कविता : “पत्थर युग में किसे सुनाऊं अपनी राम कहानी”

नवगीत

सुरसा के मुख जैसा है दुख
पाकर बहुत अघानी
त्थरयुग में किसे सुनाऊं
अपनी राम कहानी

कुछ अनसुलझी सी मजबूरी
फूटे छाले मिली मजूरी
टूटी झांनी फूटी क़िस्मत
बूढ़ी हुई जवानी

थोड़ा थोड़ा जो भी जोड़ा
ले डूबा है नशा निगोड़ा
कर्ज मर्ज है दमा न पीना
लेकिन बात न मानी

हम वो दो फिर भी घर खाली
परी कथा घर की खुशहाली
पथराये दृग नहीं उतरता
अब थोड़ा सा पानी।।

रचनाकार -देवशर्मा “विचित्र”

                                  (एडवोकेट, पूरनपुर)

 

(नोट-आप सबने उपरोक्त वीडियो देखा होगा यह शाहगढ़ बंगला छेत्र की रहने वाली एक वृद्ध महिला का है। पुत्रों ने घर से निकाल दिया। बासी खाना देते थे। यह वीडियो हमें कवि दिनेश वर्मा “कनक” जी ने भेजा है। उन जैसे कई सज्जन पुरुषं इस महिला की इलाज, भोजन व्यवस्था आदि में मदद करते हैं। मुझे लगा “विचित्र “जी की उक्त कविता की सही पात्र यह बूढ़ी मां ही हो सकती है। इसलिए यह संयोजन किया)

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