हमेशा बदला लेता।
सूद सहित अपमानों को वापस कर देता।
मान और सम्मान बनाता सुंदर राहें।
मिटे नहीं अपमान भुलाओ कितना चाहे।

सतीश मिश्र, संपादक

सतीश मिश्र “अचूक” कवि/पत्रकार 9411978000

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