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पूर्णागिरि मेला जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए जरूरी सुविधाएं व सुरक्षा उपलब्ध कराने की जरूरत

माँ पूर्णागिरि मेला कर देगा उद्धार

-उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध देवी मेले का प्रवेश द्वार बना पीलीभीत

https://youtu.be/uF1rVlsuCMI

-इन्हीं तीर्थयात्रियों के जरिये बढ़ सकता है पर्यटन व तीर्थाटन, जिले को अतिरिक्त राजस्व मिलने की भी भरपूर संभावनाएं

देश का ऐसा कोई भी देवी भक्त नहीं होगा जो उत्तराखंड के चंपावत में पूर्णागिरि पर्वत पर विराजमान शक्तिदात्री मां पूर्णागिरि देवी के नाम से अनजान हो। नवरात्र में माता के दर्शन के लिए विशाल मेले का आयोजन उत्तराखंड के टनकपुर से लेकर मां के दरबार तक होता है। इस मेले में उत्तराखंड को छोड़ दें तो प्रदेश व देश के अन्य हिस्सों से आने वाले अधिकांश तीर्थयात्री पीलीभीत जनपद से ही होकर पूर्णागिरि पहुंचते हैं। क्योंकि पीलीभीत जिला माता के दर्शन के लिए एक तरह से प्रवेश द्वार बन गया है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिवर्ष माता पूर्णागिरि देवी के दर्शन के लिए पीलीभीत होकर रवाना होते हैं। इन तीर्थयात्रियों के जरिए हम लोग जनपद के ईको टूरिज्म को भी बढ़ा सकते हैं। यहां के तीर्थाटन में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं। पीलीभीत के पास गोमती उद्गम तीर्थ एक बड़ा धार्मिक स्थल है तो गौरीशंकर शिव मंदिर, चक्रतीर्थ, इकोत्तरनाथ शिव मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, नीलकंठ बाबा, मोरध्वज का किला, मातेश्वरी गूँगा देवी का मंदिर व राजा वेणु का किला, सिद्ध बाबा मंदिर जैसे अनगिनत ऐसे स्थान हैं जहां माता पूर्णागिरि के दर्शन हेतु जाने वाले तीर्थयात्री अल्प मार्गदर्शन से ही दर्शन करने पहुंच सकते हैं और इसके जरिए जनपद के तीर्थ स्थलों पर जहां लोगों की आमद बढ़ेगी वहीं आमदनी के अवसर भी बढ़ेंगे। इनसे जनपद को अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी। जिस तरह से प्रदेश सरकार पर्यटन को

प्रोत्साहित कर रही है उसी तर्ज पर पूर्णागिरि जा रहे अथवा वहां से लौट रहे यात्रियों को अपने तीर्थ स्थलों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना हम लोगों का कर्तव्य होगा। यहां के कौन-कौन से प्रमुख तीर्थ स्थल हैं उनकी सूची सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित की जानी चाहिए। सड़कों पर लगे बोर्ड पर भी इनके बारे में अंकित किया जाना चाहिए। ऐसा करके हम लोग जनपद का पर्यटन व तीर्थाटन कई गुना बढ़ा सकते हैं। परंतु हैरत की बात यह है कि अभी तक इस बारे में किसी भी अधिकारी जनप्रतिनिधि अथवा अन्य किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने ध्यान ही नहीं दिया है जिसके चलते अभी भी पूर्णागिरि जाने वाले तीर्थयात्री पीलीभीत से होकर जाते जरूर हैं लेकिन उनका सीधा रास्ता टनकपुर तक होता है और वापसी में वे अपना रुख अपने घर की तरफ करते हैं। अगर हम सब लोग मिलकर सम्मिलित प्रयास करें तो काफी कुछ बदलाव संभव है। क्योंकि करने से ही सब कुछ होता है। इसलिए आइए हम सब मिलकर इस दिशा में सोचें। जिम्मेदारों के साथ कार्य योजना तैयार करें और उस पर अमल करने की ओर बढ़ें।

