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चंद्रयान 3 को कवियों की कल्पनाओं ने भी दिया हौसला, जानिए किस कवि ने किस अंदाज में पेश कीं शुभकामनाएं

कवियों की कल्पना का चांद भले ही दूसरे आकार में दिखने लगा हो और पुरानी कल्पनाएं धूमिल हो रहीं हों परंतु चंद्रयान की सफलता से

देश भर के कवि व साहित्यकार खुश हैं और उन्होंने इस मिशन पर अपनी लेखनी की धार तेज की है। आइये जानते हैं किस कवि ने इस मिशन पर किस अंदाज में अपने भाव प्रकट किए।

देवनागरी उत्थान परिषद के अध्यक्ष पण्डित राम अवतार शर्मा जी लिखते हैं-

गौरव का पल है सुखद, सफल चन्द्र अभियान।
नासा भी करने लगा, इसरो का गुणगान।।

बच्चों से कहते रहे, चंदा मामा दूर।
लगता है अब करेंगे, चंद्रलोक का टूर।

——

अभा साहित्य परिषद पीलीभीत के अध्यक्ष और सुमधुर स्वर के स्वामी संजय पांडे गौहर लिखते हैं कि-

चंदा मामा दूर के ।।
नखरे बहुत हुजूर के ।।
चंद्रयान 3 से भेजे हैं ।
लड्डू मोतीचूर के ।।

प्यार से भोग लगा लेना ।।
चाहो तो और मंगा लेना ।।
मगर भेज देना भारत को ।
दृश्य, धरा, निज नूर के ।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏

सतरंगी दुनिया हिंदी दैनिक के समाचार संपादक और वरिष्ठ कवि डॉक्टर अमिताभ अग्निहोत्री इस तरह बधाई पेश कर रहे हैं-

जय हिंदुस्तान।
जय चंद्रयान।
जय विजय अभियान।
बढ़ा दुनिया में भारत का मान
इसरो के वैज्ञानिकों को
पूरे देश का सलाम।
——–

वरिष्ठ कवि उमेश त्रिगुणायत ‘अद्भुत’ का छंद में अद्भुत प्रयोग देखिए-

चंद्रयान तीन के सफल अवतरण से,
उत्तर विहीन विश्व सारा हुआ देखिए।
जीता हुआ हिन्द के निवासियों को देखिए व,
हिन्द के विरोधियों को हारा हुआ देखिए।
सार्थक था पहले ही जै जवान जै किसान,
जै विज्ञान वाला आज नारा हुआ देखिए।
इसरो के परिश्रम लगन पराक्रम से,
लो जी आज चाँद भी हमारा हुआ देखिए।


वरिष्ठ गजलकार व जिला विकास अधिकारी फरुखाबाद योगेंद्र पाठक योगी जी का धन्यवाद का संदेश भी जरूर पढ़िए-

धन्यवाद ओ चंदा मामा मान हमारा रक्खा
विक्रम ने भी ननिहाल में पांव शान से रखा।
प्रज्ञान भी मामा के संग दूध भात खाएगा
और हमारा अमर तिरंगा शान से लहराएगा।
अब मामा जी ननिहाल में हम सब भी आयेंगे।
बैठ आप के कंधे पर ही हम उधम काटेंगे
दुनिया भर को अब अपना संदेश बताएंगे हम
सबसे अच्छे हिंदुस्तानी यह भी समझाएंगे।
धन्य हमारे सब वैज्ञानिक चांद को हम छू पाए।
दुनिया के हम पहले जो दक्षिण ध्रुव पर हो आए।।


वरिष्ठ कवि अरुण दीक्षित

जी का दोहा देखिये-


समाचार दर्शन 24 के सम्पादक सतीश मिश्र

“अचूक” की कुण्डली पर भी जरूर नजर डालें। यह सतरंगी दुनिया हिंदी दैनिक के हसीन दुनिया कॉलम में छप भी चुकी है-

चंदा मामा दूर के, रहे न अब तो मित्र।
चंद्रयान दिखला रहा, बहुत पास के चित्र।
बहुत पास के चित्र, यान पहुंचा कक्षा में।
प्रमुदित पूरा देश, विरोधी है रक्षा में।
कह ‘अचूक’ कविराय, न समझो इसको ड्रामा।
नजदीकी अब और, हमारे चंदा मामा।।
—–

