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कविता : “बिना इंग्लिश कभी कोई तरक्की हो नहीं सकती”

बिना इंग्लिश कभी कोई तरक्की हो नहीं सकती।

ये ऐसी है कि इससे कोई अच्छी हो नहीं सकती।
बड़े नादान हैं जिनके दिमागों में भरा है यह
कि इसके बिन कोई सर्विस तो पक्की हो नहीं सकती।।

नजरिया भी बदलना है नजर को भी बदलना है
हमें हिंदी की हर भटकी डगर को भी बदलना है।
बदलना है दिमागों को गुलामी जिसमें रहती है
सबारी भी बदलना है सफर को भी बदलना है।।

करें संकल्प बस इतना हमारा मर्म हो हिंदी
हमारी जां हमारा दिल हमारा कर्म हो हिंदी।
इसी के बास्ते जीना इसी के बास्ते जीना
यही पूजा हमारी हो हमारा धर्म हो हिंदी।।

दिलो पे राज करती है हमारी शान है हिंदी
यही देवों की भाषा है हमारी जान है हिंदी।
अलौकिक शक्ति है इसमें है माँ के भाल की बिंदी
ये सच अब मानना होगा कि हिन्दुस्थान है हिंदी ।।

।। जय हिंदी जय हिन्दुस्थान ।।


रचनाकार- देव शर्मा ‘विचित्र”, पूरनपुर (पीलीभीत)

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