https://youtu.be/uF1rVlsuCMI

सहूलियत व सुरक्षा देने में भी फिसड्डी


पूर्णागिरि जाने वाले तीर्थयात्री अक्सर जंगल मार्ग से गुजरते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा व्यवस्था शून्य रहती है। जिले का पुलिस प्रशासन सेल्हा मेले में तो अस्थाई कोतवाली स्थापित करता है और 5 दिन तक जंगल मार्गों पर पुलिस पीएसी तैनात रखता है परंतु महीने भर से अधिक समय तक चलने वाले माता पूर्णागिरि देवी जी के मेले में जंगल मार्ग पर तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के कोई भी इंतजामात फिलहाल नहीं होते। जंगल मार्ग पर यात्री अपने हाल पर ही माता रानी को जपते हुए आगे बढ़ते रहते हुए माता रानी से यही प्रार्थना करते हैं कि अपने वाहन सिंह से बचाये रखना और माता अपने भक्तों की रक्षा भी करतीं हैं। पदयात्रियों के जनपद में रहने व खाने पीने के फिलहाल कोई भी सरकारी इंतजामात नहीं किए जाते हैं। यह बात अलग है कि समाजसेवी व्यक्ति व सामाजिक संस्थाएं अपने स्तर से भंडारों व विश्राम की व्यवस्था करती हैं। पूर्णागिरि जाने के लिए पीलीभीत, पूरनपुर अथवा बीसलपुर से कोई ऐसी परिवहन सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं जिनसे लोग टनकपुर जा सकें।

https://twitter.com/x8RZjK2ShjKacBH/status/1635702995257270272?t=xljzIoOKlCWly4jwipleUA&s=19

रोडवेज की कुछ गिनी चुनी खटारा बसें संचालित करके प्रशासन अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। अगर निजी टूर ऑपरेटर इस धंधे में उतरें तो उनका धंधा भी चोखा होगा और यात्रियों को सुविधाएं भी मिल सकेंगीं। अच्छी बसों के अलावा टैक्सी, कार, जीप, ट्रेवलर आदि वाहन टनकपुर के लिए संचालित किए जाने चाहिए। कुछ जानकारी देने की भी भरपूर व्यवस्था होनी चाहिए। जनपद के प्रमुख तीर्थ स्थलों, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के पर्यटन स्थलों के बारे में भी तीर्थ यात्रियों को बताने की जरूरत है ताकि वे माता के दर्शन करने के बाद यहां के प्रमुख दर्शनीय व पूजनीय स्थलों का भ्रमण भी कर सकें। जनपद के जिम्मेदार अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा व अन्य सहूलियत देने पर विचार करना चाहिए। तीर्थ यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था भले ना हो पर उन्हें पीने योग्य जल तो उपलब्ध कराया ही जा सकता है। वाहनों की व्यवस्था कराई जा सकती है। ठहरने के इंतजाम कराए जा सकते हैं। जंगल में रात्रिकालीन सुरक्षा की व्यवस्था अति आवश्यक है। मैं समझता हूं कि श्रद्धावान व समझदार अधिकारी व जनप्रतिनिधि इस ओर अवश्य ध्यान देंगे।
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माता रानी के बाद उनके वाहन के दर्शन की हो परंपरा

 

हमारे बुजुर्गों ने कई ऐसी मान्यताएं बनाईं हैं जिनसे हम सब आज भी बंधे हुए हैं। आज के दौर में भी कुछ ऐसी मान्यताएं विकसित की जा सकती हैं जैसे कि माता पूर्णागिरी देवी के दर्शन करके लौटने वाले तीर्थ यात्रियों को नेपाल के सिद्ध बाबा स्थल जाना आवश्यक होता है। ठीक इसी तरह अगर पूर्णागिरि देवी मां के दर्शन के बाद पीलीभीत टाइगर रिजर्व में उनके वाहन सिंह यानी बाघ के दर्शन की नई परंपरा विकसित हो तो यहां का पर्यटन काफी अधिक बढ़ जाएगा। तीर्थयात्री सफारी गाड़ियों से जंगल की सैर करके इको पर्यटन का आनंद भी ले सकेंगे। पड़ोस में स्थित सिद्ध बाबा मंदिर, गोमती उद्गम तीर्थ, गढ़ा का हनुमान मंदिर व आस पड़ोस के अन्य तीर्थ स्थलों पर भी जा सकेंगे। आवश्यकता इस बात की है कि इसकी अगुवाई कौन करे। सबसे बड़ी समस्या बिल्ली के गले में घंटी बांधने की है। यदि एक बार यह कार्य हो जाए तो पीढ़ियों तक लोग इस पर अमल करते रहेंगे।

(सम्पादक-सतीश मिश्र की कलम से)

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