डीडीओ साहब का सुंदर गीत : “जिंदगी के सप्त सुर को साध के आलाप भर लू”

जिंदगी के सप्त सुर को
साध के आलाप भर लू
और हौले से अकिंचन
पीर को बाहों में भर लूं
एक टक तुमको निहारूँ
भूल जाऊं मैं समय को
मद भरे नयनो में तेरे
प्रीति का आयाम पढ़ लूं
कल्पना के गान गढ़ लूं ।

प्रेम की उलझी परिधि में
अपने अपने दम्भ लेकर
चल रहे हैं हम अभी तो
एक दूजे को परख कर
चांद देता है गवाही
क्या हुआ दरिया किनारे
कैसे कैसे मौन रह कर
हमने सब संवाद पारे ।
पैर रख कर देहरी पर
मुड़ गई थीं जब ये सांसे
याद कैसे रह सकेगा
कौन कब किसको पुकारे
ऐसे मुश्किल की घड़ी में
आ तेरा आह्वान कर लूं
कल्पना के गान गढ़ लूं ।

भूल जाना ही नियति है
या नियति है पीर पढ़ना
प्रेम रस से पाग करके
अश्रु को नयनों में भरना
या करुं विद्रोह जग से
स्वयं का बलिदान कर दूं
या तुम्हारी प्रेम हवि से
सारे दुख अभिदान कर लूं।
स्वयं को समिधा बनाकर
यज्ञ यह आसान कर लूं
कल्पना के भाव गढ़ लूं ।

या जियूँ अलमस्त होकर
भावनाओं को झटक कर
जीत जाऊं इस समर को
वेदना सारी गटक कर
पर तुम्हारी ओर कैसे
देख पाऊंगा बताओ
क्या कभी तुमने भी ऐसे
सोचा है फिर तो सुनाओ
चांद तारे रात सूनी के
उपालम्भो में पलकर
हम जियेंगें कैसे फिर से
अपने ये आकाश लेकर
तुम ही कह दो कैसे अपने
दर्द के सौपान चढ़ लूँ
कल्पना के गान गढ़ लूं ।

रचनाकार-पंडित योगेन्द्र कुमार पाठक
जिला विकास अधिकारी, पीलीभीत

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