गीत : “पौध पर फिर कली क्यों नही खिल रही, प्यार के बीज धरती में जब बो गए”
गीत
कितना जीवन हुआ मुस्करा न सका,
मुस्कराये हमें दिन बहुत हो गए ।
सुबहः होते ही उलझन नई घेरती,
दौडते दौड़ते सब दिवस खो गया।
रात बेचैनी में कट गई जागते,
लालिमा आखों में दिन नया हो गया ।।
कितने सपने सुनहरे सजाते रहे ,
देखते-देखते स्वप्न सब खो गए।
कितना जीवन ______________
जब लगा पुष्प खिल कर के गन्धिल हुए ,
कोई बिष धार से सींचने लग गया ।
नाव जब तट पे आकर के लगने लगी,
सोयी लहरों में कोई भंवर जग गया ।।
बट रहा था उजाला सभी के लिए ,
क्या घटा था अचानक कि हम सो गए ।
कितना जीवन _________________
यत्न क्या मै करू मिट सके तम सभी,
मेरे अधरों पे कोई नहीं प्यास हो।
चाहता है मुझे मीत अब भी यहाँ ,
कोई संकेत दो जिसका अहसास हो ।।
पौध पर फिर कली क्यों नही खिल रही,
प्यार के बीज धरती में जब बो गए ।
अबिनाश चन्द्र मिश्र ‘चन्द्र ‘
एडवोकेट पीलीभीत
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