♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

आज बस्ती आ रहे सीएम लेकिन 22 साल पहले ही शुरू हो गया था मनोरमा का पुनरोद्धार

22 साल पहले शुरू हुआ था मनोरमा नदी का पुनरोद्धार

अयोध्या : 115 किमी लम्बी जिस मनोरमा नदी व उसके तट पर स्थित मख़ौड़ा धाम के पुनुरूद्धार की शुरुआत करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज बस्ती आ रहे हैं, इसकी शुरुआत तो 22 साल पहले हो चुकी थी। तब यह कार्य सरकार नही बल्कि सिर्फ समाज के सहयोग से शुरू हुआ था। 1996 में तत्कालीन अयोध्या विधायक लल्लू सिंह व उस वक्त साकेत छात्रसंघ अध्यक्ष रहे जटाशंकर सिंह की अगुवाई में मनोरमा के किनारे टेंट की नगरी बसाकर सात दिवसीय श्रीराम महायज्ञ करवाया गया था। जिसमें अयोध्या समेत देश की अनेक धर्मपुरियों से साधु संत शामिल हुए थे। अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा का यह विलुप्तप्राय प्रारम्भ स्थल तब एकदम से चर्चा में आया था। निजी व सामाजिक संसाधनों से मनोरमा नदी के मख़ौड़ा घाट की सफाई भी कराई गई थी। इसके बाद ही लल्लू सिंह प्रदेश सरकार में पर्यटन मंत्री बने तो सबसे पहले यहां आकर पर्यटन स्थल घोषित किया और घाट व स्थल के सौंदर्यीकरण की घोषणा भी की थी, जो पूरी भी हुई। यह भी गौरतलब है कि इस आयोजन की प्रेरणा भी योगी आदित्यनाथ के गुरु पूज्य महंत अवैद्यनाथ से मिली थी। अब योगी सरकार उसी सपने को पूर्ण साकार करने के लिए 100 करोड़ की लागत से मनोरमा नदी की सफाई व मंदिर का सौंदर्यीकरण करवाने जा रही है। उस वक्त अयोध्या मीडिया सेंटर प्रभारी के रूप में मुझे इस मुहिम के मूल में रहने का सौभाग्य मिला था।

मखस्थानम महतपुण्यम यत्र पुण्या मनोरमा

भारतवर्ष में अवध व कोशल का नाम किसी से छिपा नहीं है। भगवान राम का चरित्र आज न केवल सनातन धर्मावलंबियों में, अपितु विश्व के मानवता के परिप्रेक्ष्य में बड़े आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी जन्मभूमि को पावन करने वाली सरयू मइया की महिमा पुराणों में भी मिलती है तथा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आदि हिन्दी कवियों ने बखूबी व्यक्त किया है। हो क्यों ना, आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चरित्र से जो जुड़ा है।
परंतु क्या किसी पुराणकार या परवर्ती साहित्यकार ने राम को धरा पर अवतरण कराने वाले मखौड़ा नामक पुत्रेष्ठि यज्ञ स्थल और उसको पावन करने वाली सरस्वती (मनोरमा) के अवतरण व उनके वर्तमान स्थिति के बारे में सोचा है?
मखौड़ा धाम : पौराणिक संदर्भ में एक उल्लेख मिलता है कि एक बार उत्तर कोशल में संपूर्ण भारत के ऋषि-मुनियों का सम्मेलन हुआ था। इसकी अगुवाई ऋषि‌ उद्दालक ने की थी। वे सरयू नदी के उत्तर- पश्चिम दिशा में टिकरी बन प्रदेश में तप कर रहे थे। यहीं उनकी तपस्थली थी। पास ही मखौड़ा नामक स्थल भी था।

मखौड़ा ही वह स्थल है, जहां गुरु वशिष्ठ की सलाह तथा श्रृंगी ऋषि की मदद से राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था जिससे उन्हें राम आदि 4 पुत्र पैदा हुए थे। उस समय मखौड़ा के आसपास कोई नदी नहीं थी। यज्ञ के समय मनोरमा नदी का अवतरण कराया गया था। वर्तमान समय में यह धाम बहुत ही उपेक्षित है। मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। नदी के घाट टूटे हुए हैं। 84 कोसी परिक्रमा पथ पर होने के बावजूद इसका जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है।

