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“वर्षों बीते झरबेरी के बेर नही खाए, हम गाँव नही आए”

                        गाँव की याद

वर्षों बीते झरबेरी के बेर नही खाए,
हम गाँव नही आए,

घुटन भरा शहर का जीवन, सही से जी ना पाए,
हम गाँव नही आए,

वर्षों बीते झरबेरी के बेर नही खाए,
हम गाँव नही आए,

शीतल ठंड़ी छाँव नीम की ,
बातें होती जहाँ प्रेम की,

काकी चाची रोज साँझ को
कर्तव्य राह बताए,

चढके अटारी राधा प्यारी
अपने केश सुखाए,

वह प्यार भूल ना पाए,

हम गाँव नही आए…….

कहती रोज़ कहानी दादी ,
नानी गोद सुलाए,

पगड़न्ड़ी पनघट पनिहारिन
पशु शाला में गाय,
सिर आँचल माँ लोरी गाती
यह सब भूल ना पाए,

हम गाँव नही आए. …..

बचपन के किस्से अलबेले
धूल भरी गलियों में खेले,

पास नहीं होते थे धेले,
याद आज भी आते मुझको
वह नौटंकी वाले मेले,

कैसे उन गलियों में पहुँचू
जिनकी याद सताए,

हम गाँव नही आए…

वर्षों बीते झरबेरी के बेर नही खाए,
हम गाँव नही आए

घुटन भरा शहर का जीवन
सही से जी ना पाए

हम गाँव नही आए

वर्षों बीते झरबेरी के बेर नही खाए
हम गाँव नही आए,

जगन्नाथ चक्रवर्ती
राज्य पुरस्कार प्राप्त, हास्य कवि/ पत्रकार

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