कवि व एसडीएम शिकोहाबाद विवेक कुमार

मिश्रा की काव्य रचना देखिए। इसे अमर उजाला काव्य में भी प्रकाशित किया गया है-

धरा ने भेजा है संदेश।
देखने को मामा का देश।
तीसरी कोशिश हो स्वीकार।
मिले हमको भी तुमसे प्यार।।
प्रथम है भेंट,प्रथम संस्पर्श।
मिलन में लगे हज़ारों वर्ष।
पुनर्जीवित हों सब संबंध।।
हमारा हो ऐसा अनुबंध।
बढ़ाने भारत माँ का मान।
गए हैं “विक्रम” सँग”प्रज्ञान”।
न रोये अब “इसरो” की “टीम”।
यही पूरे भारत का “ड्रीम”।
संभालो चंद्रयान का भार।
भेंट कर दो स्वागत का हार।
रहे ऊंचा भारत का शीश।
देव!दे दो अपना आशीष।।

——


देश के बड़े कवि आचार्य देवेंद्र देव के विचार भी जानिए-

विक्रम लेंडिंग का हुआ, जब से सफल प्रयोग।
चाँद बचाए घूमते, अपनी-अपनी लोग।
अपनी-अपनी लोग, रूह काँपती सभी की।
आई.यन.डी.आई.ए-सी नागफनी की।
लफ्फाजी की हो जाए कम, शायद, वेंडिंग।
होगी ही अन्यथा तन्त्र-विक्रम की लैंडिंग।।

( आचार्य देवेंद्र देव जी की ही एक ताजी बाल कविता)

मम्मी, हम भी जाएंगे
अपने चन्दा मामा के घर।

एवरेस्ट या कंचनजंगा।
मत ले हमसे कोई पंगा।
चढ़कर सीधे लैंड करेंगे
लेकर अपने हाथ तिरंगा।

खुश होगे सब देख-देख
जब फहरेगा वह फरर फरर।

भरा कटोरा दूध भात का।
रखा हुआ चांँदनी रात का।
ले जाकर हम उनको देंगे,
अब डर कैसा किसी बात का।

मामा जी तारीफ आपकी
खूब करेंगे हंँस-हंँसकर।

हम उनके सँग-सँग घूमेंगे।
जी भर मस्ती में झूमेंगे।
झूलेंगे बांँहों में उनकी,
प्यारा- प्यारा मुख चूमेंगे।

दुनिया भर की सैर करेंगे
बैठ उन्हीं के कन्धों पर।

धन्यवाद वैज्ञानिक दल को।
हर आंटी को,हर अंकल को।
और ग्रहों पर जाने के भी
पथ खोजेंगे निश्चित कल को।

छप्पन इंची सीने की छबि
हो जाएगी अजर, अमर।


पीलीभीत के सुप्रसिद्ध कवि देशबंधु मिश्रा तन्हा 

का दोहा भी दमदार है-

——

कवि अमित अल्प की कल्पना पर भी गौर फरमाइयेगा-

चंदा मामा हो गए थे थोड़़े मग़रूर से
भारत मईया के लल्ला पे भी चढ़ गया फितूर ये
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
मशक्कत दिन रात करी जाने कैसा था सुरूर ये
अब तो चांद पे रखेगा अपने कदम जरुर ये
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
पहली बार जो छोड़ा तब कुछ कुछ था मजबूर ये
चंद्रयान जब छूटा तीजा तो मन हो रहा विभोर ये
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
उड़ चलो चलो चांद पर पंख लगा के मयूर के
आंख मिला के आंख से इनको देखो घूर घूर के
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
चंदा मामा नहीं रहे अब दूर के
खूब पकाओ मालपुए अब पूर के
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
बचपन से बहुत गा चुके दूध मलाई वाला गाना
अब चंदा मामा संग खाएंगे लड्डू मोतीचूर के।


 कवि प्रेम चन्द्र शाक्य
महामंत्री ” साहित्य पथ “
हिंदी साहित्यिक संस्था करहल
मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) की रचना भी देखिएगा-


जिसपे लगाया दोष , गाथा में बताया गया,
ऐसे बुद्धिजीवियों की , कल्पनाएं खो गईं ।
कितने ही मानवों ने , भावनाएं जोड़ रखीं ,
करवाचौथ ईद भी , देखो कैसे धो गईं ।
चंद्रयान चांद पर , जैसे ही उतारा गया ,
कवियों की उपमाएं , वे भी आज सो गईं ।
देते हैं बधाई ‘ प्रेम ‘ , भारत का इतिहास ,
श्रेष्ठ वैज्ञानिकों की, राहें उच्च हो गईं ।

——


देश के बड़े हास्य कवि सुनहारीलाल वर्मा तुरंत का मुक्तक व दोहा देखिये-

पत्नी की है सोच चाँद पर करवाचौथ मनाऊँ
अपने प्राणनाथ पर मैं ऊपर से अर्घ्य गिराऊँ
मेरा पति धरती से देखे जलवे मेरे नूर के ll
चंदा मामा दूर के, चंदा मामा दूर के ll



