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अन्तर्राष्ट्रीय शोध सेमिनार में कुलपति डॉक्टर केपी सिंह बोले-रुहेलखंड विश्वविद्यालय में शोध निदेशालय की कर दी गई है स्थापना

पीलीभीत। एमजेपी रूहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.केपी सिंह ने कहा है कि देश में राष्ट्रीय चेतना का विकास तभी होगा जब मौलिक शोध प्रबंध किये जाएंगे। उन्होंने कहा कि मौलिकता के विकास के लिए रूहेलखंड विश्वविद्यालय में शोध निदेशालय की स्थापना की है। उन्होंने छात्र-छात्राओं को मौलिक नवाचार के लिए प्रेरित करने के लिए प्रयास करने जरूरत बताई।
डॉ केपी सिंह शनिवार को स्थानीय उपाधि महाविद्यालय में राष्ट्रीय चेतनाके विकास में समाज, साहित्य आर्थिक चिंतन व मानविकी का अवदान विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में मुख्यअतिथि के रूप में संबोधन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत सरकार और यूजीसी ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के जो मानक बनाये है। उनका पालन कियाजाना चाहिए। उन्होेंने कहा कि बहुत सी संगोष्ठियों में इनका पालन न होने के कारण विद्याार्थियों को अपनी प्रतिभा का विकास नहीं कर पाते है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आमतौर पर देखा गया कि जिन महाविद्यालयों में जिस विषय से संबंधित प्राचार्य होते है, उसका विकास तो हो जाता हैं लेकिन अन्य विषयों का उतना विकास नहीं हो पाता है। इसलिए आवश्यकता है कि आज कोई विषय बिना अर्थशास्त्र के संभव नहीं है, इसलिए सभी विषयों का समावेश किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए प्रोकेपी सिंह ने कहा कि एमजेपी विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लागू कर दिया गया है। इसके तहत हमने एक शोध निदेशालय स्थापित किया है। हमारा प्रयास है कि अब विश्वविद्यालय में मौलिक शोध हो और उनको अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिले। उन्होंनें बताया कि चीन ने हमारी वेवसाइटों के माध्यम से अंग्रेजी सीखकर अपने मौलिक शोध के माध्यम से अपने शोधों की संख्या बढाई है। उन्होंने विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के लिए विजनेस आइडिया प्रस्तुत करने के लिए भी निदेशालय बनाया है। इसमें हम विद्यार्थियों को सहायता प्रदान करते है।
शोध संगोष्ठी के एक अन्य मुख्य अतिथि तथा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ के कुलपति आचार्य डॉ.अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी

ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना का विकास तभी संभव है जब मौलिकता और नवाचार को प्रोत्साहित किया जाए। उच्च शिक्षा में इसी भावना से अनुसंधान किया जाना चाहिए। हमें राष्ट्रीय चेतना के भाव से संकल्प लेना चाहिए। राष्ट्रीय चेतना को केंद्र मे लेकर स्वतंत्रता का संग्राम लडा गया। यदि चेतना है तो समाज है। चेतना है तो साहित्य है, चेतना है तो मानविकी है, चेतना यदि नहीं है तो काहे का साहित्य और काहे का समाज। चेतना ही तो है जो हमें जीवित और जीवंत रखती है। उसी राष्ट्रीय चेतना को लेकर आगे बढना चाहिए। राष्ट्रीय चेतना को आध्यात्म और धर्म से जोडकर हम सफलता पा सकते है। उन्होंने कहा कि सार्वभौमिकता और समावेशीता को जो उदाहरण हमारी संस्कृति में मिलता है। आज इसी चेतना पर धुंआ और राख जमा है वह हटाने की आवश्यकता है, जो अंगार है उसे धधकाने की आवश्यकता है। इसी के आधार पर हम अपने आपको फिर से विश्वगुरू बनने की आवश्यकता है।
पीलीभीत की बांसुरी की चर्चा करते हुए आचार्य एडीएन वाजपेयी ने कहा कि जिस प्रकार बांसुरी को कृष्ण के अधरों पर सजने से वातावरण कृष्णमय हो जाता है। वही कृष्ण के संगीत भाव को लेकर हम यहां से मौलिकता और नवाचार का संकल्प लेकर पूरी दुनिया को कृष्णमय कर दें।