श्रृंगीनारी आश्रम : महर्षि विभांडक के पुत्र ऋषि श्रृंगी का श्रृंगीनारी आश्रम भी यहीं पास ही में है, जहां त्रेतायुग में ऋषि श्रृंगी ने तप किया था। वे देवी के उपासक थे। इस कारण इस स्थान को ‘श्रृंगीनारी’ कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि ने सरस्वती देवी का आह्वान ‘मनोरमा’ के नाम से किया था। इससे वहां मनोरमा नदी की उत्पत्ति हुई थी।

यहां हर मंगलवार को मेला लगता है। यहां दशरथ की पुत्री शांतादेवी तथा ऋषि का मंदिर व समाधियां बनी हैं। आषाढ़ माह के अंतिम मंगलवार को यहां बुढ़वा मंगल का मेला लगता है। माताजी को हलवा और पूड़ी का भोग लगाया जाता है। मां शांता ने यहां 45 दिनों तक तप किया था। वे ऋषि के साथ यहां से जाने को तैयार नहीं हुईं और यही पिंडी रूप में यही स्थायी रूप से जम गई थीं।
गोंडा जिला मुख्यालय से 19 किमी की दूरी पर इटियाथोक नामक जगह स्थित है। यहां उद्दालक ऋषि का आश्रम मनोरमा मंदिर तथा तिर्रे नामक एक विशाल सरोवर है। इस स्थान की उत्पत्ति महाभारत के शल्य पर्व में वर्णित है।

उद्दालक द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान करके सरस्वती नदी को मनोरमा के रूप में यहीं प्रकट किया गया था। तिर्रे तालाब के पास उन्होंने अपने नख से एक रेखा खींचकर गंगा का आह्वान किया तो गंगा, सरस्वती (मनोरमा) नदी के रूप में अवतरित हुई थीं।

उद्दालक ऋषि के पुत्र नचिकेता ने मनवर नदी से थोड़ी दूर तारी परसोइया नामक स्थान पर ऋषियों एवं मनीषियों को नचिकेता पुराण सुनाया था। नचिकेता पुराण में मनोरमा माहात्म्य का वर्णन इस प्रकार किया गया है-

अन्य क्षेत्रे कृतं पापं काशी क्षेत्रे विनश्यति।
काशी क्षेत्रे कृतं पापं प्रयाग क्षेत्रे विनश्यति।
प्रयाग क्षेत्रे कृतं पापं मनोरमा विनश्यति।
मनोरमा कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति।

पुराणों में इसे सरस्वती की 7वीं धारा भी कहा गया है। मूल सरस्वती अपने वास्तविक स्वरूप को खोकर विलुप्त हो चुकी है, परंतु मनोरमा आज भी हम लोगों को अपना स्वरूप दिखलाती है। इसके नाम के बारे में यह जनश्रुति है कि जहां मन रमे, वहीं मनोरमा होता है। जहां मन का मांगा वर मिले उसे ही ‘मनवर’ कहा जाता है। इसकी पवित्र धारा मखौड़ा धाम से बहते हुए आगे तक जाती है। गोंडा के तिर्रे ताल से निकलने वाली यह नदी बस्ती जिले की सीमा पर सीकरी जंगल के सहारे पूर्व दिशा में अनियमित धाराओं के रूप में बहती है।
गोंडा परगना और मनकापुर परगना के बीच कुछ दूर यह पूर्व दिशा में बहने के बाद यह बस्ती जिले के परशुरामपुर विकासखंड के समीप बस्ती जिले में प्रवेश करती है। इसके दोनों तरफ प्राय: जंगल व झाड़ियां उगी हुई हैं। बिंदिया नगर के पास इसमें मंद-मंद बहने वाली चमनई नामक एक छोटी नदी मिल जाती है। यहां यह पूर्व के बजाय दक्षिण की ओर बहना शुरू कर देती है, जो मनकापुर और महादेवा परगना का सीमांकन भी करती है।