लखीमपुर के युवा कवि सुनीत बाजपेई की रचना देखिये-

दूर गगन में पा लिया, हमने अपना ठाँव।
चंदा मामा पर रखा, चंद्र यान ने पाँव।

और

इधर उधर की बातों से ही प्रेमी हृदय रिझाते होंगे।

झूठ मूठ के वादे करके केवल मन भरमाते होंगे।

चंद्रयान चर्चा में आया तब से ही मैं सोच रहा हूँ,

भला चांद के पार किसी को कैसे लेकर जाते होंगे।।


बरेली के सुप्रसिद्ध कवि डॉक्टर राहुल अवस्थी

की अमरउजाला में प्रकाशित रचना देखिये-


 


वायरल हो रही यह कविता भी पढ़िए, यह नहीं पता कि जबाब किसने लिखा है-

लगभग हम सब लोगों ने ये कविता पढ़ी है ?👇
पर आज चॉद का जबाब भी पढ़ लीजिये-

हठ कर बैठा चाँद एक दिन
माता से यह बोला-
“सिलवा दो माँ मुझे ऊन का
मोटा एक झिंगोला।”

“सन-सन बहती हवा रात भर
जाड़े से मरता हूंँ।
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह
यात्रा पूरी करता हूंँ।”

“आसमान का सफर और
यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुरता
ही कोई भाड़े का।”

बेटे की सुन बात कहा माता ने
“अरे सलोने…
कुशल करे भगवान, लगे मत
तुझको जादू-टोने।”

“जाड़े की तो बात ठीक है,
पर मैं तो डरती हूँ।
एक नाप में कभी नहीं
तुझको देखा करती हूँ।”

“कभी एक अंगुल भर चौड़ा,
कभी एक फुट मोटा।
बड़ा किसी दिन हो जाता है
और किसी दिन छोटा।”

“घटते-घटते और किसी दिन
ऐसा भी होता है,
नहीं किसी की आँखों से तू
दिखलाई पड़ता है।”

“अब तू ही यह बता, नाप तेरी
किस रोज लिवाएं?
सी दें एक झिंगोला जो
हर रोज बदन में आये।”

🌺 अब चाँद का जवाब सुनिए

हँसकर बोला चाँद, “अरे
माता, तू इतनी भोली।
दुनिया वालों के समान क्या
तेरी मति भी डोली?”

“घटता-बढ़ता कभी नहीं मैं
वैसा ही रहता हूँ।
केवल भ्रमवश दुनिया को
घटता-बढ़ता लगता हूंँ।”

“आधा हिस्सा सदा उजाला,
आधा रहता काला।
इस रहस्य को समझ न पाता
भ्रमवश दुनिया वाला।”

“अपना उजला भाग धरा को
क्रमशः दिखलाता हूँ।
एक्कम दूज तीज से बढ़ता
पूनम तक जाता हूँ।”

“फिर पूनम के बाद प्रकाशित
हिस्सा घटता जाता।
पन्द्रहवां दिन आते आते
पूर्ण लुप्त हो जाता।”

“दिखलाई मैं भले पड़ूँ ना
यात्रा हरदम जारी।
पूनम हो या रात अमावस
चलना ही लाचारी।”

“चलता रहता आसमान में
नहीं दूसरा घर है।
फिक्र नहीं जादू टोने की
सर्दी का बस डर है।”

“दे दे पूनम की ही साइज
का कुर्ता सिलवा कर।
आएगा हर रोज बदन में
इसकी मत चिंता कर।”

“अब तो सर्दी से भी ज्यादा
एक समस्या भारी।
जिसने मेरी इतने दिन की
इज्जत सभी उतारी।”

“कभी अपोलो मुझको रौंदा
लूना कभी सताता।
मेरी कंचन सी काया को
मिट्टी का बतलाता।”

“मेरी कोमल काया को
कहते राकेट वाले
कुछ ऊबड़-खाबड़ जमीन है,
कुछ पहाड़, कुछ नाले।”

“चन्द्रमुखी सुन कौन करेगी
गौरव निज सुषमा पर?
खुश होगी कैसे नारी
ऐसी भद्दी उपमा पर।”

“कौन पसंद करेगा ऐसे
गड्ढों और नालों को?
किसकी नजर लगेगी अब
चंदा से मुख वालों को?”

“चन्द्रयान भेजा भारत ने
भेद और कुछ हरने।
रही सही जो पोल बची थी
उसे उजागर करने।”

“एक सुहाना भ्रम दुनिया का
क्या अब मिट जायेगा?
नन्हा-मुन्ना क्या चंदा की
लोरी सुन पायेगा?”

“अब तो तू ही बतला दे माँ
कैसे लाज बचाऊँ?
ओढ़ अँधेरे की चादर क्या
सागर में छिप जाऊँ?”

😊😊😊

संकलन-सतीश मिश्र ‘अचूक’

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