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पत्रकारिता दिवस पर कवि व पत्रकार सतीश मिश्र “अचूक” से सुनिये पत्रकारों का हाल

पत्रकारों का हाल

इस लिंक से सुनिये पूरा गीत-

https://youtu.be/c2Q5V2bt65I

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।

तीनों पहिये व्यवस्था के छोड़ते कर्तव्य पथ जब,
जंग छिड़ती तब कलम की असर भी तो सौ गुना है।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।

भ्रष्टता बगुलों कि जब भी छापते हैं मित्रवर,
मिर्च सा होता असर है चमचा भी तो अनमना है।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।

चोर अपराधी लुटेरे या पुलिस की फौज हो,
सत्य पढ़कर खफा होते धमकियों का डर घना है।

https://youtu.be/c2Q5V2bt65I

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

एकता नाराज हमसे हो गई क्यों आजकल,
सत्यता का हो न खंडन यही मन में डर बना है।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

स्वर्ग से भाई अवस्थी दे रहे आवाज़ हैं,
बने ना पीड़ित कोई भी एक होना अब पुनः है।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

इंट्री आसान इतनी बढ़ रहा कुनवा मेरा,
योग्यता मायूस अक्षर भैस जैसा ही बना है।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है। ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

जिनकी खातिर था लगाया कैरियर भी दांव पर,
वे लिखाते ‘सीखते हम’, पैसा शोहरत सब मना है।

https://youtu.be/c2Q5V2bt65I

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

पुत्र थे माँ शारदे के हंस का कुछ अंश था,
आज उल्लू हो गए हैं स्वार्थ में दामन सना है।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

बढ़ गया है इतना शोषण पेशे में हम क्या कहें
डाकुओं सा नजर आता “चीफ-ब्यूरो” जो बना है।।

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

कोई चावल मांगता है, कोई कहता ‘वन घना है’।
‘कह रहे चूका घुमाओ’, मना कर दो अनमना है।

https://youtu.be/c2Q5V2bt65I

हाल अपना क्या बताएं संकटों को क्यों चुना है।
ताज पहना है जो हमने कंटकों से वह बुना है।।

सतीश मिश्र “अचूक”
(कवि/पत्रकार)

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