इस मिलन स्थल से टिकरी जंगल के सहारे यह दक्षिण-पश्चिम पर चलती है। यह नदी दलदली तथा गच के पौधों से युक्त रहा करती है। ये दोनों नदियां नवाबगंज-उत्तरौला मार्ग को क्रॉस करती हैं, जहां इन पर पक्के पुल बने हैं। इसकी एक धारा छावनी होकर रामरेखा बनकर सरयू या घाघरा में मिलकर तिरोहित हो जाती है और एक अलग धारा अमोढा परगना के बीचोबीच परशुरामपुर, हर्रैया, कप्तानगंज, बहादुरपुर एवं कुदरहा आदि विकासखंडों तथा नगर पूर्व एवं पश्चिम नामक दो परगनाओं से होकर बहती हुई गुजरती है। यह हर्रैया तहसील के बाद बस्ती सदर तहसील के महुली के पश्चिम में लालगंज में पहुंचकर कुवानो नदी में मिलकर तिरोहित हो जाती है।

हर्रैया तहसील के मखौड़ा, सिंदुरिया, मैरवा, श्रृंगीनारी, टेढ़ा घाट, सरौना, ज्ञानपुर, ओझागंज, पंडूलघाट, कोटिया आदि होकर यह आगे बढ़ती है। इसे सरयू की एक शाखा भी कहा जाता है। अवध क्षेत्र के 84 कोसी परिक्रमा पथ पर इस नदी के तट पर मखौड़ा तथा श्रृंगीनारी आदि भी आते हैं। मनोरमा नदी के तटों पर अनेक सरोवर तथा मंदिर आज भी देखे जा सकते हैं।
किसी समय में यहां पूरा का पूरा जल भरा रहता था। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक अवशेष इस नदी की तलहटी में ज्यादा सुरक्षित पाए गए हैं।

गुलरिहा घाट, बनवरिया घाट तहसील हर्रैया में तथा लालगंज, गेरार व चंदनपुर तहसील बस्ती में ताम्र पाषाणकालीन नरहन संस्कृति के अवशेष वाले स्थल हैं। हर्रैया का अजनडीह, अमोढ़ा, इकवार, उज्जैनी, बकारी, बइरवा घाट, पकरी चौहान या पण्डूलघाट, पिंगेसर आदि अन्य अनेक स्थलों से पुरातात्विक प्रमाण शुंग व कुषाण काल के तथा अनेक पात्र परंपराए प्राप्त हुई हैं। इसके अलावा आज भी इस नदी को आदर के साथ पूजा जाता है।
पांडव आख्यान के आधार पर पण्डूलघाट में चैत शुक्ल नवमी को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। लालगंज में, जहां यह कुवानों में मिलकर खत्म हो जाती है, भी चैत शुक्ल पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
वर्तमान समय में गोंडा से लेकर हर्रैया तक इसने एक गंदे नाले का रूप ले रखा है। जल प्रदूषण के कारण इसका रंग मटमैला हो गया है। इसके अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। जहां इसकी धारा मंद हो गई है, वहीं इसका स्वरूप बिलकुल बदल गया है। चांदी की तरह चमकने वाला धवल जल आज मटमैले नाले जैसा बन गया है।

इस नदी की महत्ता को दर्शाने के लिए उत्तरप्रदेश सरकार मनोरमा महोत्सव का आयोजन करती है। यह उत्सव हर्रैया तहसील परियर में सर्दियों में मनाया जाता है। केवल शिवाला घाट की सफाई हो पाती है तथा अन्य घाट व नदी पहले जैसी ही सूखी तथा रोती हुई ही दिखाई देती हैं। कोई अधिकारी झांकने तक नहीं जाता।

(आलेख साभार-लोकेश प्रताप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार)

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें




स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे


जवाब जरूर दे 

क्या भविष्य में ऑनलाइन वोटिंग बेहतर विकल्प हो?

View Results

Loading ... Loading ...

Related Articles

Close
Close
Website Design By Mytesta.com +91 8809666000