आज का दिन गुरु के चरणों में समर्पण का दिन है, हमारे आत्म अनुशासन का दिन है : पंडित अनिल शास्त्री
धर्म-कर्म।। गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर
– ॐ भूर्भुव स्व तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
– आज गुरु पूर्णिमा का पावन दिन है यह वह दिन है जिस दिन श्रद्धा हमारी लहलहाती है।
– आज का दिन अपने गुरु के चरणों में समर्पण का दिन है, हमारे आत्म अनुशासन का दिन है।
*- आज का दिन श्रद्धा के आरोहण और आरोपण का दिन है।*
– हमारे जीवन की सफलताएं हमारी मुट्ठी में बंधी हुई है लेकिन हमारा ध्यान उधर जाता है जो मुट्ठी में नहीं है।
– हमारे स्वयं के हाथों में उपलब्धियों का खजाना है और हम व्यर्थ में समय बिताते हैं कि हमें यह मिल जाए, वह मिल जाए लेकिन जो हमारे हाथ में है उस पर हम ध्यान नहीं दे पाते।
– लेकिन जिस दिन हमें सद्ज्ञान मिल जाता हैं उस दिन जीवन जीने की कला का एक स्वरूप निखर कर आ जाता है और यह सद्ज्ञान गुरु के अलावा, सद्गुरु के अलावा और कोई नहीं दे सकता।
– हमारे मानव शरीर में बहुत सारी विशेषताएं हैं और विशेषताओं के साथ साथ कुछ कमजोरियां भी है। मानव में बुद्धि का विकास पशुओं से ज्यादा है लेकिन कुछ कमजोरियां भी है। पशु-पक्षियों को किसी की मदद की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन मनुष्य को हर पल दूसरे की आवश्यकता, दूसरे की जरूरत पड़ती है, आवश्यकता महसूस होती है।
– आज के वातावरण में अच्छे तत्व की तुलना में बुरे तत्व लोगों को, बच्चों को आकर्षित करते हैं और उनकी तरफ आकर्षित होकर के जो नहीं सीखना चाहिए वह सीखने लगते हैं और फिर जो सीखते हैं वही बनने लगते हैं। ऐसे में हमारे ऋषि-मुनियों ने चिंतन किया कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो मानव मन की गहराई को जानता हो और मनोविज्ञान समझता हो, जो बालमन की जितनी भी आपदाएं हैं उनको दूर करके सही रास्ता दिखला सकता है? इस मानव के विकास में तीन शक्तियां काम करती हैं माता, पिता और गुरु। यह तीनों ब्रह्मा(जन्मदाता), विष्णु(पालनकर्ता), महेश (संहारकर्ता)।
– इन तीनों रूपों में गुरु अपने शिष्य के अंदर की हर चीज पर ध्यान देता है, शिष्य का विकास कैसे होना है, शिष्य को किस तरफ बढ़ाना है उस तरफ गुरु ध्यान देता है।
– गुरु शब्द दो शब्दों से बना है गु+रु। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला गुरु।
– गुरुदेव कहते हैं कि मेरा एक भी शिष्य यदि भटकता है तो मुझे बहुत पीड़ा होती है।
– अलौकिक विकास कोई भी दे सकता है लेकिन आत्म विकास का ज्ञान गुरु ही देता है।
– एकलव्य को कौन जानता था अगर द्रोणाचार्य नहीं होते तो।
– जितने भी शिष्य हुये वो अपने गुरु की वजह से जाने गए जिनके प्रति शिष्यों की अनंत श्रद्धा थी।
– शिष्य की श्रद्धा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, श्रद्धा होती है तभी फलित होती।
– आज व्यास पूजन का दिन भी है, आज ब्रह्मा जी का जन्मदिन भी है।
– व्यास उनको कहा जाता है जो अपनी वाणी और लेखनी से लोगों के आचरण को बदलने का सामर्थ्य रखता हो। ऐसे व्यक्ति सद्गुरु ही हो सकता है। ऐसे व्यक्ति हमारे परम पूज्य गुरुदेव हुए जिन्होंने अपने आचरण और लेखनी के द्वारा कितनों की जिंदगी बदल दी।
– श्रद्धा आगे बढ़ती है तो आदमी के जीवन का कायाकल्प कर देती है।
– भौतिक जगत में जो स्थान ऊर्जा का है, अध्यात्म जगत में वही स्थान श्रद्धा का है।
– श्रद्धा उभरती है तो मिट्टी के अंदर गुरु और पत्थर के अंदर देवता उत्पन्न हो जाते हैं।
– हमारी श्रद्धा जब भावनाशील नहीं होती तिकड़म वाली होती है तो जीवन की नैया इस तरह डूब जाती हैं कि फ़िर वह पार ही नहीं हो पाती।
– श्रद्धा जब अवतरित होती है तब मूर्ति में भी प्राण फूंक देती है।
– गुरुदेव कहा करते थे अपने गुरु के प्रति मैं श्रद्धा की लाठी टीका कर आगे बढ़ता गया हूँ।
– गुरुदेव कहते थे कि मेरा भगवान वह नहीं है जो चैन की बंशी बजाय, मोर मुकुट लगाये। गुरुदेव कहते थे कि दरिद्र नारायण मेरा देवता है और इस दरिद्र नारायण के चरणों में मैंने अपनी श्रद्धा आरोपित की है और हर पल उन्हीं की साधना की है हमने। मैंने अपनी श्रद्धा के लिए अपने आप की रोज परीक्षा दी है।
– गुरुदेव ने समाज के लिए पहली आहुति अपने घर से दी।
– माता जी सच्चे शिष्य की तरह पूरी श्रद्धा-निष्ठा से गुरुदेव के आदेशों का पालन करती रहीं। और उनके जाने के बाद पूरी निष्ठा से उनके कार्यों को आगे बढ़ाया।
– श्रद्धा जब उभर कर आती है तो हारे थके जटायु के अंदर भी वह शक्ति उभर कर आ जाती है कि महाबली रावण से भी माता सीता को बचाने के लिए टकरा जाते हैं, वानर रावण की सेना से जूझते हैं लंका फूंक आते हैं, शबरी जिसके पास कुछ नहीं था अपनी श्रद्धा के बल पर राम के चरणों में पहुंच जाती है, अपनी श्रद्धा को भगवान राम के चरणों पर अर्पित करती है।
– आज ऐसी श्रद्धा ने ही मिशन को जीवित रखा है
– ढेरों उदाहरण हैं जिससे पता चलता है कि गुरु निष्ठा पर शिष्य ने अपना सब कुछ दाव लगाया। बंदा वैरागी, पंच प्यारे, आरुणी आदि ऐसे ही शिष्य हुये।
– आज गुरु पूर्णिमा पर हम गुरुदेव से यही प्रार्थना करेंगे कि गुरुदेव
*अनुदान और वरदान प्रभो, जो माँगे उनको दे देना।*
*गुरुदेव! हमें निज अन्तर की, पीड़ा में हिस्सा दे देना॥ *
ॐ शांति।
पंडित अनिल शास्त्री पुजारी शिव शक्तिधाम, पुरनपुर
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