संगोष्ठी की अध्यक्षता करते उप्र भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.राजनारायण शुक्ल ने कहा कि हमारी यह सोच होनी चाहिए कि राष्ट्रीय चेतना के माध्यम से हम यह भाव विकसित करें कि नौकरी करने के बजाय हम लोगों को नौकरी दें। हमारे देश की युवा पीढी को यह सोचना है कि राष्ट्रीय चेतना किस प्रकार उदय हो। उन्होंने कहा कि जापान में युवा देश के विषय में सोचता है, वैसे ही हमारी युवा पीढी को देश के लिए इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक बनने के विषय में सोचना होगा। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने पूरे देश का भ्रमण कर धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर राष्ट्रीय चेतना का विकास किया। उन्होंने कहा कि पहले हमारे गांवों में स्वालंबन हुआ करता था। आज यह चीज समाप्त हो गई है। इसलिए आर्थिक पक्ष को जोडकर राष्ट्रीय चेतना का विकास किये जाने की आवश्यकता है।
इससे पूर्व भारतीय आर्थिक परिषद के मुख्य संयोजक पटना से आये डॉ.अनिल ठाकुर ने संगोष्ठी के उदघाटन सत्र को लाभकारी बताया। प्रख्यात साहित्यकार देवेंद्र देव ने एक सुंदर गीत प्रस्तुत किया। कॉलेज प्रबंध समिति के सचिव मुरली मनोहर अग्रवाल ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रो.अग्रेज सिंह ने संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.दुष्यंत कुमार ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी के उदघाटन सत्र का संचालन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.प्रणव शर्मा ने किया। डॉ.राखी मिश्र ने एडीएन वाजपेयी तथा अतिथियों का परिचय दिया।

याद किये गए जनरल रावत

अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के प्रारंभ में भारत के पहले रक्षा प्रमुख जनरल रावत तथा 13 अन्य सैनिकों के सम्मान में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्वाजंलि दी गई। संचालक ने इस घटना के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि हमारी सेना के महानायक का तीन दिन पूर्व एक दुर्घटना में निधन हो गया था। इस गोष्ठी का प्रारंभ हम उनको अपने श्रद्वासुमन अर्पित कर करेंगे।

डॉ़.मदन वर्मा की दो पुस्तकों का हुआ विमोचन

महाविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के प्रो.मदन कुमार वर्मा की दो पुस्तके भारत वियतनाम संबंध और भारत जापान संबंध का मुख्य अतिथियों तथा अध्यक्ष सहित अन्य विद्वानों ने विमोचन किया। विमोचन नये प्रकार से किया गया, इसमें फूलों की पंखुडियों से युक्त एक डलिया में दोनों पुस्तकों को रखा गया था। जिसमें पुस्तक विमोचन के बाद सारी पंखुडियों को लेखक के उपर डाल दिया गया।

यह रहे उपस्थित विद्वान

दो दिवसीय संगोष्ठी में डॉ.देवेंद्र अवस्थी, डॉ.भट्ट, डॉ.दिनेश कुमार, डॉ.ममता, डॉ.दिनेश कुश्वाह, डॉ.सीबी मिश्र, डॉ.केआर कांडपाल, डॉ.विनय गुप्ता, डॉ.विनय गर्ग, डॉ.सत्येंद्र नारायण, डॉ.विपिन नीरज, डॉ.केपी सिंह, डॉ.अमित सक्सेना, डॉ. दिवाकर सिंह, डॉ.दुर्गेश, डॉ.अनुपम, डॉ.सतेंद्र, डॉ.राजेश वर्मा, डॉ.सौरभ, डॉ.विजय, डॉ.गोपाल दीक्षित, मुकुल अग्रवाल, अमिताभ अग्निहोत्री, अशोक अग्रवाल, डॉ.प्रदीप अग्रवाल, डॉ.रश्मि प्रकाश, सुनील चौधरी,,डॉ.मोती लाल मौर्य, सहित अनेक शिक्षक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

(साभार अमिताभ अग्निहोत्री जी वरिष्ठ पत्रकार)

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