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साक्षी प्रकरण : बेटा अभि उछाल रहा बिथरी विधायक पप्पू की पगड़ी, बाप हरीश नायक की नजर पूरनपुर विधायक की कुर्सी पर

पीलीभीत। अभि नाम साक्षी प्रकरण से जुड़ने के बाद चर्चा में आ गया है। वह बरेली में बिथरी चैनपुर के विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल की बेटी को लेकर चला गया और शादी करने की बात कहकर उनकी पगड़ी मीडिया में उछालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।

उधर अभि के पिता हरीश नायक भी कम महत्वाकांक्षी नहीं हैं। नौकरी त्यागकर वे विधायक बनने का सपना देख रहे हैं। उनकी नजर पूरनपुर विधायक की कुर्सी पर है। वह इसके लिए पहले पूरनपुर में डेरा जमा चुके हैं और इस समय भी लगातार पूरनपुर विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं।

2 महीना पहले ट्रांस शारदा क्षेत्र में हरीश नायक एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। लोगों का कहना है कि बाप-बेटे दोनों एक जैसे ही हैं और उनकी महत्वाकांक्षाएं  काफी बढ़ी हुई हैं। बेटा बिथरी विधायक के यहां नौकरी करते करते मित्रता को दगा

देकर दोस्त की बहन को लेकर ही चंपत हो गया। वही उसका बाप खुद को बंजारा समाज का बड़ा नेता बताते हुए राजनीति में दांव आजमाने में लगे हुए हैं। हरीश नायक 7-8 वर्ष पहले पूरनपुर से विधायकी लड़ने का सपना लेकर आए थे। उस

समय भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था और बाबूराम पासवान को चुनाव मैदान में उतारा था। डाल न गलने पर हरीश लौट गए थे। यह अलग बात है कि बाबूराम पासवान वह चुनाव हार गए थे और अगली बार उन्हें फिर टिकट मिला और वह विधायक बन गए लेकिन हरीश की नजर अभी भी पूरनपुर विधानसभा क्षेत्र पर लगी है। उनके बंजारा समाज के कुछ लोग क्षेत्र के गांवो में रहते हैं, इस कारण चुनाव लड़ने के लिए पूरनपुर को बेहतर मानते हैं।

साक्षी प्रकरण में टीवी चैनलों पर आने के बाद हरीश की भी टीआरपी बढ़ रही है वहीं साक्षी के कारनामे से नाराज लोग उनका विरोध करने के लिए बढ़ कर सामने खड़े होने को तैयार हो रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर हरीश नायक पूरनपुर से चुनाव लड़ने आए तो उनका डटकर विरोध किया जाएगा और

उनसे खूब सवाल जवाब होगा। अब देखना यह है कि साक्षी प्रकरण हरीश नायक की महत्वाकांक्षा को अंजाम तक पहुंचायेगा या उनकी बदतर काम की टीआरपी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी। पुरनपुर से उनाव लड़ने के  लिये हरीश नायक ने होर्डिंग लगवाए थे और गांव गांव प्रचार-प्रसार भी किया था। इलाके के काफी लोग उन्हें जानते हैं  अब यह खुलासा होने के बाद उनके नाम पर थू थू हो रही है।

दलित बन रहे लेकिन नही मिल रहा साथ क्योंकि अम्बेडकरवादी आंदोलन से हैं कोसो दूर

 

कट्टरवादी दलित हिन्दू को मुसीबत में “दलित” व अम्बेडकरवादी सन्गठन याद आया.
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बरेली के हाईप्रोफाइल घटना से यह बाते सोचने वाली है की एससी की जो जातिया अम्बेडकरवादी आन्दोलन से दूर है, उन्हें मुसीबत में दलित अथार्त अम्बेडकरवादी आन्दोलन की वजह से आई हुई चेतना ही याद आती है और अंत में उसकी तरफ से बचाव करने के लिए अम्बेडकरवादी आन्दोलन से जुडी हुई जातिया ही सामने आती है. जैसे;

1.अजितेश कुमार, जिसके बारे में मीडिया शुरू से बता रही है कि वो बरेली की ही एक विधानसभा के विधायक डॉक्टर श्याम बिहारी विधायक का रिश्तेदार है (भांजा) है. अजितेश भाजपा का कट्टर समर्थक है, उसका विधायक राजेश मिश्रा के घर आना जाना था व उसके लड़के से दोस्ती भी थी, इसी बीच घर आने जाने की वजह से लड़की से मुलाकात हुई व प्रेम प्रसंग शुरू हुआ.

