ब्लाक प्रमुख चुनाव : चक्रव्यूह के छह द्वार तोड़कर सातवें पर राजू दीक्षित ने दे दी दस्तक

संपादकीय 

आशुतोष दीक्षित यानी राजू दीक्षित राजनीति के चतुर खिलाड़ी तो हैं पर उनके साथ एक बार फिर गेम हो गया।

जी हां राजनैतिक गेम।

एक एक करके बता रहा हूं कि राजू के साथ कब किसने गेम किया याद करते रहिए…

1..राजू ने अपनी मां को ब्लाक प्रमुख बनाने के लिए जब चुनाव मैदान में उतारा था तो भाजपा ने टिकट घोषित न करके सीट फ्री घोषित कर दी, गेम बड़ा था फिर भी चक्रव्यूह का पहला द्वार तोड़कर राजू चुनाव जीत गए और भाजपा को अपनी सीट समर्पित कर दी।

2..राजू दीक्षित की मां कमलेश्वरी देवी ब्लाक प्रमुख बनीं तो कई हिस्सेदार आगे आ गए, तर्क था चुनाव में मोटा पैसा लगाया तो हिस्सा जरूर लेंगे। एक नेता जी तो मुफ्त में हिस्सेदार बन गए। मां की मृत्यु तक राजू बटवारा करते कराते और झेलते रहे।

3..कमीशन में हिस्सा लेने के साथ ही विकास कार्य कराने में भी बटवारा हुआ। जिसने राजू के हिस्से का काम कराया वह मालामाल होता गया और सभी को हिस्सा देते देते राजू की जेब खाली होती रही। ब्लाक प्रमुख उनकी मां थीं पर 4 अन्य लोग भी अघोषित ब्लाक प्रमुख बने रहे।

4..भगवान ने भी रहमत नहीं बरसाई और ब्लाक प्रमुख पूरनपुर रहीं राजू की माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी की असमय मौत हो गई। वे अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाई। उनके साथ ही प्रमुख पद के हिस्सेदार भी राजू का साथ छोड़ गए। कई ने तो राजू के प्रतिद्वंदियों से ही हाथ मिला लिया और सारे राजफास कर दिए।

5..उप चुनाव घोषित हुआ तो एक बड़ी साजिश के तहत मां की रिक्त सीट पर एक और ब्राह्मण नेता को उनकी टक्कर में उतारकर पखवाड़ा भर राजू को महुआ, बांसबोझी और बहादुरपुर में उलझाया गया ताकि वे पूरे क्षेत्र में जाकर वोट न मांग सकें। उनका लाखों रुपया साजिशन खर्च करवाया गया। इस चुनाव में राजू जीते जरूर पर उनके विरोधी भी अपने मकसद में कामयाब हुए। पहला यह की राजू को 15..20 दिन 3 गांव में उलझाया, दूसरा धन की बरबादी कराई और तीसरा राजू पर यह ठप्पा भी लगवा दिया कि वे ब्राह्मण से चुनाव लड़कर BDC बने हैं। इससे अघोषित रूप से उनकी ब्राम्हण एकता पर प्रहार किया गया। एक गांव के BDC चुनाव के चक्कर में राजू ब्लाक प्रमुख चुनाव के टिकट की बेहतर पैरवी भी नहीं कर पाए।

6…अब आखिरी गेम राजू की पार्टी ने उनकी प्रतिद्वंदी को टिकट देकर कर दिया। जब राजू ने पिछला चुनाव निर्दलीय लड़कर सीट सत्ताधारी पार्टी की झोली में डाली थी और उनकी माता की मृत्यु हो गई थी तो भाजपा के टिकट पर राजू का पहला हक बनता था परंतु कहते हैं कि बाप बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया वाली कहावत ने प्रेम, व्यवहार और सहानुभूति तक को गुड का गोबर कर दिया।

राजू ने फिर ठोकी ताल, इस लिंक से सुनें..

https://youtu.be/Xg9K6T3NC8I?si=5CXI5DpNVxYoMr0j

7…राजू चुनाव लडेंगे, मंगलवार को अपनी अनुज वधू पल्लवी का नामांकन कराएंगे, यह घोषणा उन्होंने वीडियो जारी करके कर दी है। अब अंतिम गेम ब्लाक प्रमुख चुनाव के वोटर्स यानी BDC का है। अगर वे साथ रहे तो राजू का गेम फिर से फिट हो जायेगा। सहानुभूति का लाभ सत्ताधारी पार्टी ने तो दिया नहीं परंतु वोटर्स से राजू को काफी उम्मीद है। अब देखना यह है कि राजू इस चक्रव्यूह का सातवां द्वार तोड़ पाते हैं या राजनीति का शिकार हो जायेंगे।

(सतीश मिश्र “अचूक”, संपादक, समाचार दर्शन 24)

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