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हर्ष कुमार गुप्ता : जारी है समय के साथ कदमताल

उठने, टहलने, योग, नाश्ता, खाने और सोने तक का टाइम फिक्स, बखूबी जानते हैं समय की कीमत


पूरनपुर (पीलीभीत)। जगजाहिर है कि अपने देश में लोग समय की कद्र करना नहीं जानते। कुछ समय के साथ आलसवश कदमताल नहीं कर पाते तो कुछ ऐसा करना शान के ख़िलाफ़ समझते हैं। अगर कोई कार्यक्रम 2 बजे फिक्स है तो जाहिर है कि उसकी शुरुआत 2:30 से 3 बजे तक ही होगी। ऐसी ही लोगों की मन:स्थिति बन गई है और अपने यहां तो लेट पहुंचने वालों को भी खासी तवज्जो मिलती है। परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आज भी समय के बड़े कद्रदान हैं। भले ही वे स्कूल के प्रबंधक जैसा दायित्व निभा रहे हों परंतु टाइम टेबल बिल्कुल स्कूली बच्चों जैसा ही है। खाना-पीना, सोना, जागना, टहलना, योग करना व व्यापार में जुटना, सब कुछ पूर्व निर्धारित है। समय के ऐसे कद्रदान का नाम है हर्ष कुमार गुप्ता, जो पूरनपुर के निवासी हैं और वर्तमान समय में सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के प्रबंधक का दायित्व निभा रहे हैं। पेशे से व्यापारी हर्ष गुप्ता इस समय समाज सेवा में भी बढ़-चढ़कर योगदान दे रहे हैं। उन्हें अगर कहीं 10 बजे जाना है तो 10 बजे का मतलब 10 ही है। विशेष परिस्थितियों के अलावा वे कभी 2-4 मिनट भी लेट नहीं होते। शादी ब्याह के कार्यक्रम हों अथवा राजनीतिक पार्टियों के तय कार्यक्रम, सभी में हर्ष गुप्ता की सवारी समय से पहुंचती है परंतु कहीं तंबू कनात गायब होता है तो कहीं अन्य व्यवस्थाएं तय समय तक नदारद नजर आती हैं। जिसे देखकर श्री गुप्ता मायूस होते हैं कि लोग जब समय पर काम कर नहीं सकते तो कार्ड पर समय छपवाने का औचित्य ही क्या है।

यह है हर्ष गुप्ता की फिक्स दिनचर्या


हर्ष कुमार गुप्ता सर्दी के मौसम में प्रतिदिन सुबह 5 बजे उठ जाते हैं। कुछ देर बाबा रामदेव की योग क्रियाएँ व उपदेश टेलीविजन पर देखने के बाद वे विस्तर छोड़ देते हैं। अपने आवासीय परिसर में ही टहलने व योग करने के बाद 8 बजे तक चाय की चुश्कियाँ लेते नजर आते हैं। योग चेतना समिति के अध्यक्ष होने के नाते उनका योग से गहरा लगाव है, और शायद यह ही उनकी तंदुरुस्ती का राज भी है। चाय के साथ टेलीविजन व अखबारों पर समाचार देखते व पढ़ते हैं। इसी बीच टीवी का रिमोट उठाकर चैनल बदलकर कुछ धार्मिक कार्यक्रम भी देख लेते हैं। 9:30 तक स्नान पूजा व नाश्ता हर हाल में निपट जाता है। उसके बाद कार्य व्यापार या किन्हीं कार्यक्रमों में निकल जाते हैं परंतु 2 बजते ही दोपहर का भोजन हर हाल में हो जाता है। इसके बाद तुरंत विस्तर पर और 3 बजे तक निद्रा देवी की जकड़ में चले जाते हैं। जागने के बाद नियमित व्यापार, समाजसेवा या अन्य कार्यक्रमों की दूसरी पारी प्रारम्भ करते हैं। फ्री होते ही घर वापसी होती है और परिजनों के साथ बातचीत करते हैं। 7 बजते ही डिनर निपट जाता है और 8 बजे तक टहलने व भाई बान्धवों से बातचीत चलती है। उसके बाद टेलीविजन के हवाले एक से डेढ़ घण्टा रहेगा। 9:30 से 10 बजे के बीच सोना होता है। अगले दिन फिर से यही दिनचर्या स्वत: दोहराना प्रारम्भ हो जाती है।

…और जीवन में भी सब कुछ समय से


ऐसा नहीं है कि हर्ष गुप्ता सिर्फ अपनी दिनचर्या ही फिक्स कर के चल रहे हों, उनका जीवन भी समय चक्र से इस तरह बंधा हुआ है कि लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। बीस वर्ष की आयु में वे विधि स्नातक (एलएलबी) की डिग्री लेकर अपना व्यवसाय बख़ूबी सम्हाल चुके थे। 24 वर्ष की आयु में दाम्पत्य जीवन में बंधे और संतानें भी ससमय हुईं। आज 61 वर्ष का यह छरहरा नौजवान यूँ तो दादा बन चुका है परंतु समय की कद्र व योग की बदौलत इनकी आयु का सही अनुमान लोग नहीं लगा पाते। श्री गुप्ता जिस तरह दिनचर्या निभाने में ईमानदार हैं ठीक उसी तरह अपने पेशे में भी पाक साफ रहते हैं। उनके घर या प्रतिष्ठान के कार्यक्रमों में भी समयबद्धता सहज देखी जा सकती है। लोगों द्वारा समय की कद्र न किए जाने व कार्यक्रम देर से शुरू करके समाप्ति भी देर में करने से भी वे काफी आहत हैं। कई ऐसे किस्से भी सुनाते हैं जिसमें कई घंटे विलंब से कार्यक्रम शुरू हुए हैं। हर्ष गुप्ता कहते हैं कि अगर लोग समय की कद्र करना सीख लें तो उनके जीवन में काफी कुछ बदलाव आ सकता है। घर परिवार हो या कार्य व्यापार, अथवा विद्यालय, हर जगह यही सीख देते हैं। लेकिन उनकी सीख नेताओं जैसी भाषणबाजी की न होकर आचरण की सभ्यता की है। यानी खुद समय में बंधकर लोगों को समय का महत्व सहज ही समझा देते हैं। हाथ में घड़ी नहीं पहनते परन्तु मोबाइल में समाहित समय उनके राइट टाइम रहने का हमराह बना हुआ है। कहते हैं कि इस जीवन में तो समय के साथ यूँ ही कदमताल जारी रहेगी। (द्वारा-सतीश मिश्र सम्पादक)

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