2,अब मेरी पोस्ट का उदेश्य यह है की डॉक्टर श्याम बिहारी व अजितेश कुमार एससी की “ग्वाल (नट)” उपजाति से है, जिनकी जनसंख्या पुरे उत्तर प्रदेश में मात्र 7330 है. भाजपा एससी की शीट पर गैर चमार योजना के अंतर्गत ऐसी जातियों को टिकट देती है जो की भाजपा समर्थक है और दलित मुद्दों के आन्दोलन का हिस्सा न बने. अब इमेजिन कीजिये की अगर राजनैतिक आरक्षण न हो तो क्या भाजपा ग्वाल जाति के डॉक्टर श्याम बिहारी लाल को टिकट देगी?. भाजपा तभी तक टिकट दे रही है जब तक राजनैतिक आरक्षण है, राजनैतिक आरक्षण खत्म होते ही नगर पालिका के पार्षद का टिकट देते हुए भी कई बार सोचेगी.

अब फिर से घटना पर आते है.

1.अजितेश के बारे में जितनो से पता लगा, सभी ने बताया की अम्बेडकरवादी आन्दोलन से उसका दूर दूर तक का नाता नही है, डॉक्टर श्याम बिहारी लाल के फेसबुक अकाउंट को देख लीजिये, आपको कंही से भी ऐसा नही लगेगा की एससी समाज के विधायक है. बल्कि एक पोस्ट मेने ऐसी देखी जिसमे वो चन्द्रशेखर के यह कहने की “भीमा कौरेंगाव दुबारा दोहरा देंगे” पर कहते है की “ऐसा कहने वाले की ऐसी की तैसी” जबकि दलित होने पर वो इस मुद्दे पर चुप भी रह सकते थे.

2.जैसे ही अजितेश को ऑनर किलिंग का डर सताया, वैसे ही उसे याद आ गया की वो दलित है. कोई अपने आप को दलित इसलिए ही बतायेगा क्योकि बाबा साहब अम्बेडकर के कारण दलित संगठनों में चेतना, आत्मविश्वास व मनोबल का इतना संचार हो चुका है कि दलित बताने पर सरकार, मीडिया व अन्य संस्थाओं का ध्यान एकदम से जाएगा. दलित कार्ड उसने बखूबी खेल दिया. दलित का अर्थ सोशल मिडिया “चमार व्यक्ति” से लगाता है. ब्राह्मणों की कई पोस्ट देखी जो की इस मुद्दे पर चमार कास्ट को टारगेट का रहे है, बल्कि जो विरोधी है, वो सीधा चमार जाति के खिलाफ अपशब्द तक कह रहे है।

3.सबसे मुख्य इस पोस्ट का उदेश्य यह बताना है की एससी वर्ग की “कई उपजातिया” अपने आप को कट्टर हिन्दू मानती है, अब परसों से में उन लोगो को इस प्रेम विवाह की निंदा करते हुए देख रहा हूँ जो की हर पोस्ट पर कहते है की “हिन्दुओ एक हो जाओ, हम आपस में भाई-भाई” है. अब अजितेश जैसे कट्टर हिन्दू ने जब इस बात को स्वीकार करके हिन्दू लड़की से प्रेम विवाह किया तब “हिन्दू की जगह जाति” हो गया है और अंत में अजितेश को दलित कार्ड खेलना पड़ा, नही तो वो यह भी कह सकता था कि वो कट्टर हिन्दू है,, उसने होने के बाद भी नही कहा है, वो यह भी कह सकता था की वो उस परिवार से आता है जिसका विधायक डॉक्टर सजयं बिहारी लाल भी कट्टर हिन्दू भाजपाई विधायक है.

वैसे;

“मीडिया को इस मुद्दे को अब खत्म करना चाहिए, जिससे की लड़की के परिवार के अन्य सदस्य जैसे माँ, या दूसरी बहन पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े, और वो भी तब जब विधायक मिश्रा बार बार सामने आकर कह रहे है कि उसकी लड़की बालिग है इसलिए उसे इस शादी से कोई दिक्कत नही है

और;

जो दलित संगठन, सिर्फ यह सुनकर की लड़का “दलित है” कर बाद एकदम से आंदोलन की मुद्रा में आकर संघर्ष करने की बात कर रहे थे, उन्हें पहले ऐसे मामले को जानना चाहिए। सिर्फ “ऑनर किलिंग” के आधार पर कपल का बचाव कर सकते है, इस ऑफर पर तो पूरे भारत को बचाब करना चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर अजितेश का बचाव न करे, हो सकता है मामला कुछ और ही हो, इससे संगठनों की नकारात्मक छवि बनती है”

🙏जय भीम🙏विकास जाटव🙏

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